“रागिनी उपाध्याय स्वर्ण पदक – ललित कला संकाय में एक अच्छी परंपरा की हुई शुरुआत”
लखनऊ कला महाविद्यालय का इतिहास बहुत ही स्वर्णिम रहा है। 1892 में विंगफील्ड मंजिल बनारसी बाग से इस महाविद्यालय की शुरुआत हुई थी। कई पड़ावों से गुजरते हुए साल 1911 से कला एवं शिल्प महाविद्यालय टैगोर मार्ग पर स्थित वर्तमान ऐतिहासिक भवन में चल रहा है। किसी समय में महाविद्यालय का परिसर गोमती तटबंध से लेकर वास्तुकला संकाय को समाहित किए हुए एक विशाल परिसर में था। 1974 में कला महाविद्यालय लखनऊ विश्वविद्यालय में शामिल हुआ और वहीं से संचालित हो रहा है। इस महाविद्यालय का एक गौरव पूर्ण इतिहास है। जहां से निकले छात्र देश विदेशों में कला क्षेत्र में योगदान दिए और आज भी दे रहे हैं। देश को 5 पद्मश्री (सुधीर रंजन खस्तगीर, सुकुमार बासु, रणवीर सिंह बिष्ट, यशोधर मठपाल, श्याम शर्मा) सम्मान देने वाली यह संस्थान जहां प्रधानमंत्री तक आते रहे हैं। इस संस्थान में एक से एक दिग्गज कलाकार रहे हैं जिन्होंने एक से एक दिग्गज कलाकार छात्र भी निकाले। नेपाल, पाकिस्तान के आलावा अन्य कई देशों में यहां से निकले छात्र अपनी कला का परचम लहरा चुके हैं। महाविद्यालय में विभिन्न शीर्ष कलाकारों की चित्रकृतिया, भित्तिचित्र तथा मूर्तिशिल्प यहां की दीवारों और भवनों पर शोभित हैं। जिससे इसका 114 वर्षों का जीवंत इतिहास देखा जा सकता है। एल एम सेन, असित कुमार हाल्दार, मदन लाल नागर, अवतार सिंह पंवार, श्रीधर महापात्र, दिनेश प्रताप सिंह, असद अली जैसे कई कलाकारों की कृतियां आज भी आप देख सकते हैं यहां के भवन पर।
उत्तर प्रदेश की राजधानी में स्थित देश के सबसे पुराने कला महाविद्यालयों में से एक इस कला एवं शिल्प महाविद्यालय, ललित कला संकाय, लखनऊ विश्वविद्यालय में पहली बार कला महाविद्यालय के कला शिक्षा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए एक गोल्ड मेडल दिया गया। और आगे भी उत्कृष्ट प्रदर्शन के दिया जाएगा। यह पदक महाविद्यालय की पूर्व छात्रा रहीं रागिनी उपाध्याय के नाम से (रागिनी उपाध्याय स्वर्ण पदक) है। यह पदक अब हर साल कला महाविद्यालय के छात्रों को लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में दिया जाएगा।
पहली बार इस परंपरा की शुरुआत करते हुए यह गोल्ड मेडल महाविद्यालय से 2025 में ललित कला में स्नातकोत्तर उत्तीर्ण हुए छात्र हेवा कालू अन्नक्कागे वेनुरा दिलशंका डी सिल्वा, जो श्रीलंका के रहने वाले हैं, को लखनऊ विश्वविद्यालय के 68वीं दीक्षांत समारोह में माननीय राज्यपाल उत्तर प्रदेश द्वारा दिया गया।
हेवा कालू अन्नक्कागे वेनुरा दिलशंका डी सिल्वा ने कहा कि मुझे लखनऊ विश्वविद्यालय के कला महाविद्यालय में मास्टर ऑफ विज़ुअल आर्ट्स का अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरे लिए यह गर्व का विषय है कि मुझे स्नातकोत्तर डिग्री में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु “रागिनी उपाध्याय स्वर्ण पदक” से सम्मानित किया गया। यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण सम्मान है, जिसे मैं सदैव संजोकर रखूँगा। इस गौरवपूर्ण अवसर पर मैं अपनी गहरी श्रद्धा और आभार व्यक्त करता हूँ रागिनी उपाध्याय मैडम, कालेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स तथा लखनऊ विश्वविद्यालय का, जिन्होंने मुझे यह प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किया।
