छुट्टे पैसे के चक्कर में चली गई थी युवक की जान, 7 साल बाद आया ट्रिब्यूनल का फैसला
मुंबई। कहते हैं कि देर है अंधेर नहीं, ऐसा ही एक मामला एक युवक के साथ हुआ है। साल 2016 में मुंबई के विक्रोली इलाके में रहने वाले एक युवक चेतन अचिर्नेकर (Chetan Achirnekar) की ऑटो रिक्शा ड्राइवर (auto rickshaw driver) की वजह से जान चली गई थी।
बता दें कि चेतन एक सॉफ्टवेयर फर्म में काम करता था। अपना काम खत्म करने के बाद वह घर लौटने के लिए एक ऑटो रिक्शा पर सवार हुआ। जब ऑटो उसके घर पहुंचा, तो किराया 172 रुपया हुआ। चेतन के पास छुट्टे नहीं थे, लिहाजा उसने ड्राइवर को 2 सौ रुपये दिए. ड्राइवर ने कहा कि उसके पास छुट्टे नहीं हैं और उसने बाकी के 28 रुपये लौटाने की जगह ऑटो रिक्शा स्टार्ट कर दिया। जब चेतन ने उसे रुकने के लिए कहा तो ड्राइवर ने ऑटो रिक्शा की स्पीड बढ़ा दी। इस दौरान ऑटो रिक्शा चेतन पर गिर गया और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। इस दर्दनाक घटना को चेतन के पिता ने खुद अपनी आंखों से देखा।
एक रिपोर्ट के अनुसार कि चेतन के परिवारवालों ने फ्यूचर जनरल इंडिया इंश्योरेंस कंपनी से बीमा राशि भुगतान करने की मांग की, मगर कंपनी ने इंकार कर दिया. कंपनी ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के सामने तर्क दिया कि चूंकि यह एक गैर इरादतन हत्या का मामला था, लिहाजा इसके लिए वह उत्तरदायी नहीं है। ट्रिब्यूनल ने चेतन के मृत्यु प्रमाण पत्र और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पाया कि चेतन की मौत मोटर वाहन दुर्घटना में लगी चोट की वजह से हुई है।
एमएम चांडेकर की अध्यक्षता वाले ट्रिब्यूनल ने कहा कि जिस तरह से दुर्घटना हुई है, उससे साफ होता है कि ऑटो रिक्शा ड्राइवर के पास इस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना से बचने का एक मौका था. बीमा कंपनी ने यह भी दावा किया था कि ऑटो ड्राइवर के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था, मगर कंपनी अपने दावे को साबित नहीं कर पाई।
ट्रिब्यूनल ने चेतन के परिवारवालों के हक में फैसला सुनाया। बीमा कंपनी और ऑटोरिक्शा मालिक कमलेश मिश्र को संयुक्त रुप से चेतन के घरवालों को 43 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। दुर्घटना के समय चेतन का मासिक वेतन 15,000 रुपये था। ट्रिब्यूनल ने इसे ध्यान में रखते हुए ब्याज सहित मुआवजे का निर्धारण किया। हादसे के समय चेतन की उम्र 26 साल थी. चेतन के परिवार ने दिसंबर 2016 में अपना दावा प्रस्तुत किया था। दावे में परिवार ने कहा था कि चेतन की मौत की वजह से उन्हें भावनात्मक और आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा. वहीं ऑटो रिक्शा का मालिक ट्रिब्यूनल के सामने पेश नहीं हुआ और उसके खिलाफ एक पक्षीय आदेश पारित किया गया।