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वूमन फिजिशियंस आफ इंडिया की पहली कॉन्फ्रेंस का एसआरएमएस में शानदार समापन

बरेली,14अप्रैल। हजारों वर्षों से इंसान सूक्ष्मजीवियों के साथ रह रहा है, लेकिन इंसानी स्वार्थ से होने वाला प्रकृति को नुकसान वायरस में बदलाव ला रहा है। इसके साथ ही इंसान की बिगड़ती आदतें और असक्रिय जीवनशैली भी सूक्ष्मजीवियों के लिए मददगार साबित हो रही है। यही वजह है कि तमाम वायरसजनित बीमारियां आपदा बनती जा रही हैं। चाहें वह सार्स, जीका वायरस से हो या एचआईवी या कोविड 19 से। इन सबसे बचाव के लिए हमें संतुलित जीवनशैली के साथ ही इससे संबंधित वैक्सीन को अपनाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य है कि ऐसा होता नहीं। अभी भी वैक्सीन को लेकर ज्यादातर लोग जागरूक नहीं हैं या अपने पूर्वधारणाओं के चलते उसे नहीं अपना रहे। यह बात पद्म श्री हासिल करने वाली पहली महिला फिजिशियन डा. अलका देशपांडेय वूमन फिजिशियंस आफ इंडिया की पहली कॉन्फ्रेंस में वायरस जनित बीमारियों पर दिये व्याख्यान में कही।

एसआरएमएस मेडिकल कॉलेज में आयोजित वूमन फिजिशियंस आफ इंडिया की पहली कांफ्रेंस का रविवार को समापन हो गया। इस दो दिवसीय कांफ्रेंस के दूसरे दिन कांफ्रेंस के उद्घाटन सत्र के साथ 4 साइंटिफिक सत्र हुए। उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि डा. अलका देशपांडेय, एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक व चेयरमैन देव मूर्ति जी, डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन आदित्य मूर्ति जी, प्रिंसिपल एयरमार्शल (सेवानिवृत्त) डा.एमएस बुटोला, डा.निर्मल यादव, आर्गनाइजिंग चेयरपर्सन डा.प्रेरणा कपूर, साइंटिफिक चेयरपर्सन डा.आभा गुप्ता, डा.पदमश्री गुलाटी और डा.स्मिता गुप्ता ने दीप प्रज्वलित किया। सरस्वती वंदना और संस्थान गीत के साथ उद्घाटन सत्र आरंभ हुआ। इसमें डा. देशपांडेय ने वुमन फिजिसियंस आफ इंडिया की पहली कांफ्रेंस के सपना पूरा होने जैसा बताया। उन्होंने कहा कि वर्ष 1970 में जब उन्होंने एमडी मेडिसिन में प्रवेश लिया तब वह अपने बैच में इकलौती महिला थीं। धीरे धीरे इस ब्रांच में महिलाओं की संख्या बढ़ी। पिछले वर्ष वुमन फिजिसियंस आफ इंडिया का गठन हुआ और आज इसकी पहली राष्ट्रीय कांफ्रेंस हो रही है। यह सपना पूरा होने जैसा ही है। इसके लिए सभी को बधाई। डा.देशपांडेय ने अमेरिका की पहली महिला डाक्टर एलिजाबेथ ब्लैकवेल का भी जिक्र किया। सिर्फ महिला होने से किसी मेडिकल कालेज में उन्हें एडमीशन नहीं दिया गया। बड़े संघर्ष के बाद न्यूयार्क स्थित जिनेवा मेडिकल कालेज से उन्होंने 1849 में मेडिकल की डिग्री हासिल की। पढ़ाई के दौरान भी उन्हें क्लास में बैठने के लिए सीट नहीं दी जाती थी। एलिजाबेथ ने इसके लिए तो आवाज उठाई ही साथ ही महिला डाक्टरों के अधिकिरों के लिए भी पूरी जिंदगी संघर्ष किया। उन्होंने न्यूयार्क में महिला मेडिकल कालेज की स्थापना की। और बाद में अमेरिका छोड़ वे इंग्लैंड चली गईं जहां लंदन स्कूल आफ मेडिसन फार वूमन में स्त्रीरोग विभाग में प्रोफेसर बनी। आज महिलाएं चिकित्सा क्षेत्र में काफी आगे बढ़ गई हैं लेकिन महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया अभी नहीं बदला है। इसे बदलने की जरूरत है। उद्घाटन सत्र में एसआरएमएस ट्रस्ट के संस्थापक व चेयरमैन देव मूर्ति जी ने वुमन फिजिसियंस आफ इंडिया की पहली कांफ्रेंस में शामिल सभी महिला चिकित्सकों को बधाई दी। उन्होंने इस तरह की कांफ्रेंस के हर वर्ष जारी रहने की उम्मीद जताई। कहा कि अगर स्थान के अभाव में कभी कांफ्रेंस न हो पा रही हो तो एसआरएमएस मेडिकल कालेज आइए। यहां कांफ्रेंस करिए। हम इसके लिए हमेशा तैयार है। कालेज के प्रिंसिपल एयरमार्शल (सेवानिवृत्त) डा.एमएस बुटोला ने उद्घाटन सत्र में सभी का स्वागत किया और वुमन फिजिसियंस आफ इंडिया की पहली कांफ्रेंस के लिए बधाई दी। आयोजन की ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी एवं एसआरएमएस मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग की एचओडी डा.स्मिता गुप्ता ने सभी का आभार जताया।

