नोटबंदी के साढ़े छह साल बाद RBI ने क्यों लिया यह फैसला, जानें पांच कारण
नई दिल्ली. आरबीआई ने दो हजार के नोट वापस लेने का फैसला किया है। बैंक ने बताया है कि उसने क्लीन नोट पॉलिसी के तहत यह बड़ा फैसला लिया है। हालांकि यह नोट फिलहाल वैध रहेंगे। आरबीआई ने यह भी बताया कि यह नोट 30 सितंबर तक बैंकों में वापस लिए जा सकेंगे। इसकी प्रक्रिया 23 मई से शुरू होगी। इस खबर में हम आपको बताएंगे कि सरकार ने 2016 में नोटबंदी के करीबन साढ़े छह साल बाद यह फैसला क्यों लिया है। पांच बिंदुओं में समझें आरबीआई का पूरा गुणा-गणित…
आरबीआई ने नवंबर 2016 में दो हजार रुपये के नोट जारी किए थे। इन्हें आरबीआई कानून 1934 की धारा 24(1) के तहत जारी किया गया था। यह फैसला इसलिए लिया गया था ताकि उस समय चलन में मौजूद 500 और 1000 रुपये की जो करंसी नोटबंदी के तहत हटाई गई थी, उसके बाजार और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर को कम किया जा सके।
RBI के मुताबिक, दो हजार रुपये के तकरीबन 89% नोट मार्च 2017 से पहले ही जारी हो गए थे। ये नोट चार-पांच साल तक अस्तित्व में रहने की उनकी सीमा पार कर चुके हैं या पार करने वाले हैं।
31 मार्च 2018 को 6.73 लाख करोड़ रुपये के नोट सर्कुलेशन में थे। यानी कुल नोटों में इनकी हिस्सेदारी 37.3% थी। 31 मार्च 2023 तो यह आंकड़ा घटकर 3.62 लाख करोड़ रुपये रह गया। यानी चलन में मौजूद कुल नोटों में दो हजार रुपये के नोटों की 10.8% हिस्सेदारी ही रह गई।
नोटबंदी के बाद दो हजार रुपये के नोट लाए गए थे। जब दूसरे मूल्य के बैंक नोट पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो गए, तब दो हजार रुपये को चलन में लाने का उद्देश्य भी पूरा हो गया। लिहाजा, 2018 में दो हजार रुपये के नोटों की छपाई भी बंद कर दी गई।
RBI के मुताबिक, दो हजार रुपये के नोट आमतौर पर लेनदेन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल में भी नहीं आ रहे। इसके अलावा, अन्य मूल्य के नोट भी आम जनता के लिए चलन में पर्याप्त रूप से मौजूद हैं। लिहाजा, आरबीआई की क्लीन नोट पॉलिसी के तहत यह फैसला लिया गया है कि दो हजार रुपये के नोटों को चलन से हटा लिया जाए।