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आस्था का महा कुम्भ अमरत्व और मोक्ष का विचार —- आज के सन्दर्भ में

ज्योति किरण सिन्हा

स्तंभ: इन दिनों हर कोई कुंभ की बातें कर रहा है ,आस्था ,श्रद्धा भक्ति के रंग में डूब रहा है जो प्रयागराज जाकर नक्षत्रों के दुर्लभ संयोग में त्रिवेणी में अमरत्व की आस लगा डुबकी लगा आया वो अपने सौभाग्य की कहानी सोशल मीडिया में सुना रहा है जो नहीं जा पाए किसी कारण वश या सिर्फ टीवी में आस्था के इस महापर्व को देखकर मन मसोस कर रह जा रहे हैं कुछ लोग जो आगे के पवित्र स्नान की तैयारी में लगा है हर कोई अमरत्व और मोक्ष का भाव लिए बैठे हैं।

अमरत्व का विचार या कांसेप्ट मुझे लगता है उस सतयुग ,त्रेता युग या उस काल प्रचलित हुआ होगा जब इस धरती पे लोगों का जीवन बेहद सुख ,शांति संतुष्ठी पवित्रता से भरा हुआ होगा जब समाज में सद्भावना , निश्छलता , नैतिकता , रिश्तों में प्रेम ,आपसी विश्वास मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता सहज रूप से हर किसी के व्यवहार में दृष्टिगत होती होगी। जब हम प्रकृति को ही सर्व शक्ति मान विधाता के रूप में पूजते रहे होंगे ,जब राजा , गुरु या सम्प्रदाय के अहंकार की लड़ाई नहीं होती रही होगी जब समाज वसुधैव कुटुंबकम की भावना से चलता रहा होगा जब ” मैं ” का विचार ही नहीं होगा। उस वक़्त धरती अपनी सुन्दरतम अवस्था में होगी और लोग प्रकृति की गोद में इतना सुखमय जीवन जीते रहे होंगे कि वो मृत्यु चाहते ही नहीं होंगे और अमृत की कुछ बूंदे पीकर सदा के लिए जीवित रहन चाहते होंगे।

हमारे देश में पवित्र नदियों में स्नान कर पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति की बहुत मान्यता है कुम्भ में अमृत स्नान कर मोक्ष भी मिलेगा तो लगा अमरत्व और मोक्ष दोनों का विचार साथ साथ साधारण मनुष्य को भ्रमित कर सकता है साधारणतः जान मानस मोक्ष का अर्थ जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति यानी बार बार जन्म लेकर इस संसार के दुःख दर्दों से छुटकारा पाने का उपाय को ही मोक्ष समझता है ,जिसके लिए जीवन भर सत्कर्म ,सत्विचार ,सदाचार का अनुशासन मानना होगा फिर भी पता नहीं मोक्ष मिलेगा या नहीं वो तो मरने के बाद ही पता चलेगा। पर यहाँ मोक्ष का गहन अर्थ आत्मा का शुद्ध स्वरुप प्राप्त करना है जिस अवस्था में आत्मा को अंनत ज्ञान , अनंत दर्शन ,अनंत सुख ,अनंत शक्ति प्राप्त होती है।

मोक्ष वह अवस्था है जिसमें हर दुःख ,हर शंका हर दर्द से मुक्ति है
मोक्ष की स्थिति में मन शांत हो कर बुद्धि को संशय मुक्त कर देता है
मनुष्य जीवन के चार मुख्य उद्देश्य धर्म ,अर्थ ,काम, मोक्ष जिन्हें पुरुषार्थ चतुष्टय कहते हैं में मोक्ष प्राप्ति ईश्वर की इच्छा मानी जाती है पर उसको प्राप्त करने के लिए अष्टांग योग को बहुत महत्त्व दिया जाता है जिसके द्वारा ही मनष्य शरीर में रहते हुए तन ,मन, बुद्धि अनुशासित रह उतकृष्ट आचरण कर सकते हैं।
कुम्भ में मोक्ष की आशा से जाने वाले जनमानस को मोक्ष का सच्चा अर्थ भी जांनना ज़रूरी है। कुम्भ स्नान सिर्फ़ भीड़ चाल नहीं हो यहां डुबकी लगाने का सांकेतिक अर्थ स्वयं में डुबकी लगाना है स्वयं में गहराई में उतरकर स्वयं की तलाश करना है स्वयं को पाना ही ईश्वर को पाना है क्यूंकि अहम् ब्रम्हास्मि। ब्रह्मः जो बाहर है वही हमारे अंदर भी। बस यही अध्यात्म की बातें जानने के लिए कुम्भ की ये सकारात्मक ऊर्जा ज़रूरी है

