पुस्तक मेले के मंच ‘लेखकगंज’ में पुस्तक ‘गुमनाम हिन्दू राजा टिकैत राय’ पर हुई चर्चा
लखनऊ। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित पुस्तक मेले के मंच ‘लेखकगंज’ में पुस्तक ‘गुमनाम हिन्दू राजा टिकैत राय’ पर आज चर्चा हुई। लेखक नवल कान्त सिन्हा से सवाल-जवाब की कमान संभाली लखनऊ में अपनी खास पहचान रखने वाले मुकेश बहादुर सिंह और समाजसेवी वर्षा वर्मा ने। पाठकों की ओर से भी कई सवाल पूछे गए। इस अवसर पर तमाम पत्रकार, लेखक और शहर के बुद्धिजीवी वर्ग ने शिरकत की। यहाँ आये अतिथियों का स्वागत प्रकाशक नीरज अरोड़ा ने किया।
वर्षा वर्मा ने परिचर्चा की शुरुआत की तो मुकेश बहादुर सिंह ने सवालों की झड़ी लगा दी। उपस्थित पाठकों की इस सवाल-जवाब से न केवल लखनऊ की जानकारी में वृद्धि हुई बल्कि आनंद भी आया। नवल कान्त सिन्हा का कहना था कि नवाबों की कहानियों के सामने शहर के कई किरदार नही आ सके। इसमें कोई शक नही लखनऊ को आगे बढ़ाने में नवाबों का बड़ा योगदान है। लेकिन ऐसा नही है कि इस शहर में सिर्फ नवाब ही थे। उस दौर में तमाम नायकों ने शहर को आगे बढ़ाया। बहुत से लोगों ने लखनऊ में उल्लेखनीय काम किये लेकिन उनके नाम का जिक्र नवाबों की कहानियों के आगे दब गया। राजा टिकैत राय तो ऐसे नायक थे, जिनके बगैर लखनऊ और अवध का इतिहास अधूरा है।
रोचक सवाल-जवाब में मुकेश बहादुर सिंह ने पूछा कि लखनऊ में ‘नवाबी शौक’ की चर्चा बहुत होती है, ये माजरा क्या है? इस पर नवल कान्त सिन्हा ने बताया कि उनकी किताब में नवाब आसिफुद्दौला और राजा झाऊ लाल की मुहब्बत का जिक्र है। ये कहा जाता है कि नवाब आसिफुद्दौला झाऊ लाल को दिलोजान से चाहते थे। ये बात चर्चा-ए-आम थी। नवाब की इसी प्रेम की चर्चा में नवाबी शौक की शोहरत हुई। फिर ऐसी मुहब्बत को नवाबी शौक कहा जाने लगा।
मुकेश के ही सवाल पर लेखक ने नवाब बेगम सदरुन्निसा और बहू बेगम उम्मत उल जहरा के रसूख का जिक्र किया। साथ ही बताया कि आलिया बेगम, जिनका असली नाम छतरकुँवरि था, कितनी बड़ी हनुमान भक्त थीं। वर्षा के सवाल पर नवल कान्त सिन्हा ने जिक्र किया कि लखनऊ में टिकैतगंज का तालाब, राम जानकी मन्दिर, शीतला माता मन्दिर, काकोरी में बेहटा नदी पर पुल और घाट, वहीं मन्दिर और मस्जिद, टिकैतगंज का इमामबाड़ा, मस्जिद, हैदरगंज मस्जिद, राजा बाजार, नख्खास का इतवार बाजार, ये सब टिकैत राय की देन है। बिठूर में पत्थर घाट, बारादरी और मन्दिर, डलमऊ का पक्का घाट, अयोध्या में हनुमान गढ़ी का मन्दिर उन्होंने बनवाया था। प्रयागराज के हंडिया में दमगढ़ा की दरगाह टिकैत राय ने ही बनवाई थी। पाठकों की तमाम जिज्ञासाओं का लेखक ने समाधान किया।