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पहले बड़े फैसलों के पीछे राजनैतिक स्वार्थ होता था, अब नेशनल गोल के लिए होते हैं रिफॉर्म: PM मोदी

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने शनिवार को एक समिट में भारत (India) में आए बदलावों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि एक समय था, जब भारत में रिफॉर्म्स रिएक्शनरी (Reforms Reactionary) होते थे, यानी कि बड़े फैसलों के पीछे या तो राजनैतिक स्वार्थ होता था या फिर किसी क्राइसिस को मैनेज करना होता था। लेकिन आज नेशनल गोल को देखते हुए रिफॉर्म होते हैं। टारगेट तय है। उन्होंने कहा, ”देश के हर सेक्टर में कुछ न कुछ बेहतर हो रहा है। हमारी गति कॉन्स्टेंट है, डायरेक्शन कंसिस्टेंट है और हमारा इंटेंट नेशन फर्स्ट का है। 2025 का पूरा साल ऐसे ही रिफॉर्म का साल रहा है। सबसे बड़ा रिफॉर्म नेक्स्ट जेनरेशन जीएसटी का था। इसका असर क्या रहा, पूरे देश ने देखा।

उन्होंने आगे कहा, ”इसी साल डायरेक्ट टैक्स सिस्टम में भी बहुत बड़ा रिफॉर्म हुआ है। 12 लाख तक की इनकम पर जीरो टैक्स, एक ऐसा कदम रहा, जिसके बारे में एक दशक पहले तक सोचना भी असंभव था। रिफॉर्म के इसी सिलसले को आगे बढ़ाते हुए अभी तीन-चार दिन पहले, स्मॉल कंपनियों की परिभाषा में बदलाव किया गया है। इससे हजारों कंपनियां आसान नियमों, तेज प्रक्रियाओं और बेहतर सुविधाओं के दायरे में आ गई हैं। हमने करीब 200 प्रोडक्ट कैटेगरीज को मैंडेटरी क्वालिटी कंट्रोल के ऑर्डर से बाहर कर दिया है। आज के भारत की यह यात्रा सिर्फ विकास की नहीं है। यह सोच में बदलाव की भी यात्रा है।”

‘गुलामी की मानसिकता विकसित भारत में बड़ी रुकावट’
एचटी लीडरशिप समिट में पीएम मोदी ने कहा, ”कोई भी देश बिना आत्मविश्वास के आगे नहीं बढ़ सकता है। दुर्भाग्य से लंबी गुलामी ने देश के इसी आत्मविश्वास को हिला दिया था। इसकी वजह थी गुलामी की मानसिकता। यह मानसिकता विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति में एक बहुत बड़ी रुकावट है। इसलिए आज का भारत गुलामी की मानसिकता से मुक्ति पाने के लिए काम कर रहा है। अंग्रेजों को अच्छी तरह से पता था कि भारत पर लंबे समय तक राज करना है तो उन्हें उनके आत्मविश्वास को छीनना होगा, उनमें हीनभावना का संचार करना होगा। उस दौर में अंग्रेजों ने यही किया भी। इसलिए भारतीय पारिवारिक संरचना को दकियानुसी बताया गया। भारतीय पोशाक को अनप्रोफेशनल करार दिया गया। संस्कार, त्योहार संस्कृति को इरेशनल कहा गया। योग-आयुर्वेद को अनसाइंटिफिक बताया गया। भारतीय अविष्कारों का उपहास उड़ाया गया और यह बातें कई दशकों तक दोहराई गई। पीढ़ी दर पीढ़ी चलता गया। यही पढ़ाया गया और ऐसे ही भारतीयों का आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया।”

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