रही अमरत्व की बात
अमरत्व के इस विचार से आज के दौर में मैं भयभीत हूँ
हम कुम्भ में पुण्य स्नान कर आएं, हमें अमृत मिल जाए और ईश्वर प्रसन्न होकर हमें अमरत्व प्रदान कर दे तो हम किस दुनिया के सुख देखने के लिए अमर हो जायेंगे ????? आज की दुनिया — जिसमें हर कोई असुरक्षित है धरती के कोने कोने में अहम् के विध्वंसक युद्धों के चलते धरती पे बंदूकों बारूदी हथियारों की फ़सल उग रही हो ,जहाँ साँसें लेना दूभर हो रहा हो जहाँ हम अपनी अगली पीढ़ी को पानी के बिना तड़प तड़प कर मरते देखेंगे जहाँ धरती हमारे जीवन के लिए आवश्यक तत्व उपजने के बदले विषैली फसल उपजेगी ??? ऐसी धरा में किस सुख शांति संतुष्टि की प्राप्ति के लिए हम जीना चाहेंगे, और अमरत्व मिल गया तो चाह कर भी इस जन्म से छुटकारा नहीं मिलेगा।
इस समाज में जहाँ परिवारों में ज़िंदा रहते हुए आपसी रिश्तों में आदर सम्मान सद्भावना का तिरस्कार होता हो जहाँ परिवार निज स्वार्थ की बलि चढ़ गए हों जहाँ पूरा सामजिक तंत्र इस कदर टूटकर बिखर रहा हो ,जहाँ एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को अपने हाथों अंधेरों की वसीयत दे रही हो जहाँ सबके रहते हुए भी अकेलापन सबको जीते जी मार रहा हो उस परिवेश में कोई क्यों अमर होने की कामना कर सकता है???

हां कुम्भ को मैं एक मानवीय एकता मानवीय धर्म का एक बहुत बड़ा पर्व मानती हूँ जहाँ लाखों करोड़ों आम ओ ख़ास लोग साधू , सन्यासी और धार्मिक संतों का जमावड़ा होता है जहाँ दान और सेवा की भावना निहित तो हो मगर व्यापार की नहीं। मगर अब व्यापार भी धर्म में समाहित हो गया है।
आज जब धर्म की परिभाषा ही बदल गयी हो सब धर्म से अनभिज्ञ हैं मंदिरों में जाकर सिर्फ पूजा पाठ,आरती आडम्बर घंटे घड़ियाल बजा कर ईश्वर को प्रसन्न कर अपने सुखों की कामना करने को ही धर्म मानते हों ,आज के दौर में धार्मिक आस्था भी निज स्वार्थ जुड़ रही हो ,जहाँ धर्म के नाम पर लोग गुमराह किये जा रहे हों


ऐसे हालात में महा कुम्भ की सार्थकता और आवश्यकता इस बात पे है कि हम इतने बड़े जनसमूह की ऊर्जा को सकरात्मक कार्यों में लगाएं। उन्हें सनातन होने के वास्तविक अर्थ को समझाया जा सके
सनातन एक अनादि काल से चली आयी शाश्वत जीवन शैली है बहुत सरल सहज प्राकृतिक जीवन शैली —जिसे बहुत आसानी से धारण किया जा सकता है इसलिए इसे सनातन धर्म भी कहा जाने लगा है

ये सनातन जीवन शैली /धर्म धरती में जीने के सही सिद्धांत , मूल्यों ,विचारों नियमों का एक संविधान है जिसे धारण कर हम धरती में रहने वाले सभी जीवों के प्रति अपने अपने कार्यों, कर्तव्यों को ईमानदारी और श्रद्धा से पूरा करते हुए प्रसन्नता पूर्वक , सुखमय शांति पूर्ण सम्मानित जीवन यापन कर सकें। जियो और जीने दो की भावना से
जहाँ किसी से कोई द्वन्द न हो बस सद्गुणों और उच्च आचरण रखना ही मनुष्यों का कर्तव्य /धर्म हो।

अगर आज इतने अपार जन समूह की चाहत अमर होने की है तो मुझे लगता है महाकुंभ में उपजी इतनी ऊर्जा को इस धरती के पुनुर्त्थान के लिए प्रयोग करना चाहिए
इस धरती जिसको हम मनुष्यों ने इतना लूटा है, उसकी अस्मिता का इतनी बार बलात्कार किया है पहले उस धरती को पुनः सम्मान देने की चेतना जाग्रत करने की ज़रुरत है और इस चेतना की ज्योति भारत से ही जलाई जा सकती है क्यूंकि भारत ही वह राष्ट्र है जहां वसुधैव कुटुंबकम का भाव है , वरना तो धरती के हर कोने में


इंसान ने अपने सुख वैभव अपनी अय्याशियों ,अपनी लालच के चलते सिर्फ धरती का संतुलन ही नहीं बिगाड़ा अपितु अंतरिक्ष में भी सेंध लगा ली है चाँद सूरज भी नोचने के प्रयास में है। इंसान स्वयं को सर्व शक्तिमान बैठा है मगर भूल जाता है इस पूरे ब्रह्माण्ड का निर्माण और संचालन एक निराकार ,निर्गुण ,अदृश्य ,सर्वशक्तिमान विधाता द्वारा एक संतुलित, अनुशासित तंत्र से हो रहा है जिसकी ऊर्जा हम सब में भी है। मगर हम मनुष्यों ने जब इस ऊर्जा का प्रवाह बिगाड़ा तो पूरी धरती का तंत्र असंतुलित हुआ और उसके भयानक परिणाम आज हम देख रहे हैं और आगे अपनी अगली पीढ़ी को तिल तिल कष्टों में जीते देखेंगे तो अगर आज हमारे मन में एक लम्बे काल तक धरती में अमरत्व प्राप्त करने का ख्वाब है तो पहले इस धरती को रहने लायक तो बनायें। मेरी व्यक्तिगत विचार हैं कि हम कुंभ में जाकर स्वयं में डुबकी लगा ईश्वर को प्राप्त कर सकें और सभी में ईश्वर का रूप देखें ,
उस स्थली की सकरात्मक पावन ऊर्जा को आत्मसात कर यह संकल्प करें—- हम काया से नहीं कर्म से अमर हों सकें ,
तो इस धरती में सदियों सदियों तक मानव जाति का अस्तित्व रह सकेगा।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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