ललित कला प्रज्ञा प्रतिष्ठान नेपाल एवं रागिनी उपाध्याय फाउंडेशन की अध्यक्ष ने कहा कि लखनऊ कॉलेज ऑफ़ आर्ट एंड क्राफ्ट्स, लखनऊ विश्वविद्यालय का पूर्व छात्र होने के नाते मेरा इससे गहरा भावनात्मक जुड़ाव है। यह मेरे लिए अत्यंत गर्व की बात है कि अगस्त 2024 में रागिनी उपाध्याय गोल्ड मेडल की स्थापना की गई और 2025 में इसे सम्मानित करना प्रारंभ किया गया। मेरे इस जीवन कला यात्रा की सफलताओं में मेरे इस विश्वविद्यालय के मेरे आदरणीय गुरुओं का मार्गदर्शकों ने मुझे जिस दिशा में पहुंचाया है, उसके लिए मैं उनकी बहुत बड़ी आभारी हूँ। रागिनी उपाध्याय स्वर्ण पदक की स्थापना के प्रयासो के लिए मैं गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट एंड क्राफ्ट, लखनऊ विश्वविद्यालय की पूरी टीम को हृदय से गहरी धन्यवाद भावना व्यक्त करना चाहती हूं l मैं मेधावी कला छात्र वेनेुरा डी सिल्वा को हार्दिक बधाई देता हूँ, जो इस सम्मान को पाने वाले पहले विद्यार्थी हैं और जिन्होंने इस क्षण को ऐतिहासिक बना दिया है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह गोल्ड मेडल आने वाले लंबे समय तक कई प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को प्रेरित करेगा।
रतन कुमार डीन/प्रिंसिपल कला एवं शिल्प महाविद्यालय, ललित कला संकाय,लखनऊ विश्वविद्यालय ने कहा कि यह बताते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थापित देश के सबसे पुराने कला संस्थानों में से एक कला एवं शिल्प महाविद्यालय ललित कला संकाय, लखनऊ जो कि अपने 114 वर्ष ऐतिहासिक काल पूर्ण कर रहा है। और उसमे 114 साल के इतिहास में पहली बार यहाँ की पूर्व छात्रा वी रागिनी उपाध्याय फाउंडेशन नेपाल की अध्यक्ष रागिनी उपाध्याय द्वारा इस महाविद्यालय को एक स्वर्ण पदक भेंट किया गया जो महाविद्यालय के ललित कला शिक्षा के स्नातकोत्तर में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्र को दिए जाने का निर्णय लिया गया है ।जिसे इस वर्ष 2025 में पहला स्वर्ण पदक विश्वविद्यालय के 68वीं दीक्षांत समारोह में माननीया राज्यपाल उत्तर प्रदेश द्वारा श्रीलंका निवासी और कला संकाय से कला स्नातकोत्तर करने वाले छात्र को दिया गया। यह स्वर्ण पदक पहली बार दिया गया है और जो आगे भी निरंतर उकृष्ट छात्र को दिया जायेगा। यह पदक रागिनी उपाध्याय फॉउंडेशन द्वारा दिया गया है। यह एक अच्छी परंपरा की शुरुआत हुई है। इसके आलावा और भी पदक के लिए अभी बात चल रही है जो जल्द ही देने का निर्णय लिया जायेगा। इसके लिए महाविद्यालय के छात्र को शुभकामनायें देता हूँ साथ ही रागिनी उपाध्याय फॉउंडेशन को भी धन्यवाद देता हूँ कि जिन्होंने इस प्रकार का परंपरा की शुरुआत करने की पहल की।
