Top Newsउत्तर प्रदेशराज्य

वाश शैली – दृश्य कला महत्त्वपूर्ण तकनीक है – राजेंद्र प्रसाद

लखनऊ, 21 मई 2025, भारतीय कला परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण तकनीक वाश रही है। जो आज विलुप्ति के कगार पर है। इस शैली में चित्र कागज़ पर जलरंग माध्यम में बनाए जाते हैं। इस तकनीक में चित्र बनाना एक लंबी प्रक्रिया है। जिसके लिए बड़े ही धैर्य की आवश्यकता होती है। इस विधा में कलाकारों ने नए प्रयोग भी करते रहे हैं। इस तकनीक को धोवन विधि भी कहा जाता है। बीसवीं शताब्दी में जापानी कला का एक बड़ा प्रभाव हुआ। उसी दौरान यह तकनीक भारत में आई और कोलकाता में इस अवनीन्द्र नाथ टैगोर समेत बड़ी संख्या में कलाकारों ने काम शुरू किया। इस विधा में कागज़ को बार बार भिगोया और सुखाया जाता है और रंग लगाया और हटाया जाता है। कोलकाता के बाद वृहद स्तर पर लखनऊ में इस विधा में कार्य किया गया है। वर्तमान में इस विधा में कार्य करने वाले लखनऊ के वरिष्ठ चित्रकार राजेंद्र प्रसाद हैं। राजेंद्र प्रसाद प्रख्यात वाश चित्रकार बी एन आर्य के शिष्य रहे हैं। राजेंद्र प्रसाद वाश पद्धति के प्रतिभावान चित्रकार हैं। साथ ही वाश पद्धति को लेकर आधुनिक प्रगतिशील सजग कलाकार भी हैं। इस विधा को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य अवनींद्रनाथ टैगोर और उनके शिष्यों के माध्यम से वर्तमान में लखनऊ में राजेंद्र प्रसाद द्वारा किया जा रहा है। राजेंद्र प्रसाद इस विधा को निरंतर आगे बढ़ाने में अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं।
वाश शैली जो कि आज विलुप्त होने के कगार पर है इसी बात को ध्यान में रखते हुए लखनऊ स्थित प्रतिष्ठित फ्लोरोसेंस आर्ट गैलरी एवं लखनऊ पब्लिक स्कूल के संयुक्त तत्वावधान में वाश शैली का दस दिवसीय कार्यशाला का शुरुआत बुधवार को लखनऊ पब्लिक स्कूल विनम्रखंड में किया गया। इस विधा में विशेषज्ञ के रूप में प्रख्यात वाश चित्रकार राजेंद्र प्रसाद हैं। जो दस दिनों तक वाश पद्धति की विस्तृत जानकारी प्रतिभागियों को देंगे साथ ही वाश शैली में एक चित्र भी निर्माण करेंगे। इन्हीं के मार्गदर्शन में सभी प्रतिभागी भी एक एक चित्र इसी विधा में बनाएंगे।
कार्यशाला के शुरुआत स्कूल के प्रधानाचार्य श्रीमती अनीता चौधरी द्वारा पौधा देकर राजेंद्र प्रसाद और भूपेंद्र कुमार अस्थाना का स्वागत किया। इस अवसर पर प्रतिभागी बच्चों को संबोधित करते हुए राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि एक समय था जहां आप बैठे हैं, वहीं हम भी थे। चीज़ों को सीखते हुए आज हम कला की दुनियां में काम कर रहे हैं। इसी प्रकार आप भी सीखते जाएं। सीखने की कोई उम्र नहीं होती है। उन्होंने कहा कि गूगल के अलावा भी बहुत से काम हैं जिन्हें करना चाहिए। हमे अपनी मौलिक विचारों को ज्यादा प्राथमिकता देनी चाहिए। हम कलाकार इस अथाह प्रकृति से ही सीखते और ग्रहण करते हैं। और समाज में रहते हुए अपने अपने विधाओं से समाज में योगदान देते हैं। यह एक। महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी है। छात्रों को प्रोत्साहित करते हुए राजेंद्र प्रसाद ने आगे कहा कि मैं बचपन में पढ़ने से बहुत घबराता था, चित्र बनाने की एक लगन ने मुझे लखनऊ कला महाविद्यालय ले आया। लेकिन कला महाविद्यालय में आने के बाद पता चला कि पढ़ना भी जरूरी है। विचारों को बढ़ाने के लिए देखना, पढ़ना बहुत जरूरी है। तभी हम प्रयोग कर सकते हैं।
गैलरी संस्थापक-निदेशक नेहा सिंह ने छात्रों की क्षमता पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा, “इस तरह की गतिविधियाँ न केवल रचनात्मकता को बढ़ाती हैं बल्कि छात्रों को हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जुड़ने में भी मदद करती हैं।”
कला विभागाध्यक्ष राजेश कुमार ने बताया कि लखनऊ में चार ब्रांच में कला के कार्यशाला शुरू किया गया है। जिसमें मास्क बनाना, राकू, मूर्तिकला, म्यूरल आदि। जिसके अलग अलग विशेषज्ञ कलाकार हैं।
फ्लोरेंसेंस आर्ट गैलरी के क्यूरेटर भूपेंद्र अस्थाना ने कहा कि गैलरी आधुनिक कला के साथ साथ तमाम पारंपरिक विधाओं को भी लेकर सजग है। जिसके चलते यह पहल शुरू की गई। विलुप्त हो रही कला विधाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचाने का भी कार्य करने में अपना अमूल्य योगदान के लिए अग्रसर हो रही है।