उत्तर प्रदेश

आईवीआरआई में पूसा बासमती धान की प्रजातियां तथा उनकी वैज्ञानिक खेती पर कार्यशाला का आयोजन

बरेली, 09 जून। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान सस्थान, इज्जतनगर के पशु आनुवांशिकी विभाग में फार्मर फर्स्ट परियोजना के अन्तर्गत पूसा बासमती धान की उन्नत प्रजातियां तथा उनकी वैज्ञानिक खेती पर कार्यशाला तथा बीज एवं कृषि यन्त्र वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में आंवला तहसील के 15 गावों के किसानों ने भाग लिया। यह कार्यशाला संस्थान निदेशक डा. त्रिवेणी दत्त के दिशा निर्देशन में आयोजित की गयी।
कार्यशाला में पूसा बासमती के जनक एवं भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के निदेशक डा. ए.के. सिंह ने वर्चुवल रूप से भाग लेते हुए किसानों को धान की विभिन्न प्रजातियों की विशेषता तथा धान की सीधी बुवाई के लाभ के बारे में किसानों को बताया उन्होंने कहा कि धान की सीधी बुवाई से 30 से 35 प्रतिशत पानी की बचत, धान रोपण पर 4000-4500 प्रति एकड़ बचत तथा पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली ग्रीन हाउस गैस में 30-35 प्रतिशत की कमी आती है। डा. सिंह ने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने भारतवर्ष की प्रथम खरपतवार सहनसील दो प्रजाति पूसा बासमती-1985 और पूसा बासमती-1979 विकसित की हैं जिनकी सीधी बुवाई की जा सकती है।
फार्मर फर्स्ट परियोजना के प्रधान अन्वेषक डा. रणवीर सिंह ने बताया कि इस कार्यशाला में किसानों को धान की उन्न्त प्रजातियों के बारे में प्रशिक्षण दिया गया तथा पूसा बासमती-1847 प्रजाति का 152 किसानों को बीज एवं विभिन्न कृषि यंत्र एवं गुलाब के पौध वितरित किये गये। इसके अतिरिक्त किसानों को जय गोपाल वर्मी कल्चर तकनीक के बारे में बताया गया तथा इसका प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण भी दिया गया।
इस कार्यशाला में बरेली छावनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री रविन्द्र एवं डा. केशव कुमार, उपनिदेशक, पशुपालन विभाग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ ने भी भाग लिया तथा किसानों को जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए सम्बोधित किया।
इस अवसर पर पशु आनुवांशिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. भारत भूषण ने आईवीआरआई की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। इस अवसर पर श्री प्रेमशंकर, अंशु कन्नोजिया एवं सूर्यप्रताप सिंह आदि ने सहयोग किया। बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट

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