एनटीपीसी-विंध्याचल में संस्कृति मंत्रालय की ओर से दो दिवसीय ‘सुन लो स्वर पाषाण शिला के’ नाट्य समारोह का हुआ आयोजन
विन्ध्यनगर, एनटीपीसी-विंध्याचल के उमंग भवन सभागार में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं एन टी पी सी, विंध्याचल के सहयोग से ख्यातिलब्ध रंग संस्था “समूहन कला संस्थान” द्वारा दिनांक 14 सितम्बर से 16 सितम्बर तक तीन दिवसीय समूहन नाट्य समारोह के आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में 15 सितम्बर को द्वितीय दिवसीय ‘सुन लो स्वर पाषाण शिला के’ नाट्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर प्रधानाचार्य (सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल, विंध्यनगर) के साथ-साथ भारी संख्या में सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल के शिक्षकगण एवं छात्र-छात्राओं नें भाग लिया तथ इस नाट्य समारोह का भरपूर आनंद उठाया। साथ ही इस अवसर पर वरिष्ठ अधिकारी, कर्मचारी एवं उनके परिवारजन भी उपस्थित रहें।
यह नाटक ‘‘सुन लो स्वर पाषाण शिला के’’ राम कथा का ऐसा प्रसंग है जो भगवान राम के जीवन केआरम्भ में आता हैं परंतु भगवान राम के जीवन का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है। यह अहिल्या प्रसंग पर आधारित रामकथा का नारी स्वर है, जो उनको पुरषोत्तम रूप में सामाजिक मर्यादा प्रदान करता है।इस प्रसंग में नारी की सामाजिक दशा का विस्तृत वर्णन और राम के अप्रतिम पुरुषार्थ से उसके उद्धारका उल्लेख मिलता है।
अहिल्या उद्धार प्रसंग में राजनैतिक सत्ता की उच्श्रृंखलता का भी वर्णन मिलता है। इन्द्र की कुटिलता से उपजी यह घटना परवर्ती अनेक सैद्धांतिक दृष्टांताओं को समाज के सम्मुख रखती है। गौतम ऋषि का पत्नी त्याग के उपरान्त तपस्या हेतु उन्मुख होना पुरूषवादी सोच का परिमार्जन है। अहिल्या द्वारा पति की इच्छा के सम्मुखनत हो जाना नारी आदर्श की पराकाष्ठा को भी प्रस्तुत करती है। राम द्वारा अहिल्या उद्धार का यह प्रसंग तब चरमोत्कर्ष पर होता है जब राम अहिल्या उद्धार के उपरान्त ‘‘जैसे माता कौशल्या है वैसे ही माता अहिल्या है ’’ कहकर अहिल्या को समाज में स्थापित करते है।
संगीत प्रधान शैली की इस नाट्य प्रस्तुति में राग भैरवी, शिवरंजनी, काफी आदि विभिन्न रागों पर र्कइ आकर्षक गीतों का प्रयोग बहुत ही शानदार रहा, जिसकी संगीत रचना बनारस घराने की जानी मानी गायिका विदुषी सुचरिता गुप्ता ने तैयार किया है। पाषाणी अहिल्या और वृक्ष की भूमिका के दृश्य में निर्देशक की प्रयोगधर्मिता और संवेदनशीलता दर्शकों को अचंभित करती है। इस भूमिका को मंच पर अभिनीत भी स्वयं निर्देशक राजकुमार शाह ने किया, पाषाणी अहिल्या की भूमिका म्सिन रिम्पी वर्मा अपने सशक्त अभिनय से लोगों को भावनाओं में बह जाने को मजबूर कर देती है। नवीन चन्द्रा विश्वामित्र की भूमिका में राम और लक्ष्मण अजय कुमार, सुनील कुमार, गौतमी अहिल्या गंगा प्रजापति और ऋषि गौतम के रूप में राजन कुमार झा के अभिनय ने प्रभावित किया। रितिका सिंह कारेस के रूप में प्रस्तुति को गति देने में सफल रही, कुमार अभिषेक, वैभव बिन्दुसार और रिम्पी वर्मा का गायन लाजवाब रहा। इंद्र और चन्द्र की भूमिका में राहुल मौर्य और हिमेश कुमार सराहनीय रहे। प्रस्तुति का नाट्यालेख संतोष कुमार, गीत लाल बहादुर चैरसिया का, ध्वनि अभिकल्पना , प्रवीण पाण्डेय और प्रकाश संयोजन तथा संचालन मो0 हफ़ीज द्वारा नाटक को एक ढोस धरातल प्रदान करती है। ध्वनि प्रभाव अजय कुमार और राजन कु0 झा, वेशभूषा एवं रूपसज्जा रिम्पी वर्मा, रितिका सिंह, पुजा केसरी, रश्मि पाण्डेय, कला पक्ष रतन लाल जायसवाल और नृत्य संयोजन सुनंदा भट्टाचार्या का सफल रहा।
राजकुमार शाह का निर्देशन र्नइ सोच से युक्त अनिर्वचनीय है। यह नाट्य समारोह विन्ध्यनगर के लिए एक सुखद अनुभूति है। समारोह के तीसरे और अंतिम दिन कल नाटक दाखिला डॉट कॉम का मंचन होगा।
रवीन्द्र केसरी