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आईवीआरआई में मुर्ग़ी के मांस का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं आकलन तथा सुधारात्मक उपायों पर कार्यशाला आयोजित


बरेली, 29 अक्टूबर। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), इज्जतनगर के पशु जनस्वास्थ्य विभाग द्वारा “मुर्ग़ी के मांस का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं आकलन तथा सुधारात्मक उपायों विषय पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला अंतरराष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान (आईएलआरआई), केन्या के सहयोग से संचालित “वन हेल्थ इनिशिएटिव टू इम्प्रूव पोल्ट्री वैल्यू चेन इन बरेली, यूपी, इंडिया” परियोजना के अंतर्गत आयोजित की गई।
इस परियोजना का उद्देश्य बरेली जनपद में मुर्ग़ी मूल्य श्रृंखला का अध्ययन करते हुए खाद्य सुरक्षा, संक्रमणकारी रोगजनकों, एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) तथा मानव स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव का आकलन करना है।
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में डॉ. हंग न्युजेन-विएत, क्षेत्रीय निदेशक (एशिया), आईएलआरआई ने वर्चुवल रूप से जुडते हुए आईवीआरआई के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि भारत वन हेल्थ पहलों में विश्व का नेतृत्व कर रहा है और इस परियोजना से प्राप्त निष्कर्ष भविष्य में खाद्य सुरक्षा के लिए प्राथमिकता क्षेत्रों को चिन्हित करने में सहायक होंगे।
डॉ. राम प्रतिम डेका, देश प्रतिनिधि, आईएलआरआई-भारत ने बताया कि यह परियोजना सात देशों में लागू की गई है तथा भारत में आईवीआरआई नोडल संस्था के रूप में कार्य कर रहा है। उन्होंने परियोजना की उपलब्धियों पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि आईएलआरआई और आईवीआरआई मिलकर इन निष्कर्षों को जनहित में उपयोगी बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा एक जटिल विषय है, जिसके लिए बहु-संस्थागत सहयोग आवश्यक है।
कार्यशाला की अध्यक्षता डॉ. एस. के. सिंह, संयुक्त निदेशक (शोध) ने की। उन्होंने परियोजना टीम के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इस परियोजना से प्राप्त जानकारी को संबंधित विभागों एवं हितधारकों तक पहुँचाया जाना चाहिए, जिससे मुर्ग़ी मांस आपूर्ति श्रृंखला में सुधार लाया जा सके।
इस अवसर पर स्वागत भाषण देते हुए डॉ. बबलू कुमार, विभागाध्यक्ष, पशु जनस्वास्थ्य विभाग, आईवीआरआई ने दैनिक जीवन में खाद्य सुरक्षा के महत्व पर बल दिया।
परामर्श सत्र की शुरुआत डॉ. सुमन कुमार, वैज्ञानिक एवं परियोजना अन्वेषक, आईवीआरआई द्वारा परियोजना के उद्देश्यों की रूपरेखा प्रस्तुत करने से हुई। उन्होंने बताया कि सीजीआईएआर वन हेल्थ एवं सस्टेनेबल एनिमल एंड एक्वाटिक फूड्स कार्यक्रमों के तहत यह पहल बरेली जनपद की पोल्ट्री मूल्य श्रृंखला का विश्लेषण कर व्यावहारिक हस्तक्षेप सुझाने पर केंद्रित है।
इसके बाद डॉ. स्नेहा, पीएचडी शोधार्थी, आईवीआरआई ने फोकस ग्रुप डिस्कशन एवं रोगजनकों की उपस्थिति से संबंधित निष्कर्ष प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि पोल्ट्री किसानों, विक्रेताओं एवं उपभोक्ताओं के बीच स्वच्छता प्रथाओं, जूनोटिक जोखिमों और एंटीमाइक्रोबियल उपयोग संबंधी जागरूकता में गंभीर कमी पाई गई। उन्होंने साल्मोनेला, कैंपिलोबैक्टर एवं लिस्टेरिया जैसे रोगजनकों की उपस्थिति से संबंधित आंकड़े भी साझा किए।
डॉ. संजुमोन, पीएचडी शोधार्थी, ने एंटीमाइक्रोबियल रेज़िस्टेंस एवं जोखिम कारक विश्लेषण पर प्रस्तुति दी, जिसमें खाद्यजनित रोगजनकों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के पैटर्न तथा संबंधित जोखिम कारकों पर चर्चा की गई।
डॉ. अमित गंगवार, एम.वी.एससी. छात्र, ने पैथोजन प्रसार में जल की भूमिका पर अपने शोध निष्कर्ष प्रस्तुत किए और बताया कि वध एवं प्रसंस्करण के दौरान जल की गुणवत्ता एक प्रमुख जोखिम कारक है।
अंत में डॉ. ए. आर. सेन, प्रमुख, पशु उत्पाद प्रौद्योगिकी विभाग, आईवीआरआई ने डिकंटेमिनेशन वाइप्स के माध्यम से मुर्ग़ी मांस की गुणवत्ता सुधार पर अपने नवाचार का विवरण दिया, जिसे प्रतिभागियों ने एक व्यावहारिक और कम लागत वाला समाधान बताया।
समापन सत्र में डॉ. राम प्रतिम डेका ने आईवीआरआई और आईएलआरआई के बीच सहयोग की सराहना करते हुए कहा कि खाद्य सुरक्षा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य में स्थायी सुधार के लिए बहु-विषयी अनुसंधान, क्षमता निर्माण और व्यवहार परिवर्तन आवश्यक हैं।
कार्यक्रम का संचालन डॉ विभा तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुमन द्वारा दिया गया । इस कार्यशाला में उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग, बरेली नगर निगम, एसआरएमएस इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसआरएमएसआईएमएस), आईवीआरआई अस्पताल, निजी चिकित्सकों तथा बरेली शहर के मांस विक्रेताओं ने भाग लिया।
कार्यक्रम ने वैज्ञानिकों, स्वास्थ्य विशेषज्ञों, और नीति निर्माताओं को एक साझा मंच प्रदान किया, जिससे वन हेल्थ दृष्टिकोण के तहत पोल्ट्री क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा एवं जनस्वास्थ्य सुधार के लिए व्यावहारिक समाधान पर विमर्श किया जा सके। बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट

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