बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में ‘यौन उत्पीड़न की रोकथाम (POSH – Prevention of Sexual Harrasment)’ पर हुआ जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में दिनांक 6 अक्टूबर को आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की ओर से ‘यौन उत्पीड़न की रोकथाम (POSH- Prevention of Sexual Harrasment)’ विषय पर जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ज्वाइंट सेक्रेटरी डॉ. आशिमा मंगला ऑनलाइन माध्यम से जुड़ी। इसके अतिरिक्त विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्य श्रीमती विजया भारती सयानी एवं आंतरिक शिकायत समिति, बीबीएयू की अध्यक्ष प्रो. आभा मिश्रा उपस्थित रहीं। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं बाबासाहेब के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुई। विश्वविद्यालय कुलगीत गायन के पश्चात आयोजन समिति की ओर से अतिथियों एवं शिक्षकों को पौधा, अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट करके उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। सर्वप्रथम प्रो. आभा मिश्रा ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया एवं सभी को कार्यक्रम के उद्देश्य एवं रुपरेखा से अवगत कराया।
विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि आज के समय में लोग अपने साथ हुए अपराधों के प्रति जागरूक हो रहे हैं और निडर होकर रिपोर्ट भी कर रहे हैं, जो कि अत्यंत सराहनीय पहल है। साथ ही जब समाज के सभी वर्ग मिलकर सामूहिक रूप से प्रयास करते हैं, तभी वास्तविक परिवर्तन संभव होता है। इस अवसर पर उन्होंने ‘विशाखा गाइडलाइन्स’ का उल्लेख करते हुए बताया कि इन दिशा-निर्देशों ने महिलाओं को अपनी आवाज़ बुलंद करने और अन्याय के खिलाफ खड़े होने का एक सशक्त मंच प्रदान किया है। प्रो. मित्तल ने आगे कहा कि आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का उद्देश्य विश्वविद्यालय परिसर को सुरक्षित, संवेदनशील और लैंगिक समानता पर आधारित वातावरण प्रदान करना है। यह समिति प्रत्येक शिकायत को संवेदनशीलता, पारदर्शिता और सक्रियता के साथ सुनती है तथा निष्पक्ष कार्रवाई सुनिश्चित करती है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे अपराधों की रोकथाम के लिए शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच निरंतर संवाद आवश्यक है, जिससे आपसी विश्वास और सम्मान का वातावरण बन सके। विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक परिसरों में लैंगिक संवेदनशीलता को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक जागरूकता एवं सहयोग ही एक समग्र समाधान है।
विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्य श्रीमती विजया भारती सयानी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि आंतरिक शिकायत समिति की प्रमुख जिम्मेदारी विश्वविद्यालय परिसर को सुरक्षित, सम्मानजनक और भयमुक्त वातावरण प्रदान करना है क्योंकि उच्च शिक्षा संस्थान केवल ज्ञान का केंद्र नहीं होते, बल्कि यह विद्यार्थियों के भविष्य को आकार देने का कार्य भी करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से बताया कि 1997 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी ‘विशाखा गाइडलाइन्स’ ने कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए एक ऐतिहासिक दिशा दी। इन गाइडलाइन्स ने संस्थानों को यह बाध्य किया कि वे ऐसी समितियाँ गठित करें जो शिकायतों की जांच करें, पीड़ित को सहयोग प्रदान करें और दोषियों पर कार्रवाई सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थान में ICC की स्थापना न केवल शिकायतों के निवारण का माध्यम है, बल्कि जागरूकता, संवाद और विश्वास की संस्कृति को भी बढ़ावा देती है। श्रीमती सयानी ने विभिन्न केस स्टडीज़ के उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे कई महिलाओं ने साहस दिखाते हुए अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई, जिससे अन्य पीड़ितों को भी प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) भी इस दिशा में विश्वविद्यालयों को मार्गदर्शन प्रदान करता है और मानवाधिकारों से जुड़ी संवेदनशीलता को शैक्षणिक परिसरों में मजबूत करने का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त इन्होंने उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए बनाये गये यूजीसी विनियम 2015, शून्य सहिष्णुता नीति (Zero Tolerance Policy) आदि की विस्तृत जानकारी दी।
यूजीसी ज्वाइंट सेक्रेटरी डॉ. आशिमा मंगला ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा कई ठोस कदम उठाए गए हैं। UGC ने देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की स्थापना अनिवार्य की है, ताकि किसी भी प्रकार के लैंगिक उत्पीड़न की शिकायतों का शीघ्र और निष्पक्ष समाधान हो सके। उन्होंने बताया कि UGC के दिशा-निर्देशों के अनुसार, कोई भी पीड़ित महिला तीन माह के भीतर अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है और आवश्यक होने पर उसके परिवार का कोई सदस्य भी यह शिकायत प्रस्तुत कर सकता है। साथ ही विश्वविद्यालयों में लैंगिक संवेदनशीलता से संबंधित प्रशिक्षण, कार्यशालाएं, जागरूकता अभियान, शिकायत पेटी और हेल्पलाइन नंबर जैसी व्यवस्थाएं अनिवार्य की गई हैं। डिजिटल सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हुए आयोग ने ‘सक्षम पोर्टल’ (SAKSHAM Portal) की शुरुआत की है, जिसके माध्यम से छात्राएँ एवं महिलाएँ अपनी शिकायतें ऑनलाइन दर्ज कर सकती हैं, जिससे प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और सुलभ हो गई है।
कार्यक्रम के दौरान कुलपति जी एवं अतिथियों द्वारा आईसीसी द्वारा तैयार ‘पॉथवे टू सेफ कैंपस’ शीर्षक पर आधारित हैंडबुक का विमोचन किया गया। साथ ही आईसीसी द्वारा आयोजित स्लोगन प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त प्रतिभागियों ने आईसीसी (Internal Complaints Committee), पॉश अधिनियम (POSH Act) एवं महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित विभिन्न प्रश्न पूछे, जिनका उत्तर अतिथियों द्वारा अत्यंत संतोषजनक एवं विस्तारपूर्वक दिया गया। अतिथियों ने न केवल प्रतिभागियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया, बल्कि उन्हें संबंधित नियमों, शिकायत प्रक्रिया तथा विश्वविद्यालय स्तर पर उपलब्ध सहायता तंत्र की विस्तृत जानकारी भी प्रदान की।
इस अवसर पर शिक्षकों, कर्मचारियों एवं विद्यार्थियों के लिए तो विशेष व्याख्यान सत्रों का आयोजन किया गया। प्रथम व्याख्यान सत्र उच्च न्यायालय के अधिवक्ता डॉ. वी.के. सिंह की अध्यक्षता में ‘यूजीसी विनियम 2013 बनाम यूजीसी विनियम 2015 (उच्च शिक्षण संस्थानों – HEIs) लिंग आधारित विशेषताओं सहित’ विषय पर आयोजित किया गया। द्वितीय व्याख्यान सत्र मनोचिकित्सक डॉ. शाजिया सिद्दीकी की अध्यक्षता में ‘यौन उत्पीड़न का मनोवैज्ञानिक प्रभाव: साधन, सहायता और संसाधन’ विषय पर आयोजित हुआ। जागरूकता कार्यक्रम के दौरान कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने और कैंपस में संवेदनशीलता पैदा करने के उद्देश्य से एक मार्च का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के माध्यम से छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों को लैंगिक समानता, सुरक्षा और सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के महत्व के बारे में जानकारी दी गई।
अंत में डॉ. दीपा राज ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समस्त कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, कर्मचारी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में मौजूद रहे।
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