वरिष्ठ कलाकार एवं पूर्व प्रधानाचार्य जय कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि लखनऊ के ऐतिहासिक कला महाविद्यालय से अनेक ख्यात कलाकार उभरे हैं । उन्हीं में एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नैपाली कलाकार रागिनी उपाध्याय ने अपने प्रशिक्षण केन्द कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय में ललित कला के छात्रों को बढ़ावा देने और अपने प्रशिक्षण केन्द्र और गुरुओ के प्रति अपनी सदभावना दर्शाने के आशय से एक स्वर्ण पदक प्रदान किया है।इसका शुभारंभ इसी वर्ष से हो गया और यह क्रम भविष्य में भी रागिनी के नाम का स्मरण कराता रहेगा। रागिनी नैपाल में विकट परिस्थितियों के उपरांत भी स्वयं विश्वविद्यालय के दीक्षातं समारोह में उपस्थित रहीं। मैं रागिनी की भावनाओं की सराहना करता हूँ और आशा करता हं कि उनकी यह पहल अन्य गुणिजनो को भी प्रेरित करेगी।
कला महाविद्यालय के प्रोफेसर आलोक कुमार ने कहा कि आज से लगभग 15 वर्ष पूर्व चंदिका और दिलहर श्री लंका से लखनऊ आर्ट्स कॉलेज पढ़ने आए थे दोनों इस समय कला के जगत में लगातार सक्रिय हैं चंदिका यूके में तो दिलहारा आस्ट्रेलिया में रह रही हैं। विगत 5 वर्षों में इस महाविद्यालय में अनेक छात्र श्रीलंका से पढ़ने आए विशेष कर प्रदीप कुमारथूगा मूर्ति कला में महेश चतुरंगा मूर्ति कला में वेंनूर दिलशानका तथा मैथिश कुमार और ऐसे ही कई छात्र श्रीलंका से फाइन आर्ट्स कमर्शियल आर्ट विषयों में भी पढ़ने के लिए आते रहे हैं। एक विशेष बात यह रही की श्रीलंका से आने वाले वे सभी छात्रों ने भारत की कला एवं संस्कृति में गहन रुचि लिया तथा श्रीलंका और भारत के बीच सांस्कृतिक एवं पारंपरिक संबंधों को और मजबूत किया l
उन्होंने भारतीय कला का बहुत खूबी से अध्ययन किया और यहां के वातावरण के में रच-बस करके अपनी कला को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया वेंनूरा दिलशानका इन सभी में सबसे अधिक होनहार छात्र रहे वे विगत दो वर्षों तक मास्टर आफ विजुअल आर्ट विषय में पेंटिंग मे उपाधि हासिल किया। इस दौरान उन्होंने लगभग 50 कलाकृतियों का निर्माण किया जो सभी उनके काम को लगातार परिपक्वता देते हैं। उन्होंने भारतीय समकालीन कलाकारों तथा श्रीलंका के कलाकारों के बारे में बखूबी अध्ययन किया और अपनी कला को नए निखार के साथ श्रेष्ठतम कलाकृतियां को संयोजित किया। उनकी कलाकृतियों में कंपोजीशन रंग योजना तथा मानव आकृतियां विशेष प्रभावशाली रूप में दिखाई देती हैं कई जगहों पर बिल्कुल मंचन कला जैसे प्रस्तुतियां दिया है। यह अपने आप में एक अद्भुत अविस्मरणीय अनुभव कलाकारों और कला प्रेमियों के बीच में एक यादगार बन जाता है यही कारण था कि उन्होंने पेंटिंग विभाग में मास्टर्स की उपाधि के दौरान सर्वोच्च अंक हासिल किया।
वे सदैव आज्ञाकारी छात्र रहे तथा गुरुओं के प्रति विनम्र भाव रखते हैं ।उन्होंने अपने को दिया गया टास्क हमेशा समय पर पूरा किया है और अपने काम के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है मेरी उनसे बहुत अपेक्षाएं हैं वह निरंतर भारत और श्रीलंका के बीच एक मजबूत ब्रिज का काम करेंगे उनके आने वाली भविष्य के लिए अनेक अनेक शुभकामनाएं।

