4 भाईयों के दमदार विज़न ने HERO को बनाया ब्रांड, साइकिल पार्ट्स से हुई थी शुरुआत

‘हीरो साइकिल्स’…वो कंपनी जिसके विषय में हम अपने बचपन से सुनते आ रहे हैं। जैसे-जैसे हम बड़े हुए हमने अपनी उम्र के साथ इस कंपनी के उत्पादों का इस्तेमाल किया। जब छोटे थे तब हीरो की साईकिल चलाई, बड़े हुए तो हीरो की बाईक चलाई। ऐसे में इस कंपनी से हर किसी की यादें जुड़ी हुई हैं। हर किसी ने हीरो की साईकिल के लिए अपने बचपन में कभी ना कभी अनशन किया होगा।

आज हम आपको हीरो की शुरुआत से जुड़ी बेहद ही रोचक जानकारी देने जा रहे हैं। इसमें हम आपको बताएंगे कि आखिर हीरो की स्थापना कब और कैसे हुई।
आप सबने इतिहास के पन्नों में दर्ज भारत के विभाजन की उस त्रासदी के विषय जरुर सुना होगा जिसमें लाखों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सीमा पार जाना पड़ा था। इन्हीं में शामिल थे बहादपर चंद मुंजाल। उन्हें भी अपने परिवार के साथ पाकिस्तान के कमालिया से हिंदुस्तान के पंजाब में आना पड़ा था। इस दौरान उन्होंने लुधियाना में अपना डेरा जमाया।

मुंजाल साहब और उनकी पत्नी ठाकुर देवी के चार बेटे थे। उनका नाम सत्यानंद मुंजाल, ओमप्रकाश मुंजाल, ब्रजमोहनलाल मुंजाल और दयानंद मुंजाल था। मुंजाल परिवार के सामने अब सबसे बड़ी समस्या थी रोजगार। इसके लिए इन चारों भाईयों ने फुटपाथ पर साईकिल के पार्ट्स बेचना शुरु किया। धीरे-धीरे इन्हें इस व्यापार में मुनाफा दिखने लगा जिसपर कुछ पैसे जोड़कर इन्होंने थोक में माल लेना शुरु कर दिया। अब ये दुकानों पर जा-जाकर फुटकर में माल बेचते जिससे इन्हें अच्छा प्रॉफिट मिलता।

चारों भाईयों को साईकिल के पार्ट्स का व्यापार इतना रास आया कि इन्होंने फैसला किया वे अब इन पार्ट्स को अपने कारखाने में बनाएंगे। इसके लिए उन्होंने बैंक से 50 हज़ार रुपये का लोन लिया और 1956 में लुधियाना में एक साईकिल पार्ट्स बनाने का एक कारखाना लगाया। यहीं से शुरुआत हुई हीरो साइकिल्स की। मुंजाल भाईयों ने दिन-रात मेहनत के बाद इसे बड़ा बनाया। धीरे-धीरे उन्होंने अपनी इस यूनिट में साइकिल बनाना भी शुरु कर दिया।

साईकिल निर्माण की हुई शुरुआत अब उनकी कंपनी एक दिन में 25 साइकिलों का निर्माण करती थी। जैसे-जैसे उनकी कंपनी की मार्केट में पहचान बनने लगी मुंजाल ब्रदर्स ने साइकिल का उत्पादन बढ़ा दिया। 1966 में हीरो साइकिल्स साल में 1 लाख साइकिल तैयार करती थी। धीरे-धीरे यह आंकड़ा इतना बढ़ा कि मुंजाल ब्रदर्स ने इतिहास रच दिया। 1986 तक इस कंपनी की साइकिल निर्माण की क्षमता में इतनी वृद्धि हुई कि 22 लाख सालाना साइकिल बनाने के लिए कंपनी का नाम ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में शामिल कर दिया गया था।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुंजाल ब्रदर्स समय के साथ बदलना जानते थे, शायद यही कारण था कि वे दिन-रात बुलंदियों को छू रहे थे। बदलते दौर के साथ लोग साइकिल के बदले दो पहिया वाहनों की तरफ बढ़ रहे थे। इसलिए भारत की सुप्रसिद्ध हीरो साइकिल्स ने 1984 में जापान की दिग्गज बाइक निर्माता हॉन्डा के साथ देश में व्यापार शुरु कर दिया।

इसके बाद हीरो साइकिल्स ने हीरो हॉन्डा मोटर कारपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड के तहत नई कंपनी रजिस्टर की और दो पहिया वाहनों के बाज़ार में क्रांति ला दी। उन दिनों इस कंपनी की मोटरबाइक काफी सस्ती और किफायती मानी जाती थी। 27 सालों का यह साथ साल 2011 में छूट गया। हीरो और हॉन्डा एक बार फिर अलग हो गईं।

गौरतलब है, भारतीय ऑटोमोबाइल के बाज़ार में इतना बड़ा नाम कमाने वाले मुंजाल ब्रदर्स का एक ही साल में निधन हो गया। बड़े भाई दयानंद मुंजाल ने 1960 में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। वहीं अन्य तीनों भाइयों का निधन भी आगे-पीछे हुआ। 13 अगस्त 2015 को ओमप्रकाश मुंजाल, 1 नवंबर 2015 को बृजमोहन लाल मुंजाल और 14 अप्रैल 2016 को सत्यानंद मुंजाल ने आखिरी सांस ली। अब उनका य़ह बिजनेस ओमप्रकाश मुंजाल के बेटे पंकज मुंजाल संभालते हैं।

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