रूहेलखंड विश्वविद्यालय में “अन्त्योदय की साधना से सर्वोदय की प्राप्ति “विषय पर संगोष्ठी का आयोजन


बरेली , 12 मार्च। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ, महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय, बरेली के तत्वावधान में एक ही मंच से विद्यार्थी व शिक्षक दोनों प्रकार के वक्ताओं के पूर्ण अभिभाषणों हेतु एक अवसर प्रदान करने वाले पहल के रूप में प्रत्येक शनिवार को संचालित होने वाले ‘संवदध्वं : दीनदयाल शनिवासरीय व्याख्यानमाला’ के अन्तर्गत तृतीय पुष्प के रूप में “अन्त्योदय की साधना से सर्वोदय की प्राप्ति” विषयक संगोष्ठी संपन्न हुई। कार्यक्रम में शिक्षक वक्ता के रूप में प्रोफेसर सन्तोष अरोड़ा, आचार्य, शिक्षा विभाग तथा विद्यार्थी वक्ता के रूप में सुश्री अलका रैकवाल रहे। शोधपीठ ने इस कार्यक्रम के माध्यम से एक अनूठा पहल प्रारंभ किया है जिसमें ’संवदध्वं’ अर्थात शिक्षक व विद्यार्थी साथ-साथ बोलें ऐसा अवसर प्रदान किया जा रहा है। इससे विद्यार्थियों में विमर्श की परंपरा विकसित होगी तथा उनके व्यक्तित्व के सर्वांगीण पक्षों के विकास को भी अवसर मिलेगा।
इस अवसर पर कार्यक्रम के आयोजक व निदेशक, डॉ0 प्रवीण कुमार तिवारी, समन्वयक, पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ ने सभी अतिथियों का स्वागत किया तथा विषय प्रस्तावना संबंधी भाषण प्रस्तुत किया। डॉ. तिवारी ने कहा कि आधुनिक भारतीय समाज दर्शनों के परिप्रेक्ष्य में दो विराट विचार आते हैं, एक गाँधी जी द्वारा प्रदत्त सर्वोदय और दूसरा दीनदयाल जी द्वारा प्रदत्त अंत्योदय। कुछ ही लोगों का भला हो ऐसी पूँजीवादी सोच के विरुद्ध गाँधी खड़े होकर सबके भले की बात करते हैं। लेकिन सब का भला तब तक नहीं हो सकता जब तक कि समाज के अन्तिम पायदान पर स्थित व्यक्ति का उत्थान नहीं हो जाता। इस प्रकार अंत्योदय का सिद्धान्त मूलतः सर्वोदय की प्राप्ति के लिए ही आया। अतः दीनदयाल जी का विचार साधन है और गाँधी का विचार साध्य है। अंत्योदय का व्याप केवल रोटी-कपड़ा-मकान तक ही नहीं वरन विद्या और विवेक की प्राप्ति से गरिमामय जीवन जीते हुए परमेष्टि के बोध तक है।
इस अवसर पर आमन्त्रित शिक्षक वक्ता प्रोफेसर सन्तोष अरोड़ा, आचार्य, शिक्षा विभाग ने कहा कि पूरे समाज का विकास तब तक सम्भव नही है जब तक अंतिम पायदान पर जीवन बिता रहे व्यक्ति को लाभ नही मिलता। अंतिम पायदान पर आवश्यक नहीं कि निर्धन ही हो बल्कि इसमें कोई भी हो सकता है जैसे महिलाएँ, दिव्यांग, विशेष आवश्यकता वाले बच्चे आदि। अंत्योदय और सर्वोदय का आपस में बहुत गहरा संबंध है। यदि व्यक्ति का विकास होगा तो समाज का विकास होगा। सर्वोदय कहता है कि समाज का विकास करेंगे तो व्यक्ति का विकास सम्भव है। शाश्वत सत्य परम सत्ता है और सर्वोदय के आधार पर आप अगर सत्य को प्राप्त करना चाहते हैं तो उसका एक ही उपाय है नर से नारायण तक का विकास अर्थात् समाज में जो ज़रूरतमन्द लोग हैं उनका विकास करें। सर्वोदय का समाज ऐसा हो जिसमें वर्ग भेद न हो जातिभेद न हो अर्थात् व्यक्ति सुख से अपना जीवन यापन कर सके और यदि समाज सुखी होगा तो व्यक्ति भी सुखी होगा। डॉ. अरोड़ा ने सर्वोदय की आर्थिक संकल्पना के रूप में गांधी के ट्रस्टीशिप सिद्धांत को भी समझाया।
कार्यक्रम में विद्यार्थी वक्ता सुश्री अलका रैकवाल ने कहा कि अंत्योदय का अर्थ है, समाज के पिछड़े वर्ग का उत्थान और इसके लिए राजनीतिक व्यवस्था को चाहिए क़ि नीतियों का निर्माण करते समय इस बात का ख़याल रखें। आज भी समाज के अनुसूचित समुदाय के लोग पिछड़े हुए हैं। वर्तमान आरक्षण व्यवस्था उनको सामान्य वर्ग के समीप लाने में सहयोगी है परंतु यह नीति पर्याप्त नहीं है। ऊँच-नीच जातिभेद और आर्थिक विषमता को मिटाकर सर्वोदय की कल्पना साकार हो सकेगी जिसका मार्ग अंत्योदय से होकर ही गुजरेगा।
इस संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन विद्यार्थियों के माध्यम से किया गया। कार्यक्रम की विद्यार्थी संयोजक, दीपाली गुप्ता रही, तथा कार्यक्रम के संचालन का कार्य महेश शुक्ला ने किया। इस क्रम में सीमा रस्तोगी, प्रज्ञा गंगवार, किरन देवी ने सरस्वती वंदना व कुलगीत, रंजना पांडेय व प्रज्ञा गंगवार ने वन्दे मातरम व राष्ट्रगान प्रस्तुत किया। परिचर्चा सत्र में कई विद्यार्थियों ने प्रश्न पूछे और टिप्पणियाँ रखीं जिनमें विपिन, मदन, गौरव, नरेंद्र, दिनेश आदि प्रमुख रहे।
कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन पण्डित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ के सह समन्वयक व कार्यक्रम के संयोजक, डॉ0 रामबाबू सिंह ने किया। इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजन सचिव श्री रश्मि रंजन तथा श्री विमल कुमार, आयोजन सह-सचिव डॉ0 मीनाक्षी द्विवेदी, प्रोफ़ेसर संतोष अरोड़ा, डॉ. पवन सिंह, श्रीमती दीपाली गुप्ता सहित कई शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित रहे।

बरेली से ए सी सक्सेना की रिपोर्ट

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