उद्घाटन सत्र से पहले डा. अलका देशपांडेय ने अपने व्याख्यान में वायरस जैसे सूक्ष्मजीवियों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने सार्स से लेकर कोविड 19 तक सभी वायरसजनित महामारी का जिक्र किया। इसने पोलिटिकल, इकोनामिक, साइकोलाजिकल, सोशियोलाजिकलराजनीतिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक पहलुओं की भी जानकारी दी। साथ ही बचाव के उपाय बताए और इसके लिए जागरूकता को सबसे जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि वायरस से बचाव के लिए बायो सेफ्टी के साथ हाथों की स्वच्छता अपनाना सभी के लिए अपरिहार्य है। वैक्सीन का विरोध करने के बजाय हम जितनी जल्दी इसे अपना लेंगे उतना ही हम खुद भी वायरसजनित बीमारियों से दूर रहेंगे और समाज को भी महामारी की चपेट में आने से बचाएंगे। इसके लिए सभी को इम्यूनिजाइनेशन कार्यक्रम में शामिल होना चाहिए। साथ ही दूसरों को भी इसके प्रति जागरूक करने के साथ वैक्सीन लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

इससे पहले कांफ्रेंस के दूसरे दिन का साइंटिफिक सेशन डा. वेणु जामवाल (जम्मू) के यूटीआई रिस्क फैक्टर्स और मैनेजमेंट पर दिए व्याख्यान से आरंभ हुआ। डा.रेनू सैगल (जयपुर) ने लूपस नेफ्रिटिस पर व्याख्यान दिया। इस सेशन का संचालन डा.अनामिका सावंत (मुंबई) ने किया। अगले सत्र में प्रेग्नेंसी संबंधी डिसआर्डर पर व्याख्यान हुए। जिसमें डा.श्रुति शर्मा (बरेली) ने प्रेग्नेंसी के दौरान थाइराइड डिसआर्डर की जानकारी के साथ इसके उपचार पर व्याख्यान दिया। डा.रुचि गुप्ता (जयपुर) ने महिलाओं में दिल की बीमारी और इसके अंतर को बताया और डा.मनीषा द्विवेदी (प्रयागराज) ने प्रेग्नेंसी के दौरान लिवर डिसआर्डर पर अपना व्याख्यान दिया। डा.शशिबाला आर्य ने पॉलीसिस्टिक ओवरी डिसऑर्डर पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि महिलाओं की प्रजनन क्षमता और संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला यह आम हार्मोनल डिसआर्डर है। इसके लक्षणों में अनियमित माहवारी, वजन बढ़ना, मुंहासे और बाल झड़ना शामिल हैं। जीवनशैली में बदलाव, नियमित व्यायाम और संतुलित आहार इसके प्रबंधन में मददगार हैं। डा.जलिस फातिमा (लखनऊ) ने फाइब्रोमायल्जिया पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि व्यापक दर्द, थकावट और मानसिक समस्याओं से जुड़ी यह दीर्घकालिक स्थिति है। समग्र प्रबंधन और जीवन शैली में सुधार कर इससे निजात पाई जा सकती है। डा.रितु करोली (लखनऊ) ने हाइपोड्रेनेलिज्म पर, डा.अनुभा श्रीवास्तव (प्रयागराज) ने महिलाओं में मोनोपाज के बाद होने वाले वासोमोटर सिम्टम्स की जानकारी दी। जबकि डा.मीना छाबड़ा (दिल्ली) ने हर उम्र में महिलाओं की बोन हेल्थ की जानकारी दी। डा.शाजिया सिद्धिकी (लखनऊ) ने महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर व्याख्यान दिया तो डा.अदिति श्रीवास्तव ने साइकोलाजिकल, सोशल और स्पिरिचुएल पहलुओं को शामिल करते हुए महिलाओं की पैलिएटिव केयर पर व्याख्यान दिया।

इस अवसर पर डा.सीमा सेठ (बरेली), डा.मालिनी कुलश्रेष्ठ, डा.अस्मिता देशमुख (नवी मुंबई), डा.अर्चना पाटे (नवी मुंबई), डा.मीनाक्षी अवस्थी (गोरखपुर), डा.निधि मिश्रा (प्रयागराज), डा.शक्ति कंसल (बरेली), डा.प्रेरणा कपूर (लखनऊ), मंजू पांडेय (मथुरा), डा.मनीषा गुप्ता (मोहाली), डा.हिना सिंह (मेरठ) और डा.गुंजन मित्तल (नोएडा), डा.अनुपमा (जम्मू), डा.अश्वनी पाटिल (मुंबई), डा.आनंदिता सेठ (लखनऊ), ऋतु दास चौधरी (नवी मुंबई), डा.पूनम अग्रवाल, डा. पीके बॉस, डा.शरद अग्रवाल, डा.दीपक दास, डा.राजीव गुप्ता, डा.दर्शन मेहरा, डा.सचिन अग्रवाल उपस्थित रहे। बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट