रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत कार्यशाला का आयोजन: संगीत के विविध स्वरूपों पर हुई चर्चा और रागों का प्रस्तुतीकरण

बरेली, 05 नवम्बर। महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय बरेली के विश्वविद्यालय सांस्कृतिक केंद्र द्वारा कल दिनांक 4 नवंबर 2025 को माननीय कुलपति प्रो.के.पी.सिंह जी के संरक्षण में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें भारतीय संगीत के विभिन्न स्वरूपों की न केवल चर्चा की गई बल्कि उनको विभिन्न रागों के प्रस्तुतीकरण के माध्यम से भी विद्यार्थियों को सिखाया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण और सरस्वती वंदना से किया गया। सांस्कृतिक समन्वयक डॉ. ज्योति पाण्डेय द्वारा स्वागत भाषण दिया गया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं संगीत विशेषज्ञ प्रो. अलंकार सिंह, विभागाध्यक्ष, संगीत विभाग पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला द्वारा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विभिन्न आयामों पर अपने विचार व्यक्त किए तथा इसके साथ ही साथ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के विभिन्न स्वरूपों को अलग अलग रागों की प्रस्तुति एवं वादन के माध्यम से विद्यार्थियों को सिखाया गया ।
इस अवसर पर प्रो. अलंकार सिंह जी ने कहा कि भारतीय शास्त्रीय संगीत का इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है संगीत मानव सभ्यता के आरंभ से ही सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का आधार रहा है। इसकी शुरुआत वैदिक काल में हुई और प्राचीन ग्रंथों में भी संगीत और वाद्य यंत्रों का विस्तृत उल्लेख मिलता है। तानसेन, अमीर खुसरो ,स्वामी हरिदास जैसे महान संगीतकारों ने भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को बढ़ाया और गुरु शिष्य परंपरा के माध्यम से मौखिक रूप से संगीत का ज्ञान अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम बना। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत भारतीय संस्कृति तथा संगीत की विभिन्न शैलियों और परंपराओं को भी दर्शाता है। भारतीय संगीत में रागों का समृद्ध इतिहास रहा है। संगीत की स्वर व्यवस्था और भाव के आधार पर भैरव, यमन, बिलावल, भैरवी आदि राग संगीत की शिक्षा में प्रयोग किए जाते हैं। राग की संरचना में आरोह,अवरोह, कोमल और तीव्र स्वर शामिल रहते है। उन्होंने उत्तर भारतीय संगीत पद्धति तथा दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति के मुख्य अंतर को भी विद्यार्थियों को स्पष्ट किया और विशेष रूप से पीलू राग और बिलावल राग की संरचना को समझाया। संगीत सीखते समय किन किन शुद्धियों का ध्यान रखना चाहिए इस पर भी प्रकाश डाला और अपने विशेष अंदाज में उन्होंने शास्त्रीय संगीत और रागों पर आधारित मां सरस्वती की स्तुति के साथ ग़ज़ल शैली का प्रदर्शन किया। रुहेलखंड परिक्षेत्र में स्थित रुहेलखंड विश्वविद्यालय को विशिष्ट स्थान प्रदान करते हुए उन्होंने रुहेलखंड क्षेत्र की लोक संस्कृति और शैली को प्रदर्शित करते हुए लोक गीतों की भी प्रस्तुति दी ।
गुरु नानक जयंती के अवसर पर आयोजित इस कार्यशाला में उन्होंने इस पर्व को मानवता , एकता और सेवा के उत्सव के रूप में मनाने के साथ सर्वधर्म समभाव की शिक्षा भी शिक्षकों और गुरुओं से लेने को कहा । सांस्कृतिक समन्वयक डॉ.ज्योति पाण्डेय ने बताया कि इस कार्यशाला का आयोजन केवल परिसर स्थित संगीत क्लब के विद्यार्थियों के लिए ही नहीं किया गया इसके साथ ही साथ रुहेलखंड विश्वविद्यालय से संबद्ध सभी महाविद्यालय जहां संगीत का विभाग है , वहां के विद्यार्थियों को भी इस कार्यशाला हेतु आमंत्रित किया गया तथा संबद्ध महाविद्यालय से विद्यार्थियों ने आकर इस कार्यशाला में प्रतिभाग किया और यह कार्यशाला विद्यार्थियों के संगीत विषयक ज्ञान हेतु उपयोगी सिद्ध हुई। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सौरभ वर्मा ने किया । मंच संचालन मेधावी वर्मा द्वारा किया गया। कार्यशाला के आयोजन में कुलसचिव श्री हरीश चंद, सांस्कृतिक समन्वयक डॉ. ज्योति पाण्डेय ,डॉ. इंद्रप्रीत कौर, डॉ.हरीश भट्ट, डॉ. रीना पंत, डॉ.सौरव वर्मा,डॉ. अतुल कटियार, डा.संध्या रानी, डॉ.भूपेंद्र सिंह, डॉ.अंकिता, डॉ.जयश्री मिश्रा, डॉअनुपमा महरोत्रा, डॉ.रेणु उपाध्याय, डॉ.अमित कुमार सिंह, श्री तपन वर्मा, डॉ.अंकिता आदि का सहयोग रहा। कार्यशाला में बरेली कॉलेज , अवंती बाई महिला महाविद्यालय, साहू राम स्वरूप महिला महाविद्यालय, आर्य कन्या महाविद्यालय, बरेली ,रज़ा कॉलेज,रामपुर, शाहजहांपुर, बदायूं पीलीभीत आदि के संगीत के विद्यार्थियों के साथ साथ संगीत क्लब से पंखुड़ी कंचन, पीयूष पाल, महक ,समर्थ , दीक्षा, रुचिका, आभाश्री, स्नेहा, नेहा, प्रिंस, तनुजा, अश्वनी, अंजलि, विपिन, मुकुल, रश्मि, निष्ठा, सहित 120 से अधिक विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया।

बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट

