राजनीति

तुष्टीकरण और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी हेमंत सरकार, चुनाव में हो सकती है स्थिति कमजोर !

नई दिल्ली: झारखंड के आने वाले राज्य चुनाव एक महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं. हेमंत सोरेन की सरकार को भ्रष्टाचार और तुष्टीकरण की राजनीति के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है. इन मुद्दों से सरकार की छवि पर बुरा असर पड़ सकता है और यह चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकता है. हेमंत सोरेन की सरकार के खिलाफ सबसे गंभीर चुनौती भ्रष्टाचार के आरोप हैं, खासकर भूमि घोटालों को लेकर. प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा की जा रही जांच में यह खुलासा हुआ है कि कई भूमि सौदे अवैध तरीके से किए गए हैं. इनमें उन जमीनों की बिक्री शामिल है जिनकी कानूनी स्थिति बदल दी गई थी. इन खुलासों से झारखंड मुक्ति मोर्चा की छवि खराब हुई है और पारदर्शी शासन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठे हैं.

झारखंड जैसे राज्य में, जहां भूमि स्वामित्व और संसाधन प्रबंधन बहुत संवेदनशील मुद्दे हैं, ऐसे मामलों से जनता का विश्वास प्रभावित होता है. अगर यह धारणा बनती है कि कुछ राजनीतिक संपर्क वाले लोग आम लोगों की कीमत पर लाभ उठा रहे हैं, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थिति पर बुरा असर पड़ेगा. पार्टी जो आदिवासियों के अधिकारों और समान विकास का दावा करती है, के लिए यह घोटाला उसके मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

झारखंड मुक्ति मोर्चा की चुनावी संभावनाओं को और भी नुकसान पहुंचाने वाली बात उसकी तुष्टीकरण की राजनीति है. सरकार पर आरोप है कि वह कुछ अल्पसंख्यक समुदायों को खुश करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल कर रही है, जैसे कि धार्मिक उद्देश्यों के लिए अवैध भूमि कब्जे. हजारीबाग और सिमडेगा जैसे जिलों में सरकारी जमीन पर चर्च, कब्रगाह और अन्य धार्मिक संरचनाओं के निर्माण की रिपोर्ट्स ने आदिवासी इलाकों में तनाव पैदा कर दिया है. विशेष रूप से, जाहरथान जैसे आदिवासी पूजा स्थलों की जमीन को कब्रगाहों के लिए कब्जे में लेना एक बहुत ही विवादित मुद्दा बन गया है. आदिवासी समूह इसे उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर हमला मानते हैं। इस तरह की कार्रवाइयां झारखंड मुक्ति मोर्चा के पारंपरिक आदिवासी समर्थन आधार को नाराज कर सकती हैं.

बीजेपी जो खुद को सोरेन सरकार का विकल्प मानती है, इन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. भाजपा भ्रष्टाचार पर फोकस करके और आदिवासी मुद्दों को उठाकर, सरकार की नाकामी को उजागर कर रही है. बीजेपी का “मिला क्या?” कैंपेन ने ग्रामीण इलाकों में काफी समर्थन हासिल किया है. भ्रष्टाचार और आदिवासी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके, भाजपा खुद को एक ऐसी पार्टी के रूप में पेश कर रही है जो अच्छी सरकार और झारखंड की आदिवासी विरासत की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है.अगर विपक्ष इन मुद्दों का सही तरीके से फायदा उठाता है, तो झारखंड की राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है. भाजपा की पारदर्शिता और आदिवासी सशक्तिकरण की योजनाओं से झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थिति कमजोर हो सकती है.

theindiadaily.com से साभार

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