रूस पर अमेरिकी प्रतिबंध की डेडलाइन खत्म, क्या भारत रूसी तेल खरीदना बंद करेगा?
नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूस (Russia) की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लूकोइल (Lukoil) पर लगाए गए प्रतिबंधों की समय सीमा 21 नवंबर, 2025 को समाप्त हो गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भारत के रूसी कच्चे तेल आयात को कम करने और उसे अन्य स्रोतों की ओर मोड़ने में एक प्रभावी माध्यम साबित हो सकता है, लेकिन रूसी तेल का प्रवाह पूरी तरह से समाप्त होने की संभावना कम है।
वैश्विक डेटा प्रदाता केप्लर के अनुसार, 20 नवंबर तक भारत के लिए रूसी कच्चे तेल की लोडिंग लगभग 982 kbd रही, जो अक्टूबर 2022 के बाद सबसे कम है। इस वर्ष भारत के कुल रूसी तेल आयात में रोसनेफ्ट और लूकोइल का योगदान लगभग 60% रहा है। इन दो प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं पर प्रतिबंध लगने से भारतीय रिफाइनरियों के पास उनसे खरीद रोकने के अलावा सीमित विकल्प बचा है। केप्लर का अनुमान है कि 21 नवंबर की समय-सीमा के बाद न्यारा एनर्जी को छोड़कर सभी भारतीय रिफाइनरियां प्रत्यक्ष रूप से प्रतिबंधित रूसी संस्थाओं से कच्चे तेल की खरीद बंद कर देंगी। इससे दिसंबर और जनवरी में रूसी तेल की डिलीवरी में काफी कमी आने की उम्मीद है।
रूसी कच्चे तेल के सबसे बड़े खरीदारों में से एक रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) ने अमेरिकी और यूरोपीय संघ (EU) के प्रतिबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। RIL ने 20 नवंबर से अपनी निर्यात-केंद्रित (SEZ) रिफाइनरी में रूसी कच्चे तेल का आयात रोक दिया है।

कंपनी ने घोषणा की है कि 1 दिसंबर से SEZ रिफाइनरी से सभी उत्पाद निर्यात गैर-रूसी कच्चे तेल से प्राप्त किए जाएंगे, ताकि जनवरी 2026 से लागू होने वाले EU के प्रतिबंधों का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके। 20 नवंबर को या उसके बाद आने वाली रूसी तेल की खेप को घरेलू टैरिफ क्षेत्र (DTA) रिफाइनरी में संसाधित किया जाएगा, जिससे निर्यात प्रतिबंधों का उल्लंघन न हो। हालांकि आयात में शुरुआती गिरावट स्पष्ट है, विशेषज्ञ मानते हैं कि रूसी तेल का प्रवाह पूरी तरह से बंद नहीं होगा।
केप्लर का अनुमान है कि रिफाइनरियां गैर-प्रतिबंधित व्यापारियों, मिश्रित तेल स्रोतों और जटिल लॉजिस्टिक्स का उपयोग करते हुए अधिक सतर्क रुख अपनाएंगी। रूसी आपूर्ति गायब नहीं होगी, लेकिन बढ़ते हुए अपारदर्शी चैनलों के माध्यम से आगे बढ़ेगी। शिपिंग पैटर्न में बड़े बदलाव दिख रहे हैं, जैसे कि भारत और चीन के बीच अप्रत्याशित मार्ग परिवर्तन और मुंबई के तटरेखा के पास असामान्य जहाज-से-जहाज स्थानांतरण। भारत की ऊर्जा नीति भू-राजनीतिक दबाव के बजाय सस्ती कीमत और आपूर्ति सुरक्षा को प्राथमिकता देना जारी रखेगी। केप्लर के अनुसार, “छूट वाले रूसी बैरल मार्जिन के लिए आकर्षक बने रहेंगे।”

