एक अनोखा कर, जिसके बारे में अपने शायद ही सुना हो
नई दिल्ली : कर की व्यवस्था भारत मे प्राचीन समय से ही चली आ रही है।राज्य और ज़मीनदार हमेशा से ही जनता से कर की वसूली करते रहे है।यह कर कई प्रकार के होते थे जैसे कि कृषि,व्यापार, विवाह आभूषण पहनने का अधिकार, पुरुषों की मूंछ उगाने का अधिकार, आदि।लेकिन आज हम आपको बताने वाले हैं एक ऐसी कर व्यवस्था के बारे में जिसके बारे में जानकर आपका सर शर्म से झुक जाएगा।वह कर है “स्तन कर” , भारत मे एक ऐसा प्रान्त था जहाँ पर महिलाओं से स्तन कर जिसे मलयालम भाषा में “मुलक्करम” भी कहते हैं ,लिया जाता था।
आज से 100 से भी अधिक वर्ष पूर्व केरल में त्रावणकोर के राजा का शासन था. समाज में जातिवाद पूरी तरह पैठ बनाए हुए था। लेकिन जैसा की हमेशा से जातिवाद का खामियाज़ा निचली जातियों को भुगतना पड़ा है, वैसा ही यहाँ भी हो रहा था। लेकिन जाति व्यवस्था के नाम पर यहाँ जो हो रहा था वह बेहद शर्मनाक था।यहां निचली जाति के महिलाओं को अपना स्तन न ढकने का आदेश था, यदि निचली जाति की कोई महिला अपना स्तन ढक लेती तो उससे कर वसूला जाता था।
विद्वानों का कहना है कि यह ऐसा समय था जब पहनावे ऐसे थे कि एक व्यक्ति को देखते ही उसकी जाति की पहचान की जा सकती थी और “ब्रेस्ट “ का मक़सद भी जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना ही था। यह एक तरह से एक औरत के निचली जाति से होने की कीमत थी। इस कर को बार-बार अदा कर पाना इन ग़रीब समुदायों के लिए मुमकिन नहीं था.
केरल के हिंदुओं में जाति के ढांचे में नायर जाति को शूद्र माना जाता था, इनके बाद एड़वा और फिर दलित समुदायों को रखा गया था। उस समय दलित समुदाय के लोग ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर थे और यह कर देना दलित समुदाय के लिए नामुमकिन था। इसलिए एड़वा और नायर समुदाय की औरतें में ही इस कर को देने की थोड़ी क्षमता रखती थीं। विद्वानों की माने तो इस व्यवस्था के पीछे यह सोच थी की औरतो को अपने से ऊंची जाती के मर्दो के सामने अपने स्तन नहीं ढकने चाहिए यहाँ तक की ऊंची जाती किन औरतो को भी मंदिर में अपने स्तन से कपडा हटा देना चाहिए।
लेकिन इतिहास में हमेशा यह देखने में आया है की अत्याचार के विरुद्ध हमेशा आवाज़े उठी हैं और एड़वा जाती की एक क्रन्तिकारी महिला नंगेली ने इस कर व्यवस्था का विरोध किया। इस कर को दिए बग़ैर इस महिला ने होने स्तनों को ढकने का फैसला कर लिया। स्थानीय लोगो के मुताबिक़ जब कर वसूलने आए अधिकारियो ने नंगेली की बात को नहीं मन तब उसने अपने स्तन काट कर खुद उनके सामने रख दिए। इस साहसी क़दम कमो उठाने के बाद ज़्यादा खून बहने से नंगेली की मौत हो गई। इतिहासकार बताते हैं की नंगेली के पति चिरुकंदन ने भी उनके दाह संस्कार में अग्नि में कूद कर अपनी जान दे दी। स्थानीय लोग बताते हैं की ये क़दम नंगेली ने केवल अपने लिए नहीं बल्कि सारी महिलाओ के लिए उठाया था और नतीजतन राजा को यह कर वापस लेना पड़ा।
नंगेली की मृत्यु के बाद, लोगों के आंदोलनों की एक श्रृंखला को बंद कर दिया गया था। जल्द ही वह जिस स्थान पर रहती थी उसे मूलचिपारंबु (स्तन वाली महिला का अर्थ स्थान) कहा जाने लगा। हालाँकि, कहानी को भारत के किसी भी ऐतिहासिक खाते में आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं मिली है और इसकी प्रामाणिकता बहस योग्य है।
नौवीं के एन.सी.ई.आर.टी. में कथित:
कई इतिहासकारों ने इस घटना को दर्ज किया है और सरकार के सीबीएसई 9 वीं पाठ्यक्रम ने इस घटना को नौवीं कक्षा के छात्रों के लिए अपने सामाजिक विज्ञान पाठ्यक्रम से ‘जाति, संघर्ष और पोशाक परिवर्तन’ नामक खंड में दिखाया है और बाद में इसे मद्रास उच्च न्यायलय द्वारा एक आदेश के कारण हटा दिया गया था। अदालत “आपत्तिजनक सामग्री” के रूप में इसे ‘उच्च’ जातियों के प्रति सम्मान का संकेत माना जाता था।