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बिहार के लाल का कमाल, पहले पान की दुकान खोली, फिर भूंजा बेचा, अब परीक्षा पास कर बन गया जज

New Delhi: बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा में जमुई जिले के सिकंदरा के रहने वाले एक मामूली युवक ने कमाल किया है, दिहाड़ी मजदूर का बेटा सूरज कड़ी मेहनत तथा लगन के साथ पढाई करने के बाद अब परचम लहराया है, 7वीं पास बाप का बेटा अब जज बन चुकी है, सूरज की इस सफलता पर सिर्फ परिवार के लोग ही नहीं बल्कि इलाके के लोग भी काफी खुश हैं।

गरीबी में बीता बचपन
जमुई के सिकंदरा के रहने वाले सूरज कुमार चौधरी का नाता बेहद गरीब परिवार से है, उनके पिता दिहाड़ी मजदूरी कर किसी तरह परिवार का गुजारा करते हैं, हाई स्कूल में पढाई के दौरान खुद सूरज अंडे और भुंजा बेचने का दुकान चलाते थे, COURTकुछ समय तक पान की दुकान भी चलाई, पासी समाज के दलित परिवार से आने वाले सूरज का कहना है कि न्यायिक सेवा अपने आप में गर्व करने वाला है, उसकी कोशिश होगी कि वो लोगों को न्याय दिला सके।

पढाई में होशियार
सूरज कुमार पढाई में मेहनती होने के साथ-साथ बचपन से ही होशियार हैं, उन्होने बीएचयू से ग्रेजुएशन किया है, साथ ही कानून की पढाई करने के बाद वो न्यायिक सेवा की परीक्षा की तैयारी में जुट गये, courtदिन रात कड़े मेहनत करने के बाद उन्होने पहली ही कोशिश में बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा में सफलता हासिल कर ली है, सूरज कुमार चौधरी के जज बनने के बाद उसके घर वाले जहां खुशी से झूम रहे हैं, वहीं इलाके के लोग भी बेहद खुश हैं, कि गरीब दलित परिवार का लड़का न्यायिक सेवा में शामिल हो गया है।

8 भाई और 1 बहन
सूरज कुमार 8 भाई और 1 बहन है, उनका बचपन बेहद गरीबी और किल्लत में गुजरा है, इंटर तक पढाई उन्होने सिकंदरा से ही की, सूरज कुमार चौधरी ने खुद बताया कि गरीबी इस कदर थी कि इंटर तक पढाई करने के दौरान अपने घर के आगे एक छोटी सी गुमटी पर वो अंडे और चना बेचा करते थे, आज वो बेहद खुश हैं कि हर किसी को गौरवान्वित करने वाली न्यायिक सेवा से जुड़ गये हैं, उनकी कोशिश रहेगी कि हर किसी को न्याय दिलाने में भरपूर सहयोग करें, खासकर गरीब तबके के लोगों के बीच कानून के प्रति जागरुकता लाने के लिये वो काम करेंगे। सूरज के पिता कृष्ण नंदन चौधरी ने बताया कि वो दिहाड़ी मजदूर हैं, हालांकि उनका बड़ा बेटा आईआईटी मुंबई से पढाई करने के बाद मर्चेंट नेवी में है, जिससे परिवार की स्थिति मजबूत हुई है, वो अपने बच्चों को हमेशा पढाई के लिये प्रेरित करते थे, वो कहते थे कि अपने समाज और गरीब तबके के लोगों से कहूंगा कि शिक्षा में ताकत है, एक रोटी कम खाएं, लेकिन बच्चों को पढाएं।

इंडिया सपीक से साभार

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