भारत-अमेरिका के बीच कारोबारी बातचीत अटकी, डेयरी-कृषि उत्पादों पर नहीं बन रही सहमति…
वाशिंगटन। भारत और अमेरिका (India and America) के बीच जारी कारोबारी बातचीत बीते कई दिनों से कुछ मुद्दों पर अटकी हुई है.अमेरिकी डेयरी और कृषि उत्पादों को लेकर बनी असहमतियां दूर नहीं हो रही हैं.मगर क्यों? अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप (American President Donald Trump.) के आयात शुल्कों (Import duties) पर लगी अस्थाई रोक की समय सीमा 9 जुलाई को खत्म हो रही है.इससे पहले भारत समेत दुनिया के कई देश कोई समझौता कर लेना चाहते हैं.दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद डॉनल्ड ट्रंप ने कई देशों के खिलाफ भारी आया शुल्क लगाने की घोषणा की थी.उन्होंने भारत पर 26 फीसदी आयात शुल्क लगाया था.भारत इन्हें कम कराने की कोशिशों में जुटा हुआ है.
ट्रंप यह संकेत दे चुके हैं कि दोनों देशों के बीच जल्दी ही कोई बड़ा समझौता होगा.हालांकि ना तो अभी तक इसकी आधिकारिक घोषणा हुई है ना ही कोई घोषणा करने की तारीख.अब तक जो जानकारी मिली है उसके ऐसा लग रहा है कि कृषि उत्पादों को लेकर मामला फंसा हुआ है.भारत के लिए कृषि उत्पादों का आयात क्यों अहम है?खेती बाड़ी और उससे जुड़े चीजें भारत की 3.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था में तकरीबन 16 फीसदी का योगदान करती है.
हालांकि 1. 4 अरब का आबादी वाले देश के लगभग आधे लोगों का रोजगार इसी खेती बाड़ी और उससे जुड़ी सेवाओं से चलता है.किसान आज भी देश में वोटरों का सबसे प्रभावशाली तबका है.इन्हीं लोगों के दबाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की सरकार को अपने विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने पर विवश होना पड़ा था.यह एक दुर्लभ बात थी.अमेरिका से सस्ते आयात की स्थिति में भारत की घरेलू चीजों के दाम भी बढ़ने की आशंकाएं हैं.ऐसे में विपक्षी दलों को सरकार पर हमले का नया मुद्दा मिल जाएगा.
भारत पारंपरिक रूप से अपने कृषि को दूसरे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते के दायरे से बाहर रखता आया है.अमेरिकी सामानों के लिए अपने बाजार खोलने का मतलब है कि उसे यही छूट दूसरे देशों को भी देनी पड़ेगी जिनके साथ उसके कारोबारी संबंध हैं.भारत का बाजार अमेरिकी चीजों के लिए उतना खुला नहीं है.इसकी वजह से कई बार पहले भी अमेरिकी सामान यहां के बाजारों से लौटने पर मजबूर हुए हैं.
भारतीय प्रतिबंधों के चलते कड़वे हुए अमेरिकी बादाम.
अमेरिकी और भारतीय कृषि में फर्कभारत में फार्मों का औसत आकार 1. 08 हेक्टेयर है जबकि इसकी तुलना में अमेरिका के फार्मों का औसत आकार 187 हेक्टेयर है.इसी तरह डेयरी में भारत के औसत किसानों के पास 2-3 मवेशी हैं जबकि अमेरिका के लिए यह संख्या सैकड़ों में है.इस फर्क की वजह से भारत के छोटे किसानों के लिए अमेरिकी फार्म मालिकों से मुकाबला करना कठिन हो जाता है.

भारत में खेती में आज भी कम से कम मशीनों का इस्तेमाल होता है.इसकी एक वजह यह भी है कि छोटे खेतों में बड़ी मशीनें इस्तेमाल नहीं हो सकतीं.कई इलाकों में किसान उन तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो कई पीढ़ियों से उनके परिवार में चली आ रही हैं.अमेरिका में ऐसा बिल्कुल नहीं है.अमेरिकी किसान अत्याधुनिक तकनीकों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस उपकरणों और तौर तरीकों का इस्तेमाल करते हैं.इनकी मदद से उन्होंने खेतों की उत्पादकता काफी ज्यादा बढ़ा ली है.
अमेरिका भारत पर दबाव बना रहा है कि वह अपने बाजार अमेरिकी सामानों के लिए खोल दे.इनमें डेयरी और पॉल्ट्री से जुड़े सामानों के अलावा मक्का, सोयाबीन, चावल, गेहूं, एथेनॉल, रसीले फल, बादाम, सेब, अंगूर, आड़ू, चॉकलेट, कुकीज और फ्रोजेन फ्रेंच फ्राइज जैसी चीजें शामिल हैं.भारत अमेरिकी सेबों और ड्राई फ्रूट के लिए तो बाजार खोलने को तैयार है लेकिन मक्का, सोयाबीन, गेहूं और डेयरी प्रॉडक्ट के लिए ऐसा करने को तैयार नहीं है.भारत जेनेटिकली मोडिफाइड यानी जीएम फूड को अपने यहां बेचने की अनुमति नहीं देता. दूसरी तरफ अमेरिकी कॉर्न और सोयाबीन की उपज जेनेटिकली मोडिफाइड है.
मेक्सिको समेत कई देश जीएम फूड पर रोक लगा रहे हैं.सबसे अधिक पेचीदा मामला डेयरी का है.भारत के लिए यह उनकी संस्कृति से जुड़ा हुआ है और इसमें लोगों की पसंद नापसंद का मामला भी काफी बड़ा है.भारत के लोग खासतौर से अमेरिका के मवेशियों को लेकर चिंता में हैं जिन्हें ऐसे घास फूस, मक्का और सोयाबीन के अलावा ऐसी चीजें भी खिलाई जाती हैं जो जंतुओं से हासिल होती हैं.यह खासतौर से भारतीय खानपान की आदतों के विरुद्ध है.
अमेरिकी एथेनॉल का विरोध क्योंभारत के इथेनॉल मिले पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम का मकसद है ऊर्जा के आयात को घटाना.ईबीपी के लिए गैसोलीन में घरेलू एथेनॉल को मिलाया जाता है.घरेलू कंपनियों के बड़े निवेशों को दम पर भारत वहां पहुंचने के करीब है जब 20 फीसदी तक एथेनॉल मिलाया जाएगा.अगर भारत ने एथेनॉल का आयात शुरू कर दिया तो इन कंपनियों का बहुत नुकसान होगा.ईबीपी के जरिए चावल, गन्ना और मक्के की अतिरिक्त फसल का एथेनॉल बनाने में इस्तेमाल हो जाता है.अगर भारत ने अमेरिकी एथेनॉल के आयात की मंजूरी दे दी तो इससे भारत के उभरते डिस्टीलरी सेक्टर को बड़ा झटका लगेगा।