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भारत के साथ हाथ मिलाने को क्‍यों बेताब है सबसे ताकतवर मिलिट्री संगठन नाटो, जानिए इसके बारे में सबकुछ

वॉशिंगटन: अमेरिका की स्थायी प्रतिनिधि जूलियन स्मिथ ने भारत के नॉर्थ अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो में शामिल होने को लेकर एक बड़ी बात कही है। स्थिम ने कहा है कि इस संगठन में भारत के शामिल होने के लिए बातचीत का रास्‍ता खुला है। बतौर अधिकारी स्मिथ की यह टिप्‍पणी बहुत ही महत्‍वपूर्ण मानी जा रही है। स्मिथ ने यह जानकारी भी दी कि हाल ही में भारत में आयोजित रायसीना डायलॉग्‍स के मौके पर नाटो के कुछ अधिकारियों ने अपने भारतीय समकक्षों के साथ इस पर अनौपचारिक वार्ता की थी। नाटो दुनिया का सबसे बड़ा सैन्‍य संगठन है। पहले भी भारत को इसमें शामिल करने को लेकर कई बार खबरों का बाजार गर्म हुआ है।

भारत के नाटो में शामिल होने की चर्चा साल 2011 में पहली बार शुरू हुई थी। उस समय अफगानिस्‍तान, सीरिया और लीबिया के हालातों को देखते हुए संगठन भारत के साथ संपर्क बढ़ाना चाहता था। तत्‍कालीन अमेरिकी प्रतिनिधि इवो एच डालडर ने बयान दिया था कि नाटो और भारत के लिए वार्ता करना काफी महत्वपूर्ण है। लेकिन यह पूरी तरह से भारत पर निर्भर है कि वह नाटो के साथ रिश्‍ते चाहता है या नहीं।

उनका कहना था कि इस वार्ता से भारत और नाटो के साथ मिलकर काम करने का रास्‍ता खुल सकेगा। जिस तरह से अफगानिस्‍तान में साथ मिलकर काम कर रहे हैं, उसी तरह से दूसरी जगहों पर भी साथ में काम कर पाएंगे। उनका कहना था कि नाटो के पास इस समय बैलेस्टिक मिसाइल टेक्‍नोलॉजी है। ऐसे में भारत के साथ इसकी जानकारी को साझा किया जा सकता है और सैनिकों को ट्रेनिंग दी जा सकती है। डालडर का कहना था कि नाटो के देश और भारत पर एक जैसा खतरा है।

नाटो की स्‍थापना सन् 1949 में हुई थी और इसे एक रक्षा गठबंधन के तौर पर शुरू किया गया था। जिस समय इसकी शुरुआत 12 देश इसके सदस्‍य थे जिसमें अमेरिका, यूके, कनाडा और फ्रांस भी शामिल थे। इसमें शामिल देशों ने हमले की स्थिति में अपने साथियों की मदद का प्रण लिया था। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इस गठबंधन को रूस के खिलाफ तैयार किया गठबंधन कहें तो गलत नहीं होगा। उनका तर्क है कि इस संगठन को द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद शुरू किया गया था। इसे शुरू करने का मकसद ही यूरोप में रूस जो उस समय सोवियत संघ था, उसके विस्‍तार को रोकना था।

साल 1991 में सोवियत संघ का पतन हो गया। इसके बाद ऐसे यूरोपियन देश जो वॉरशॉ संधि में रूस के साथ थे, वो भी नाटो में आ गए। नाटो में इस समय यूं तो 30 सदस्‍य देश हैं मगर 10 अलग-अलग ग्‍लोबल पार्टनर के तौर पर हैं मगर सदस्‍य नहीं हैं जैसे जापान और ऑस्‍ट्र‍ेलिया। इस संगठन का हेडक्‍वार्टर ब्रसेल्‍स में है। जो देश इसके सदस्‍य हैं उनमें तुर्की सबसे अहम है। छह फरवरी 2019 को मैसिडोनिया इसका सबसे नया सदस्‍य बना था। अमेरिका इसका मुखिया है।

रूस का कहना है कि यूरोपियन देशों को नाटो की मंजूरी मिलना, उसकी सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। यही वजह है कि वह हमेशा यूक्रेन की सदस्‍यता का विरोध करता आया है। रूस को आशंका है कि अगर यूक्रेन को नाटो की सदस्‍यता मिल गई तो फिर वह उसकी सीमा पर कब्‍जा कर सकता है। नाटो का चार्टर कहता है कि हमले के समय सदस्‍य देशों की सुरक्षा के लिए सेनाएं आगे आएंगी।

यूक्रेन इसका सदस्‍य नहीं है तो नाटो के सैनिक उसकी तरफ से युद्ध में शामिल नहीं हो सकते हैं। यह चार्टर के आर्टिकल पांच में साफ-साफ बताया गया है। जबकि नाटो का चार्टर 4 कहता है कि किसी दूसरे देश या आतंकी संगठन से खतरा होने की स्थिति में अगर कोई सदस्‍य देश चाहता है तो उसकी तरफ से वार्ता शुरू की जा सकती है। यूक्रेन साल 2008 से ही इसका सदस्‍य बनने को बेकरार है। यूरोप के देश स्‍वीडन और फिनलैंड भी नाटो की सदस्‍यता चाहते हैं और इसके लिए अप्‍लाई कर चुके हैं।

 

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