भारत में लिव इन रिलेशनशिप की सामाजिक और विधिक स्थिति पर शोध की तर्कसंगत प्रस्तुति
बरेली: रुहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली के विधि विभाग में पी.एच.डी. की मौखिक परीक्षा का आयोजन किया गया। शोधार्थी सोनिका माथुर द्वारा डा. अमित सिंह, हेड एवं डीन विधि विभाग, के निर्देशन में इस शोध को प्रस्तुत किया गया। शोध का विषय था ” इंपैक्ट ऑफ लिव-इन रिलेशनशिप ऑन विमेंस प्रॉपर्टी राइट्स: अ सोशियो लीगल स्टडी ऑफ दिल्ली- एन सी आर”।
यह शोध कार्य अत्यंत रचनात्मक और नवीन विषय पर आधारित है और इस विश्वविद्यालय में अभी तक इस विषय पर कोई भी शोध नही किया गया है। इस शोध के प्रमुख बिंदु निम्नवत हैं –
प्रस्तुत शोध में भारत में लिव इन संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के साथ ही वर्तमान में इन संबंधों की सामाजिक और विधिक स्थिति पर विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। इसके साथ ही फ्रांस, न्यूजीलैंड और फिलिपिंस में लिव इन संबंधों की सामाजिक और विधिक स्थिति के साथ विस्तृत रूप से तुलनात्मक अध्ययन किया गया है।
प्रस्तुत शोध में माननीय उच्चतम न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के प्रमुख निर्णयों की विवेचना की गई है जिनमें यह निर्णीत किया गया है कि इसी महिलाएं जो किसी पुरुष के साथ बिना विवाह किए लंबे समय से सहजीवन में है और परिवार की तरह ही अपने दायित्वों का पालन कर रही हैं, उनका संरक्षण करना विधि का दायित्व है और उन्हें कुछ सांपत्तिक अधिकार दिए जाने चाहिए। ऐसे संबंधों से उत्पन्न संतानें वैध होती हैं और उनका भी संपत्ति में वही अधिकार होता है जैसा वैवाहिक संबंधों से उत्त्पन संतानों को प्राप्त होता है।
प्रस्तुत शोध में शोधार्थी ने दिल्ली- एन सी आर के 100 से अधिक पुरुष एवं महिलाओं से डेटा एकत्र किया जो विभिन्न आयु वर्गों और कार्यक्षेत्रों से है तथा उनमें से कुछ व्यक्ति ऐसे भी हैं जो लिव इन संबंधों में रहते हैं या कभी रहे थे। इस डेटा के प्रमुख बिंदु निम्नवत हैं-
लगभग 60% के विचार से लिव इन संबंधों का मतलब इस प्रकार के संबंधों से है जिसमे अविवाहित युगल सहजीवन व्यतीत करते हैं और सहमति से लैंगिक संबंध स्थापित करते हैं।
कुल 540 लोगों के से 11% ने यह माना की वह लिव इन में रह चुके हैं जिसमे 66% पुरुष और 34% महिलाएं है। इसमें 61% लोग 26-50 के आयु वर्ग के है और 66% लोग विभिन्न कार्यक्षेत्रों से जुड़े हुए हैं।
76% लोगों का मानना है कि लिव इन रिलेशन मेट्रो शहरों में प्रचलित है और इन संबंधों के बढ़ते प्रचलन के मुख्य कारण पाश्चात्य संस्कृति की ओर झुकाव, विवाह से पहले आपसी सामंजस्य को जांचना और वैवाहिक संबंधों और दायित्वों से बचना है।
इन संबंधों के प्रमुख लाभ विवाह पूर्व सामंजस्य को परखना, इन संबंधों का आसानी से समाप्त हो जाना और पारस्परिक दायित्वों का न होना है वहीं इसके दोषों में प्रमुख्तः यह है कि यह विवाह के स्थापित संस्थान को कमजोर करता है।
60% लोगों को लिव इन से संबंधित विधिक प्रावधानों की जानकारी है।
70% लोगों का विचार है लिव इन अब एक प्रचलित संबंध है और इस प्रकार के संबंध समाज के किसी भी वर्ग द्वारा अपनाए जा रहे है।
लगभग 80% लोगों का मत है कि लिव इन संबंध में रहने को अपराध घोषित नहीं किया जाना चाहिए।
लगभग 55% लोगों ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह प्रवधानित करना कि एक लंबी अवधि तक सहजीवन व्यतीत करने वाले युग्मों को शादीशुदा मानना चाहिए, को सही माना है।
लगभग 55% लोगों ने लिव इन में रहने वाली महिलाओं के लिए भरण पोषण को प्रावधानित करने को सही माना है हालांकि लगभग 35% लोगों ने ही लिव इन में रहने वाली महिलाओं को उत्तराधिकार के अधिकार दिए जाने का समर्थन किया है और 48% लोगों ने पैलिमोनी का अधिकार दिए जाने का समर्थन किया है।
70% लोगों ने यह माना है कि लिव इन संबंधों को लेकर एक विशिष्ट विधि का सृजन किया जाना चाहिए।
इस शोध को लेकर शोधार्थी के निम्नलिखित सुझाव हैं-
शोधार्थी ने अलग अलग देशों की विधियों का अध्ययन करके लिव इन संबंधों को वैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत लाकर एक मिश्रित व्यवस्था को स्थापित करने का सुझाव दिया है। दो व्यक्ति लिव इन में है या नहीं यह जानने के लिए कुछ प्रमुख कारकों जैसे संबंधों का उद्देश्य, अवधि, निरंतरता, युगल की संबंध में परिवारिक एवं वित्तीय भागीधारिता, संतान पोषण में भागीधारिता आदि प्रमुख हैं।
लिव इन से संबंधित एक नवीन विधायन का निर्माण जिसमें इस विषय की स्पष्टता हो।
लिव इन में रहने वाले युग्मों को अपने संबंधों को संविदात्मक रूप से प्रारंभ करना चाहिए।
इस प्रकार के संबंधों का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16, भारतीय दंड संहिता की धारा 375, 498A के प्रावधानों में संशोधन कर लिव इन में रहने वाली महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।
अमेरिका में प्रचलित पैलिमनी के सिद्धांतों को भारत में भी स्वीकार किया जाना चाहिए।
विभागध्यक्ष डॉ अमित सिंह के अनुसार इस शोध का उद्देश्य महिलाओं का संरक्षण कर उनको सम्पत्ति अधिकार दिलाकर उनका संरक्षण करना है। शोध कार्य को भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, नई दिल्लीको भेजा जा रहा है जिससे भारत की विधि में इन सुझावों को शामिल किया जा सके । बरेली से ए सी सक्सेना ।