यूपी में बेटे ने पिता को दी खौफनाक मौत, वजह जानकर उड़ जायेंगे होश
गोरखपुर। गोरखपुर में सोमवार को जाफरा बाजार चौराहे पर घोपन बनिया की पुरानी दुकान खुली थी। यह देखकर सहज ही समझा जा सकता है कि परिवार में आपसी रिश्ते कैसे हैं। मधुर की मौत पर उनके भाइयों में न कोई गम था, न किसी के चेहरे पर शिकन दिखी। पूछने पर एक ही जवाब मिला, सब लोग अलग हैं, परिवार का नाम बदनाम मत करिए।
मधुर के पड़ोसी रहे साकेत ने बताया कि उनके पट्टीदारों से रिश्ते अच्छे नहीं थे। आपसी मनमुटाव के कारण कई वर्ष पहले की सभी भाइयों के रास्ते अलग हो गए थे। सभी अलग-अलग रहने लगे और अपना व्यापार भी अलग कर लिया था। आर्थिक प्रतिस्पर्धा ने परिवार के लोगों में दरार डाल दी थी।
जानकारी के मुताबिक, शहर के बड़े व्यापारी घोपन बनिया बच्चों के परिवारों में बिखराव के दूरगामी परिणाम के रूप में ही शनिवार की रात मधुर मुरली की हत्या उनके ही बेटे ने कर दी। परिवार से करीबी रिश्ते रखने वाले पूर्व पार्षद अरविंद चौरसिया ने बताया कि घोपन बनिया की दो संतानें वंशी और दयाराम थीं। फिर वंशी के दो बच्चे मधुर मुरली और विजय हुए। दोनों ने अलग-अलग व्यापार कर लिया।
उधर, दयाराम का बेटा रवि आज भी जाफरा बाजार की पुरानी दुकान ही चलाता है। 1985 में मधुर मुरली ने परिवार से अलग होकर तिवारीपुर के सूर्य विहार में सीमेंट का कारोबार शुरू कर दिया। तब उनका व्यापार खूब चला और वह परिवार से कटते चले गए। बाद में भाइयों में बंटवारा हो गया। मधुर के भाई विजय ने अलग दुकान कर ली और उनके हिस्से में आए मकान में छह दुकानें निकल गईं। इसके बाद वह काफी संपन्न हो गए।
वहीं, समय बीतने के साथ धीरे-धीरे मधुर मुरली आर्थिक रूप से टूटते चले गए। सीमेंट के व्यापार में घाटा हुआ। इसके बाद उन्होंने हार्डवेयर की दुकान की। उसके भी बंद हो जाने पर उन्होंने एक साल पहले जनरल स्टोर शुरू किया था। बड़े बेटे प्रिंस को भी व्यापार कराने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ सिर्फ घाटा ही लगा। वह कर्ज में डूबता चला गया और हश्र पिता की हत्या के रूप में सामने आया।
आज भी घोपन बनिया के परिवार के अन्य सदस्यों की आर्थिक स्थिति इतनी संपन्न है कि वह लाखों की मदद कर सकते हैं। लेकिन, मधुर मुरली के परिवार के संबंध किसी से भी संबंध मिठास भरा न होने की वजह से ही उनके बेटे की किसी ने 40 हजार रुपये तक की मदद नहीं की। मधुर रखे रुपयों को व्यापार में लगा चुके थे। पत्नी का इलाज फिर खुद के कैंसर के इलाज ने उन्हें तोड़ दिया। आर्थिक कमजोरी का ही आलम था कि व्यापार में घाटे के बाद बेटा प्रिंस ऑनलाइन फूड डिलिवरी का काम करने लगा। वहीं छोटा बेटा प्रशांत एक दुकान पर कर्मचारी के रूप में काम करने लगा।
घटना के दूसरे दिन भी छोटे भाई प्रशांत के बोल वही थे। सोमवार को उसने यही कहा कि बड़े भाई प्रिंस के व्यवहार से कभी भी ऐसा नहीं लगा कि वह ऐसा कुछ कर सकता है। इधर, कुछ दिनों से परेशान होने की वजह से घर में पिता से बहस जरूर हो जाती थी। बुआ ने कहा कि प्रिंस का व्यवहार काफी अच्छा रहा है। विश्वास ही नहीं हो रहा है कि वह ऐसा भी कर सकता है।
गोविवि समाजशास्त्री डॉ. मनीष पांडेय ने कहा कि इस प्रकार की घटनाएं पारिवारिक विघटन का परिणाम हैं। ऐसी स्थिति में सामाजिक नियंत्रण की संस्थाएं अप्रभावी हो जाती है, जिससे संवेदनहीनता बढ़ती है। पारिवारिक संबंध अस्थिर व विकृति हो जाते हैं। परिवार एक नियामक संस्था है, जिसका अपने सदस्यों पर नियंत्रण रहा है। लेकिन, वर्तमान संक्रमण के दौर में सामाजिक संस्थाएं अप्रभावी होती जा रही हैं। आर्थिक प्रक्रियाओं और असुरक्षा के कारण परिवार जैसी नैसर्गिक संस्थाओं में व्यापक परिवर्तन आया है। उपभोक्तावादी संस्कृति, पारंपरिक नैतिक मूल्यों के क्षरण तथा बढ़ती हुई व्यक्तिवादिता ने भावानात्मक बंधनों को कमजोर किया है।
मनौवैज्ञानिक सीमा श्रीवास्तव ने कहा कि सामाजिक असुरक्षा की भावना जब इंसान के अंदर घर कर लेती है तो अक्सर व्यक्ति अपनी समस्या लोगों से कहना बंद कर देता है। ऐसे में यह भावना एक विकृति का रूप ले लेती है। कभी भी कोई समस्या जीवन में आती है तो घर के बड़ों या मित्रों से बात कर उनकी राय लेनी चाहिए। लेकिन, इस घटना में साफ दिख रहा है कि परिवार के लोगों में ज्यादा बातचीत ही नहीं होती थी। न ही कोई परिवार का करीबी है, जो समस्या सुनकर समाधान की कोशिश करता। इसी का परिणाम यह घटना है।