आईवीआरआई में भारतीय मीट संघ का 13वाँ राष्ट्रीय सम्मेलन एवं संगोष्ठी संपन्न

बरेली, 22 नवम्बर। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), इज़तनगर में चल रहे भारतीय मीट विज्ञान संघ का 13वाँ राष्ट्रीय सम्मेलन और राष्ट्रीय संगोष्ठी का कल समापन हो गया । इस अवसर पर संगोष्ठी में शोध पत्र एवं पोस्टर प्रस्तुत करने वाले विजयी वैज्ञानिकों को पुरस्कृत किया गया । इस तीन दिवसीय सम्मेलन का केंद्रीय विषय “मीट सेक्टर में अग्रणी तकनीकों का उपयोग: विकसित भारत के लिए प्रोटीन सुरक्षा की दिशा में” रहा, जिसने उद्घाटन दिवस को शोध, नवाचार, नीति संवाद और उद्योग–अकादमिक सहभागिता से समृद्ध बना दिया।
समापन अवसर पर मुख्य अतिथि सीआईआरजी मखदूम के निदेशक डॉ. मनीष कुमार चाटली ने अपने संबोधन में मांस क्षेत्र में मौजूद चुनौतियों, अवसरों और आवश्यक सुधारों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होने अपने वक्तव्य में डॉ. चाटली ने देश में मांस उत्पादन और प्रसंस्करण से जुड़े कई महत्वपूर्ण तथ्यों व चुनौतियों पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि देश में 3742 पंजीकृत और 89 स्वीकृत स्लॉटरहाउस होने के बावजूद गुणवत्ता, निगरानी और अवसंरचना की स्थिति अभी भी असमान है। भारत के 7 लाख से अधिक गाँवों और 10 लाख से अधिक नगर निकायों में आधुनिक मांस विक्रय और प्रसंस्करण ढांचा अत्यंत सीमित है। निर्यात क्षमता बढ़ाने के लिए हमें ब्राजील जैसे देशों से सीखने की आवश्यकता है, जिन्होंने ब्रांडिंग, एकीकृत सप्लाई चेन और डिजिटल ट्रेसबिलिटी पर वर्षों पहले काम शुरू कर दिया था।
राष्ट्रीय मांस विज्ञान सम्मेलन के समापन सत्र में संयुक्त निदेशक डॉ. एस. के. मेंदीरत्ता ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रतिभागियों की सक्रिय उपस्थिति, अनुशासन और शैक्षणिक उत्साह की सराहना की। उन्होंने कहा कि पहले इस क्षेत्र में लड़कियों की भागीदारी कम देखने को मिलती थी, किंतु अब अधिकतम छात्राएँ मांस विज्ञान के क्षेत्र में आगे आ रही हैं, जो सकारात्मक परिवर्तन का संकेत है। उन्होंने इसे “मांस क्षेत्र के भविष्य के लिए उत्साहजनक रुझान” बताया। उन्होने कहा कि भारतीय मांस निर्यात को अगले 5–10 वर्षों में नई ऊँचाई देने का लक्ष्य है । भारत कई देशों को सीमित मात्रा में ही मांस निर्यात कर रहा है। पिछले सप्ताह रूस से एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल आईवीआरआई आया था, जिसने भारत से मांस आयात की संभावनाओं पर गंभीरता से चर्चा की। उन्होंने कहा कि आने वाले 5–10 वर्षों में भारत को नए बाजारों में मांस निर्यात बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना होगा। उद्योग–उच्च शिक्षा संस्थानों के बीच मजबूत संबंध की आवश्यकता जताई । डॉ. मेंदीरत्ता ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) और यूजीसी दिशा-निर्देशों के अनुसार विद्यार्थियों को अपने एमवीएससी शोध के स्थान पर औद्योगिक परियोजनाओं में कार्य करने का अवसर मिल रहा है।
डॉ मेंदिरता ने कहा कि कई छात्रों को उद्योग में भेजने की योजना बन रही है। इससे छात्र “इंडस्ट्री-रेडी प्रोफेशनल” बनेंगे और स्टार्टअप तथा उद्यमिता के नए अवसर भी खुलेंगे। नेटवर्क प्रोजेक्ट की आवश्यकता – मांस क्षेत्र पर विशेष प्रोजेक्ट की योजना अगले पाँच वर्षों के लिए आईसीएआर की योजना (EFC) तैयार की जा रही है, जिसमें कई नए नेटवर्क प्रोजेक्ट शुरू किए जाएंगे। उन्होंने आग्रह किया कि एनआरसी, विश्वविद्यालय और अन्य संस्थान मांस क्षेत्र से संबंधित एक व्यापक नेटवर्क प्रोजेक्ट का प्रस्ताव तैयार करें, ताकि देशभर में शोध को समन्वित दिशा मिल सके और अनावश्यक दोहराव रोका जा सके। उन्होने उद्योग–संस्थान सहयोग की आवश्यकता बताई और कहा कि बैकवर्ड लिंकज के अभाव में किसानों को वास्तविक लाभ नहीं मिल पाता। उद्योग, कृषि विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और एलपीटी डिवीजन के बीच मजबूत सहयोग समय की आवश्यकता है। उप-उत्पाद के वैज्ञानिक उपयोग और मूल्य संवर्धन पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।
इस अवसर पर, डॉ विकास पाठक, पंडित दीन डायल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, गौ अनुसंधान संस्थान, मथुरा ने प्रतिभागियों से आह्वान किया कि वे निरंतर सीखते रहें, उत्कृष्टता हासिल करें और मीट विज्ञान के उभरते अवसरों का अधिकतम लाभ उठाएँ। भारत को भी “इंडियन बीफ/मीट ब्रांड” विकसित करने की दिशा में काम करना चाहिए ताकि वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिले। उन्होने ट्रेसबिलिटी और डेटा प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता और मांस निरीक्षण को प्राथमिकता देने की अपील की।
एनआरसी मिथुन के निदेशक डॉ गिरीश पाटिल ने कहा कि फ़ार्म-टू-फ़ोर्क ट्रेसबिलिटी” की अनिवार्यता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आज के वैश्विक मांस मूल्य–श्रृंखला में उपभोक्ता का भरोसा तभी बढ़ सकता है जब उत्पादन से लेकर प्रोसेसिंग और उपभोग तक हर चरण वैज्ञानिक रूप से ट्रेसिबल और रिकॉर्ड-आधारित हो। डॉ पाटिल ने स्वच्छ एवं वैज्ञानिक तरीकों से हाइजेनिक मीट प्रोडक्शन की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि देश के मीट सेक्टर में गुणवत्ता, खाद्य–सुरक्षा और नवाचार ही आगे का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
पशुधन उत्पाद प्रोद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ ए आर सेन ने सभी गणमान्य अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि सम्मेलन में प्राप्त सुझावों और संस्तुतियों को संबंधित मंत्रालयों को भेजा जाएगा, जिससे मांस विज्ञान से जुड़ी चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी।
कार्यक्रम का संचालन से डॉ गौरी जैरथ द्वारा किया गया जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ गीता चौहान द्वारा दिया गया, सहित विभिन्न राज्यों से आए निदेशक पूर्व निदेशक एवं वैज्ञानिक अधिकारी शामिल रहे । बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट
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