फसलो में प्रतिवर्ष कीट, रोग एवं खरपरतवारों से होने वाली क्षति एवं कृषि रक्षा रसायनों के अविवेकपूर्ण प्रयोग से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के दृष्टिगत आवश्यक जानकारी
सोनभद्र,जिला कृषि रक्षा अधिकारी सोनभद्र ने जिले के किसान भाईयों को अवगत कराया है कि फसलो में प्रतिवर्ष कीट, रोग एवं खरपरतवारों से होने वाली क्षति एवं कृषि रक्षा रसायनों के अविवेकपूर्ण प्रयोग से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के दृष्टिगत परम्परागत कृषि विधियों तथा-मेड़ों की साफ-सफाई ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई एवं फसल अवशेष प्रबन्धन के साथ-साथ भूमि शोधन एवं बीज शोधन को अपनाया जाना नितान्त आवश्यक है इससे कीट, रोग एवं खरपतवार का प्रकोप कम होने के साथ उत्पादन में वृद्वि होती है तथा कृषकों की उत्पादन लागत कम होने से उनकी आय में वृद्वि होती है। इन विधियों को अपनाने से पर्यावरणीय प्रदूषण भी कम होता है। भूमि शोधन हेतु जैविक फफूदनाशक ट्राईकोडर्मा 2.5 किग्रा0/हे0 एंव ब्यूवेरिया बैसियाना 1 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 बायोपेस्टीसाइडस 2.5 किग्रा0/हे0 को 65 से 75 किग्रा0 गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 08 से 10 दिन छाया में रखने के उपरान्त बुवाई के पूर्व व आखिरी जुताई पर भूमि में मिला देने से विभिन्न प्रकार की बीमारियों एवं कीटों का नियंत्रण हो जाता है। बुवाई से पूर्व 2.5 ग्राम थीरम 75 प्रतिशत डी एस अथवा कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 2 ग्राम अथवा यथा सम्भव ट्राइकोर्डमा 4 से 5 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से शोधित करने से बीज जनित रोग जैसे-बीज गलन, उकठा का नियंत्रण हो जाता है।
रवीन्द्र केसरी सोनभद्र