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हाईकोर्ट को यह नहीं लगना चाहिए कि हम हेडमास्टर की तरह कर रहे व्यवहार : SC

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने केसों की सुनवाई को लेकर हाईकोर्ट पर सख्त सीमा लगाने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा है कि इस तरह के निर्देश यह धारणा बना सकते हैं कि उच्चतम न्यायालय एक हेडमास्टर की तरह बर्ताव काम कर रही है। जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर फैसला करने के लिए एक निश्चित समयसीमा निर्धारित करने से इनकार कर दिया।

जमानत याचिका पर पुनर्विचार की जल्द सुनवाई को लेकर की गई अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हाईकोर्ट को यह नहीं लगना चाहिए कि हम हेडमास्टर की तरह व्यवहार कर रहे हैं। तारीख या समयसीमा तय करना सही नहीं है। हमें समयसीमा तय नहीं करनी चाहिए। वे भी संवैधानिक कोर्ट हैं।” सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कहा है कि यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि हाईकोर्ट पहले से ही पेंडिंग मामलों के बोझ तले दबा हुआ है और हाईकोर्ट के एडमिनिस्ट्रेशन में आने वाली चुनौतियों को दूर करने की जरूरत पर जोर दिया।

गौरतलब है कि यह मामला हत्या से जुड़े एक आरोपी अमित कुमार से संबंधित था, जिसे मई में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत दी थी। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत आदेश को खारिज करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने सबूतों की गहराई से जांच की है और जमानत के चरण में मिनी ट्रायल किया है। कोर्ट ने मामले को नए सिरे से जांच के लिए वापस हाईकोर्ट को भेज दिया।

आरोपी के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि वह मामले पर निर्णय लेने के लिए हाईकोर्ट के लिए एक तारीख निर्धारित करे। हालांकि वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने इस अनुरोध का कड़ा विरोध किया जिन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेंडिंग मामलों का तर्क दिया। उन्होंने कहा, “हाईकोर्ट की हर पीठ के पास हर दिन कम से कम 200 मामले सूचीबद्ध होते हैं। वहां के जज पहले से ही अत्यधिक कार्यभार से दबे हुए हैं।” सुप्रीम कोर्ट ने यह बात स्वीकारी हालांकि कोर्ट ने अपने आदेश में इस पर सहमति जताई कि हाईकोर्ट को इस मामले पर जितनी जल्दी हो सके विचार करना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट की बात करे तो फिलहाल उसके सामने बड़ी चुनौतियां हैं। 160 जजों के पद होने के बावजूद वहां 78 जज कम हैं। राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड के अनुसार यहां 8,37,000 मामले पेंडिंग हैं। इनमें से 67% दीवानी मामले एक दशक से अधिक समय से लंबित हैं जबकि 33% आपराधिक मामले भी कम से कम 10 साल पुराने हैं।

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