देशहित में पहले करदाताओं और उनके योगदान की गणना ज़रूरी
देश में उठ रही जातिगत जनगणना की माँग के बीच करदाताओं की संस्था ग्लोबल टैक्सपेयर्स ट्रस्ट के चेयरमैन मनीष खेमका ने सरकार से माँग की है कि देश और प्रदेश में जातिगत जनगणना से पहले भारत के मेहनतकश करदाताओं व उनके योगदान की गणना ज़रूरी है। यह गणना करके देश के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे करदाताओं को प्राथमिकता के आधार पर ज़रूरी सुविधाओं और सम्मान समेत उनका समुचित हक दिया जाना चाहिए। खेमका ने कहा कि आज शहरों में 25-50 हज़ार रुपये महीना कमाने वाला हर व्यक्ति आयकर के दायरे में है। हर जाति और धर्म से आने वाले भारत के यह मध्यमवर्गीय नागरिक कठिनाई से अपना परिवार पालने के साथ ही साथ देश के विकास में वास्तविक व निःस्वार्थ योगदान देते हैं। शहरी ग़रीब होने के बावजूद करदाता होने के कारण उन्हें किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। मुफ़्त राशन, भत्ते, नरेगा और आयुष्मान योजना जैसी सभी सरकारी योजनाओं से वह वंचित रहते हैं। मज़े की बात तो यह कि यह सारी योजनाएं चलती उनके ही पैसों से हैं। इसके बावजूद भी वे सरकार से कुछ नहीं माँगते। कोई आंदोलन नहीं करते। सिर झुकाकर चुपचाप देश निर्माण में अपना योगदान देते रहते हैं। वे निश्चित ही सम्मान के पात्र हैं। वास्तव में देश के संसाधनों पर यदि किसी का पहला हक़ है तो वह किसी जाति या धर्म का नहीं बल्कि संसाधनों को पैदा करने वाले करदाताओं का है।
खेमका ने वर्तमान राजनीतिक हालात पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए जातिवाद की भावना को बेवजह तूल देने वालों को देश के मेहनतकश मध्यमवर्गीय करदाताओं से सबक़ और प्रेरणा लेनी चाहिए। जो देश को देने के बावजूद कुछ नहीं माँगते। हम जागरूक नागरिकों को अपने महान देश के लोकतंत्र को भीड़तंत्र में क़तई बदलने नहीं देना चाहिए। उन्होने कहा कि जो भी व्यक्ति इस बात का पक्षधर है कि जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी, उन्हें इस बात का भी समर्थन करना चाहिए कि जिसका जितना योगदान भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी। राजनीति की वर्तमान दशा पर व्यंग करते हुए खेमका ने कहा इस हिसाब से तो पूरे देश को बड़े कारोबारियों के नाम कर देना चाहिए क्योंकि देश के कर राजस्व में सबसे अधिक योगदान वे ही करते हैं। हमने हालाँकि कभी ऐसी माँग नहीं की।
खेमका ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा कि हम करदाताओं के लिए हमेशा से देशहित सर्वोपरी रहा है। हम देश और समाज के लिए अहितकर किसी भी विचार का समर्थन नहीं करते हैं। लेकिन यदि सरकार जातिगत जनगणना का निर्णय लेती है तो निश्चित ही पहले देश के बड़े, मझोले व छोटे मध्यमवर्गीय करदाताओं व उनके योगदान की गणना कराकर उन्हें ज़रूरी स्वास्थ्य आदि सुविधाओं व सम्मान समेत उनका हक़ प्राथमिकता के आधार पर देना चाहिए। सरकार का यह क़दम देशहित में होगा। इससे देश में 15-15 लाख मुफ़्त माँगने वालों की नहीं बल्कि देश को देने वाले करदाताओं की संख्या बढ़ेगी जो कि अभी काफ़ी कम है।