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भारत अपनी दूसरी न्यूक्लियर पनडुब्बी INS अरिघात को कमीशन करने जा रहा, 750-किमी रेंज के K-15 मिसाइलें होंगी

नई दिल्ली : भारतीय नौसेना लगातार समंदर में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटी है। चीन की ओर से बढ़ते खतरे को देखते हुए इंडिया भी अपनी नौसैनिक पावर को मजबूत करना चाहता है। यही वजह है कि देश को जल्द ही दूसरी परमाणु मिसाइल पनडुब्बी मिलने जा रही। न्यूक्लियर पावर से लैस ये सबमरीन जल्द ही तैनाती के लिए तैयार है। सिर्फ यही नहीं देश में दो और न्यूक्लियर पावर अटैक सबमरीन के निर्माण से प्रोजेक्ट को भी अंतिम मंजूरी मिलने वाली है। इससे हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती नौसैनिक धमक पर लगाम लग सकती है। जानिए आईएनएस अरिघाट की पावर, जिसके आने से चीन को समंदर में मिलेगी कड़ी चुनौती।

विशाखापत्तनम के शिप-बिल्डिंग सेंटर (SBC) में निर्मित 6,000 टन की आईएनएस अरिघाट कमीशन के लिए तैयार है। समंदर में इसकी तैनाती से पहले सभी जरूरी ट्रायल्स पूरे हो चुके हैं। इन ट्रायल्स में सफलता के बाद अब ये औपचारिक तौर पर कमीशनिंग के लिए पूरी तरह से तैयार है। इन परीक्षणों में कुछ तकनीकी मुद्दों को दूर किया गया। टीओआई से बातचीत में एक सोर्स ने बताया कि एसएसबीएन को एक या दो महीने के भीतर कमीशन कर दिया जाएगा। इसके बाद आईएनएस अरिघाट अपनी सहयोगी आईएनएस अरिहंत के साथ मिलकर भारतीय नौसेना को मजबूती देगी। आईएनएस अरिहंत 2018 से पूरी तरह ऑपरेशनल है।

आईएनएस अरिघाट भी आईएनएस अरिहंत की तरह 750 किलोमीटर रेंज की K-15 मिसाइलों से लैस होगी। हालांकि, तीसरा SSBN आने से इंडियन नेवी और मजबूत होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि 7,000 टन का INS अरिदमन 3,500 किलोमीटर रेंज की K-4 मिसाइलों के साथ अगले साल शुरू होगा। चौथा SSBN, जो अधिक K-4 मिसाइलों को ले जाने में सक्षम होगा, इसका निर्माण भी दशकों पहले शुरू की गई गुप्त 90,000 करोड़ रुपये की उन्नत प्रौद्योगिकी पोत (ATV) परियोजना के तहत किया जा रहा है। 13,500 टन के SSBN को और अधिक शक्तिशाली 190 मेगावाट रिएक्टरों के साथ बनाने की योजना है। लंबी दूरी की मिसाइलों वाले बड़े SSBN भारत के प्रतिरोध को अधिक विश्वसनीयता प्रदान करेंगे।

इसके साथ ही, भारतीय नौसेना की ताकत में इजाफे के लिए कुछ और प्रोजेक्ट को मंजूरी का इंतजार है। इसमें पारंपरिक (नॉन न्यूक्लियर) वारफेयर फ्रंट, टॉरपीडो, एंटी शिप और लैंड अटैक मिसाइलों से लैस, दो परमाणु-ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों की भी तैयारी है। इसके स्वदेश में निर्माण के लिए लगभग 40,000 करोड़ रुपये की परियोजना अंतिम मंजूरी के लिए पीएम की अध्यक्षता वाली सुरक्षा पर कैबिनेट समिति के समक्ष रखा गया है।

एसबीसी में ‘प्रोजेक्ट-77’ के तहत शुरुआत में छह ऐसी 6,000 टन ‘हंटर-किलर’ सबमरीन, जिसे एसएसएन कहा जाता है, को बनाने की प्लानिंग थी। हालांकि, इसे पहले घटाकर तीन कर दिया गया और अब यह दो जहाजों पर आ गया है। पहले दो SSN के निर्माण में कम से कम एक दशक लगेगा, जो लगभग 95 फीसदी स्वदेशी होंगे, जबकि अगले चार को बाद के फेज में मंजूरी दी जाएगी। लंबे समय से स्वीकृत योजनाओं के अनुसार, भारत को चीन और पाकिस्तान से दोहरे खतरे से निपटने के लिए कम से कम 18 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों, चार एसएसबीएन और छह एसएसएन की आवश्यकता है।

मौजूदा स्थिति पर गौर करें तो देश में इस समय आईएनएस अरिहंत में केवल एक एसएसबीएन है। जो इसके मूल में 83 मेगावाट के प्रेसराइज्ड रिएक्टर से संचालित है। इसके अलावा 16 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं। वहीं पारंपरिक पानी के नीचे के लड़ाकू बेड़े में छह पुरानी रूसी और चार जर्मन HDW पनडुब्बियां शामिल हैं। इसके अलावा छह नए फ्रांसीसी मूल के स्कॉर्पीन भी शामिल हैं। दूसरी ओर, चीन के पास पहले से ही 60 पनडुब्बियां हैं। वह तेजी से और अधिक निर्माण कर रहा है। इसके बेड़े में छह जिन-श्रेणी के एसएसबीएन शामिल हैं, जो JL-3 मिसाइलों से लैस हैं जिनकी स्ट्राइक रेंज 10,000 किमी है, और छह एसएसएन हैं। आईएनएस अरिघाट के आने से भारत की समंदर में न्यूक्लीयर सबमरीन की पावर में इजाफा होगा। इससे जमीन, हवा और समुद्र से परमाणु हथियार दागने की क्षमता को मजबूती मिलेगी।

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