बरनावा दरगाह मामले में मुस्लिम पक्ष की अपील खारिज, कोर्ट का निर्णय ये दरगाह नहीं लाक्षागृह है!
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। बागपत जनपद में हिंडन और कृष्णा नदी के संगम पर बसे बरनावा गांव स्थित ऐतिहासिक टीला महाभारत का लाक्षागृह है या शेख बदरुउद्दीन की दरगाह व कब्रिस्तान को लेकर 53 वर्षों से न्यायालय में चल रहे वाद पर सोमवार को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है। बरनावा में दरगाह नहीं, लाक्षागृह की जमीन है और इस लिये मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी गई। बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वर्ष 1970 में मेरठ की अदालत में दायर किए वाद में लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया था। इसमें मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का निधन हो चुका है। दोनों पक्ष से अन्य लोग वाद की पैरवी कर रहे हैं। जिला अलग हो जाने के बाद अब यह मामला सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम की कोर्ट में चल रहा था।
दोनों पक्षों के लोग अपने-अपने वकीलों के माध्यम से कोर्ट में साक्ष्य भी प्रस्तुत कर रहे थे। मामले में कोर्ट से मौके का मुआयना कराने की भी अपील की गई थी। वाद में कोर्ट द्वारा फैसला सुनाने के लिए पिछले कई महीने से जल्द तारीख लगाई जा रही थी। इस मामले में सोमवार को कोर्ट ने अपना फैंसला सुनाया और मुस्लिम पक्ष की याचिका को निरस्त कर दिया गया।
कोर्ट में पेश किए गए साक्ष्य के आधार पर ये माना गया कि वहां दरगाह व कब्रिस्तान की ज़मीन किसी भी जगह राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है।चूंकि मुकीम खान और कृष्णदत्त महाराज दोनों का निधन हो चुका है इस लिये दोनों पक्ष से अन्य लोग पैरवी कर रहे हैं। वर्तमान में यह मामला बागपत में सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम की कोर्ट में चल रहा था, जिसमें एक पक्ष से अय्यूब, मुन्ना समेत अन्य और दूसरे पक्ष से गांधी धाम समिति के प्रबंधक राजपाल त्यागी वकीलों के माध्यम से कोर्ट में अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत कर चुके थे, जिससे केस अब फैसले पर आ चुका था।
वाद दायर करने वाले पक्ष ने यह किया था दावा
इसमें मुकीम खान की तरफ से वाद दायर करते हुए दावा किया गया था कि बरनावा में प्राचीन टीले पर शेख बदरूद्दीन की दरगाह और कब्रिस्तान है। वह सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में दर्ज होने के साथ ही रजिस्टर्ड है।उसमें कहा गया था कि कृष्णदत्त महाराज बाहर के रहने वाले हैं और वह कब्रिस्तान को खत्म करके हिंदुओं का तीर्थ बनाना चाहते हैं। बरनावा के लाक्षागृह स्थित संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य आचार्य अरविंद कुमार शास्त्री का कहना है कि यह एतिहासिक टीला महाभारत कालीन लाक्षाग्रह है। यहां सुरंग व अन्य अवशेष इसका प्रमाण हैं। इसके सभी साक्ष्य कोर्ट में पैरवी कर रही गांधी धाम समिति के पदाधिकारियों ने दिए हुए थे। मौके का मुआयना कराने को प्रार्थना देंगे गांधी धाम समिति के वकील रणवीर सिंह तोमर ने बताया कि उनकी तरफ से सभी साक्ष्य कोर्ट में दिए हुए थे। वहीं अदालत के फैसले से वह काफी खुश हैं।इस संदर्भ में आचार्य गुरुवचन शास्त्री ने दोका सामना को बताया कि मैं तथ्यों के आधार पर कह रहा हूँ कि यह लाक्षागृह ही है। आज भी यहां खुदाई करने से काली मिट्टी निकलती है। जो जले लाक्षागृह के अवशेष के रूप में विद्यमान है।
इससे यह सिद्ध होता है कि भारत की न्याय व्यवस्था संवेदनशील और गंभीर है।
इस संदर्भ में विश्वहिंदू परिषद के प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा कि साक्ष्यों के आधार पर ही यह निर्णय आया है,जैसे श्रीराम जन्मभूमि पर आया और ज्ञानव्यापी के साक्ष्य चीख रहे हैं जिस पर हिंदुओं का अधिकार है।
मुस्लिम समाज को अपने पूर्वजों की गलतियों से सबक यानि परिमार्जन कर स्वतः ऐसे लंबे विवादों से हट जाना चाहिए।जो राष्ट्र और समाज में व्यापक छाप छोड़ेगा। हिंदू समाज न्यायालय का संम्मान सदैव करता रहा है और आगे भी करता रहेगा।