उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी और एसआरएमएस रिद्धिमा के संयुक्त तत्वावधान में संभागीय नाटक समारोह का शुभारम्भ
बरेली,19 फरवरी । उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी लखनऊ और एसआरएमएस रिद्धिमा के संयुक्त तत्वावधान में बरेली में पहली बार संभागीय नाटक समारोह रिद्धिमा आडिटोरिया में आरंभ हुआ। मंगलवार को समारोह का आरंभ प्रसिद्ध लेखक, कहानीकार सागर सरहदी लिखित नाटक मसीहा से किया गया। कन्सर्ड थिएटर लखनऊ की ओर से प्रस्तुत और अनुपम बिसारिया निर्देशित इस नाटक में वर्ष 1947 के भारत विभाजन पर शरणार्थियों की सामाजिक एवं मानसिक मनोदशा को उठाया गया। नाटक का आरंभ भारत पाकिस्तान सरहद पर भारत में एक शरणार्थी शिविर से होता है। जिसमें सारे निर्वासित शरणार्थी बिछड़ गए अपने प्रियजनों, परिवार के सदस्यों का इंतज़ार करते हैं। सरहद के दोनों तरफ दोनों मुल्क के सिपाही तैनात हैं, जो विभाजन से पहले एक ही गांव में रहते थे। मास्टर संतराम भी पाकिस्तान से आया एक शरणार्थी है, जो रोज अपनी बहन का इंतज़ार करता है, जिसे उसके ही शागिर्द उठा ले गये। जिन्हे मास्टर ने पढ़ाया था। वतन के लिए क़ुर्बान होने का हौसला दिया था। मां- बहन की इज्जत करने की तालीम दी थी। हिंदुस्तानी कैप्टन भी मास्टर का शागिर्द रहा है, इसलिए उनकी बहन को उनसे मिलाने में उनकी मदद करता है। उनके दुख बांटने की भी कोशिश करता है। इन सबके बीच इन्हीं हालातों का मारा एक किरदार गुमनाम भी है, जो खौफनाक मंजरों को भूलने के लिए हर वक़्त नशे में डूबा रहता है। एक दिन कैप्टन मास्टर की बहन लाडली को लेकर आता है, जो मानसिक, शारीरिक यातनाओं से अर्धविक्षिप्त हो गई है। भाई से मिलकर जब वो होश में आती है तो उसमें भाई से आँख मिलाने का साहस नहीं रहता और वो वापस पाकिस्तान की सरहद की तरफ भागती है, उसे बचाने मास्टर भी भागता है और इसी में दोनों लोग सिपाहियों की गोलियों का शिकार हो जाते हैं। तब गुमनाम चीख चीख कर लोगों को बताता है कि देश का विभाजन करने वाले राजनेता इन मुल्कों के मसीहा नहीं है, बल्कि मसीहा वो शरणार्थी हैं जिनके अपनों की लाशों पर चंद सियासतदानों ने भारत का विभाजन कर दिया और दोनों मुल्कों के बीच सरहद की लकीर खींच दी। विभाजन की त्रासदी को दिखाता हुआ नाटक यहीं पर समाप्त हो जाता है। नाटक में गौतम राय ने भारतीय सिपाही और नीरज दीक्षित ने पाकिस्तानी सिपाही की भूमिका निभाई। अश्वनी मक्खन (मास्टर संतराम), योगेश शुक्ला (कैप्टेन), अनुपम बिसरिया (गुमनाम) और अनीता वर्मा (लाडली) ने भी सशक्त अभिनय किया। नाटक में प्रकाश संयोजन की जिम्मेदारी देवाशीष मिश्रा, संगीत की जिम्मेदारी अभिषेक यादव, मुख सज्जा की जिम्मेदारी अंशिका क्रिएशन, वेशभूषा की जिम्मेदारी प्रणव त्रिपाठी ने निभाई। मंच निर्माण एवं व्यवस्था समीर और आदर्श की रही। इस अवसर पर एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक व चेयरमैन देव मूर्ति जी, उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी की ड्रामा डायरेक्टर शैलजा कांत, ट्रस्टी आशा मूर्ति जी, उषा गुप्ता जी, सुभाष मेहरा, डा.प्रभाकर गुप्ता, डा.अनुज कुमार, डा. शैलेन्द्र सक्सेना, डा.रीटा शर्मा और शहर के गणमान्य लोग मौजूद रहे।
बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट