उत्तर प्रदेश

आईवीआरआई मे कृत्रिम गर्भाधान तकनीक पर व्यवसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ

बरेली , 22 नवम्बर । भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के पशु पुनरूत्पादन विभाग द्वारा कृत्रिम गर्भाधान तकनीक पर कल एक माह का व्यवसायिक प्रशिक्षण प्रारंभ हुआ जिसमें बरेली एवं अन्य जनपदों के प्रशिक्षणार्थी भाग ले रहे हैं।

प्रशिक्षण के उद्घाटन अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि एवं संस्थान के संयुक्त निदेशक (शोध) डा. एस.के. सिंह ने कहा कि आपकी उपस्थिति इस कार्यक्रम की सफलता को बताती है। उन्होंने कहा कि आज हम पशु चिकित्सा के हर क्षेत्र को कवर कर रहे है। उन्होंने बताया कि कृत्रिम गर्भाधान करते समय हमें इसके तकनीकी ज्ञान की बहुत आवश्यकता है इसके साथ-साथ इसे वैज्ञानिक पद्धति से करना होगा। इसके रख-रखाव तथा प्रयोग करते समय सावधानियों का भी ध्यान रखना होगा।

संयुक्त निदेशक, शैक्षणिक डा. एस.के. मेंदीरत्ता ने इस अवसर पर प्रशिक्षणार्थियों से अपील की कि आप पूरा ध्यान प्रशिक्षण कार्यक्रम द्वारा सीखने में लगाएं। हमारे संकाय का कार्य आपके ज्ञान को अधिक से अधिक बढ़ाना हैं। उन्होने यह भी कहा कि आप संस्थान इस प्रशिक्षण के उपरांत भी अन्य विषयों पर प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में संस्थान के फार्मों प्रक्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों एवं छात्रों को भी इस प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ने की सलाह दी।

इस अवसर पर संस्थान की संयुक्त निदेशक, प्रसार शिक्षा डा. रूपसी तिवारी ने कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है तथा यह काफी समय से चलता आ रहा है। हमारे देश में 8 करोड़ कार्यकर्त्ता कृत्रिम गर्भाधान का कार्य कर रहे हैं। सरकार इस विषय पर कई कार्यक्रम चला रही है जिसमें कई सारे मैत्री कार्यकर्त्ता को जोड़ रही है इसके अतिरिक्त गोकुल मिशन तथा अन्य लाइव स्टाफ डवलपमेंट बोर्ड हैं जिनके साथ मिलकर_जुलकर बहुत से कार्यक्रम चलाये जा रहे है।

आईवीआरआई के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए डा. तिवारी ने यह भी कहा कि इस संस्थान का गौरवमयी इतिहास रहा है तथा इस संस्थान द्वारा अनेक टीके एवं नैदानिक के साथ-साथ आईसीटी टूल विकसित किये गए हैं जिसके माध्यम से आप पशु चिकित्सा से जुड़ी जानकारी हासिल कर सके हैं। उन्होने यह भी कहा कि संस्थान द्वारा ऑनलाइन चिकित्सा क्लीनिक चलाया जा रहा है जिसमे संस्थान के 72 से अधिक वैज्ञानिक जुड़े हैं। इसी तरह चैटवाक को 10 भाषाओ में तैयार किया है। कृत्रिम गर्भाधान तथा पशु प्रजनन के लिए भी विभिन्न भाषाओं में मोबाइल एप्प बनाये गये हैं। उन्होंने इस अवसर पर संस्थान द्वारा विकसित आईवीआरआई क्रिस्टोकोप के बारे में भी बताया।

पाठ्यक्रम के निदेशक एवं पशुपुनरूत्पादन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एम.एच खान ने कहा कि कृत्रिम गर्भाधान बहुत महत्वपूर्ण इकाई है जिससे दूध उत्पादन में क्रांति आई है। हम पशुधन संख्या तथा दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर है। उन्होंने बताया कि कृत्रिम गर्भाधान को वर्ष 1940 के दशक में शुरू किया गया तथा इसके बाद सरकार द्वारा विभिन्न स्कीमों के अन्तर्गत कृत्रिम गर्भाधान में तेजी लाने का काम किया गया। वर्तमान में पशुओं की संख्या लगभग 53 करोड़ है तथा दुधारू पशुओं की संख्या 30 करोड़ है। उन्होने पशुओं की रिप्रीट ब्रीडिंग, सीमेन कलैक्शन तथा उसके रख-रखाव के बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी दी।
कार्यक्रम का संचालन पशु पुनरूत्पादन विभाग की छात्रा डा. रेनु शर्मा द्वारा दिया गया जबकि धन्यवाद ज्ञापन इसी विभाग के डा. बृजेश कुमार द्वारा दिया गया। इस अवसर पर औषधि विभाग के विभागाध्यक्ष डा. डी.बी. मण्डल, शल्य चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डा. किरनजीत सिंह, जर्म प्लाज्म केन्द्र प्रभारी डा. एस. घोष, डा. नीरज श्रीवास्तव तथा डा. ए.बी. पाण्डे उपस्थित रहे। बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया The Lucknow Tribune के  Facebook  पेज को Like व Twitter पर Follow करना न भूलें... -------------------------