“प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल ऑफ़िस एक्ट” 2012 पर महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रकाशन
बरेली ,16 मार्च। बच्चों के यौन शोषण के विषय पर बने प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ़्रॉम सेक्सुअल ऑफ़ेंस एक्ट’ 2012 पर एक महत्वपूर्ण किताब का प्रकाशन हुआ है। पॉस्को एक कानून है जो बच्चों के ख़िलाफ़ यौन अपराधों से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए बनाया गया था. इसे साल 2012 में पास किया गया था। रुहेलखंड विश्वविद्यालय के विधि विभाग के विभागाध्यक्ष डा.अमित सिंह और शिक्षिका एडवोकेट प्रीती वर्मा ने चेरियन पब्लिकेशन, नई दिल्ली से प्रकाशित किताब मे बच्चों के शारीरिक और मानसिक यौन शोषण पर विस्तार से चर्चा की है। बच्चों का शोषण एक मूक महामारी है जो बच्चों से उनकी मासूमियत, सुरक्षा और भविष्य सभी कुछ छीन लेती है। भारत में, यह मुद्दा लंबे समय से कलंक, भय और चुप्पी में घिरा हुआ है। फिर भी, यह कई लोगों के लिए एक कठोर वास्तविकता बनी हुई है, जो सामाजिक वर्गों, क्षेत्रों और समुदायों में फैली हुई है। यह एक ऐसा संकट है जिसके लिए सिर्फ़ स्वीकारोक्ति से ज़्यादा की ज़रूरत है; इसके लिए कार्रवाई, जागरूकता और एक सामाजिक बदलाव की ज़रूरत है जो वास्तविक बदलाव ला सके।
यह किताब, “भारत में बाल यौन शोषण: पॉक्सो पर एक व्यापक ग्रंथ,” इस ज़रूरी मुद्दे को सटीकता और गहराई से संबोधित करती है। 2012 में लागू किया गया यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण पॉक्सो अधिनियम, बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए भारत के कानूनी दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण विधि है। पॉक्सो एक प्रगतिशील कानून है जिसे बच्चों को यौन शोषण और दुर्व्यवहार से बचाने के लिए बनाया गया है, यह सुनिश्चित करता है कि अपराधियों को दंड मिले और पीड़ितों को देखभाल और सहायता प्रदान किया जाए। हालांकि, अपनी प्रगतिशील प्रकृति के बावजूद, पॉक्सो के कार्यान्वयन और प्रभावशीलता को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिसका मुख्य कारण समझ में अंतराल, सांस्कृतिक प्रतिरोध और न्याय प्रणाली में खामियां हैं।
यह पुस्तक न केवल पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों को बल्कि इसके वास्तविक दुनिया पर पड़ने वाले प्रभाव को भी उजागर करने का प्रयास करती है। यह आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण करती है कि कानून को व्यवहार में कैसे लागू किया जाता है, कानूनी पेशेवरों, कानून प्रवर्तन और बाल संरक्षण संगठनों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं, और पीड़ितों को न्याय और उपचार पाने के लिए किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
दोनों लेखक व्यापक सांस्कृतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारकों का भी पता लगाते हैं जो बच्चों की भेद्यता में योगदान करते हैं, और हमें इस बात पर विचार करने का आग्रह करते हैं कि हमारा समाज कैसे चुप्पी और मिलीभगत को कायम रखता है। जबकि कानूनी ढांचा महत्वपूर्ण है, यह ग्रंथ हमें याद दिलाता है कि बाल यौन शोषण का मुकाबला केवल कानूनों से नहीं किया जा सकता है। इसके लिए शिक्षा, रोकथाम और मानसिकता बदलने के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता की भी आवश्यकता है। बहुत लंबे समय से, बच्चों को उनके अधिकारों और सुरक्षा के बारे में बातचीत में अदृश्य बना दिया गया है। पुस्तक बच्चों की आवाज़ को सबसे आगे लाने और समुदायों को सक्रिय रूप से उनकी रक्षा करने के लिए सशक्त बनाने के महत्व पर जोर देती है।इस पुस्तक के पन्नों को पढ़ते हुए, लेखक आपको न केवल कानून पर बल्कि बच्चों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने की हम सभी की बड़ी जिम्मेदारी पर भी विचार करने के लिए आमंत्रित करते है।
पॉक्सो के कानूनी प्रावधान एक शक्तिशाली उपकरण हैं, लेकिन उन्हें एक ऐसा वातावरण बनाने के लिए सामाजिक प्रतिबद्धता से पूरित किया जाना चाहिए जहाँ बच्चों की बात सुनी जाए, उनका सम्मान किया जाए और उनकी सुरक्षा की जाए।
पुस्तक में 438 पेज में विस्तार से विषय को समझाया गया है। इसकी भाषा सरल है ताकि यह आम आदमी से लेकर विद्यार्थीयो,वकीलों सभी के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके। इसमें कुल 14 अध्याय है। महत्वपूर्ण जगहों पर चित्रों के माध्यम से विषय को और संजीव बनाने का प्रयास किया गया है जो इस विषय का अध्ययन करने वाले नए एल एल बी त्रिवर्षीय एवं बी ए एल एल बी पंचवर्षीय पाठयक्रम के नए विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी होगा। यह न्यायिक सेवा, विधि अधिकारी एवं अभियोजन अधिकारी परीक्षा के प्रतिभागी छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट ( ई बुक किंडल फॉर्मेट) में भी ऑनलाइन उपलब्ध हैं। यह सभी ऑनलाइन स्टोर यथा अमेजन, फ्लिप्कार्ट , बुक स्टोर आदि पर भी उपलब्ध है जहां से ऑनलाइन ऑर्डर कर इसे मंगाया जा सकता हैं। पुस्तक का आमुख प्रोफेसर सी.पी. सिंह पूर्व संकायाध्यक्ष एवं विभागाध्यक्ष विधि लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ ने लिखा है जो स्वयं एक ख्याति प्राप्त राष्ट्रीय स्तर के विधि विषय के लेखक है। उन्होंने पुस्तक की प्रशंसा की है और महत्वपूर्ण आमुख में पुस्तक की बारीकियों को स्पष्ट किया है। यह पुस्तक अंग्रेजी भाषा में लिखित है जल्द ही इसका हिंदी संस्करण भी प्रकाशित होगा। पुस्तक की प्रतियां इसके लेखकों द्वारा विधि मंत्रालय,भारत सरकार, महिला और बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार, बाल आयोग एवं उत्तर प्रदेश सरकार को उनके अवलोकन हेतु सादर प्रेषित की जा रही है।
लेखक डॉ अमित सिंह और एडवोकेट प्रीति वर्मा को विश्वास है कि यह पुस्तक एक आंख खोलने वाली और कार्रवाई के लिए उत्प्रेरक का काम करेगी – पेशेवरों, कानून निर्माताओं, शिक्षकों और नागरिकों को न केवल कानून को समझने के लिए बल्कि बाल यौन शोषण के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करेगी। यह न्याय, सम्मान और हमारे बच्चों के भविष्य की लड़ाई है, और यह एक ऐसी लड़ाई है जिसमें हम सभी को भाग लेना चाहिए।यह पुस्तक इस क्षेत्र में एक मूल्यवान योगदान है।
बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट