अमेरिका ने पाकिस्तान के F-16 बेड़े को दी 5,800 करोड़ की ‘संजीवनी’, भारत की सुरक्षा के लिए चिंता बढ़ी

वॉशिंगटन: अमेरिका ने अपने पुराने सहयोगी पाकिस्तान पर एक बार फिर बड़ी मेहरबानी दिखाई है, जिससे दक्षिण एशिया के रक्षा समीकरणों पर नई बहस छिड़ गई है। बाइडेन प्रशासन ने पाकिस्तान के एफ-16 लड़ाकू विमानों के रखरखाव और आधुनिकीकरण के लिए 686 मिलियन डॉलर यानी करीब 5,800 करोड़ रुपये के पैकेज को मंजूरी दे दी है। पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी (DSCA) ने 8 दिसंबर को इस संबंध में अमेरिकी कांग्रेस को अधिसूचना भेज दी है। हालांकि अमेरिका का तर्क है कि यह मदद आतंकवाद से लड़ने के लिए है, लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इससे भारत की सुरक्षा चुनौतियों में इजाफा होगा।
इस भारी-भरकम पैकेज का सबसे अहम और संवेदनशील हिस्सा ‘लिंक-16 डेटा लिंक सिस्टम’ (Link-16) है। यह अमेरिका और नाटो (NATO) देशों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक अत्याधुनिक और सुपर-सिक्योर कम्युनिकेशन नेटवर्क है। यह सिस्टम युद्ध के दौरान दोस्त और दुश्मन की पहचान करने, हथियार चलाने के को-ऑर्डिनेशन और रियल टाइम जानकारी साझा करने में मदद करता है। खास बात यह है कि यह तकनीक दुश्मन की जैमिंग (संचार बाधा) से भी सुरक्षित रहती है। इस पैकेज में लिंक-16 के अलावा क्रिप्टोग्राफिक उपकरण, नए एवियोनिक्स, पायलट ट्रेनिंग, सिमुलेटर और स्पेयर पार्ट्स भी शामिल हैं। इसके साथ ही टेस्टिंग के लिए 6 निष्क्रिय एमके-82 बम भी दिए जाएंगे।
अमेरिका द्वारा दी गई इस मंजूरी का सीधा मतलब है कि पाकिस्तान के पास मौजूद एफ-16 विमानों की उम्र अब साल 2040 तक बढ़ जाएगी। वर्तमान में पाकिस्तान के पास करीब 75 एफ-16 विमान हैं, जो पाकिस्तानी वायुसेना की रीढ़ माने जाते हैं। भले ही पाकिस्तान ने हाल के दिनों में चीन से जे-10सी और जेएफ-17 जैसे विमान हासिल किए हों, लेकिन एफ-16 की मारक क्षमता और अमेरिकी तकनीक उसे एक अलग बढ़त देती है। लिंक-16 सिस्टम मिलने से पाकिस्तानी पायलट अब अमेरिकी अवाक्स (AWACS) और अन्य लड़ाकू विमानों के साथ सीधे जुड़ सकेंगे, जो किसी भी हवाई जंग में उन्हें बड़ा रणनीतिक फायदा पहुंचा सकता है।

भारत के लिए यह सौदा इसलिए चिंता का विषय है क्योंकि लिंक-16 जैसी संवेदनशील तकनीक पाकिस्तान को अमेरिका और नाटो स्तर की सूचना व कमांड साझा करने की ताकत देती है, जबकि भारत अभी रूसी और इजरायली सिस्टम पर निर्भर है। विशेषज्ञ इसे अमेरिका की नीति में बड़े बदलाव के तौर पर देख रहे हैं क्योंकि 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान के एफ-16 प्रोग्राम के लिए स्पेयर पार्ट्स पर रोक लगा दी थी। अब अचानक इतना बड़ा पैकेज मंजूर करना कई सवाल खड़े करता है। हालांकि, अमेरिका ने सफाई दी है कि इस बिक्री से दक्षिण एशिया में सैन्य संतुलन नहीं बिगड़ेगा और न ही कोई नई मिसाइल या हथियार दिए जा रहे हैं।
अमेरिकी कांग्रेस के पास इस मंजूरी पर आपत्ति जताने के लिए 30 दिन का समय है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से ऐसे रक्षा सौदे आसानी से पास हो जाते हैं। इस प्रोजेक्ट का ठेका अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन को मिलने की संभावना है और डिलीवरी 2026 से शुरू हो सकती है। जहां एक तरफ इस मदद से पाकिस्तानी वायुसेना खुश है कि उसके पुराने घोड़ों को नई जिंदगी मिल गई है, वहीं भारत ने भी अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। भारतीय वायुसेना अपने राफेल, सुखोई-30 एमकेआई बेड़े को मजबूत करने के साथ-साथ स्वदेशी एएमसीए (AMCA) प्रोजेक्ट पर काम तेज कर रही है ताकि हवाई शक्ति का संतुलन बना रहे।

