राज्य

भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित गाँव खुरान रच रहा है इतिहास

अदाणी फाउंडेशन की मदद से युवाओं ने बदली गाँव की तस्वीर

गुजरात के कच्छ में भारत-पाक सीमा पर स्थित आखिरी गाँव खुरान है। कच्‍छ के रेगिस्‍तान में पानी और जिन्दगी के बीच जंग कोई नई बात नहीं है, लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी भारत-पाक सीमा पर कई ऐसे गाँव हैं, जो ऐसी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं, जिसमें पानी सबसे अहम् है। खावड़ा के पास स्थित एक छोटा गाँव खुरान अब इस परेशानी से मुक्त हो चुका है, लेकिन इनकी राह इतनी आसान नहीं थी। बंजर जमीन, जहाँ पानी की हर बूंद मायने रखती है, उसी खुरान गाँव में लोग आज पानी के लिए किसी के मोहताज नहीं है।

लेकिन हालात पहले ऐसे नहीं थे। 1800 से ज्यादा की आबादी और 1200 मवेशियों वाला यह गाँव पानी की कमी से त्रस्त था। नगरपालिका जल आपूर्ति की तरफ से यहाँ हर 15 दिन में सिर्फ दो बार पानी के टैंकर आते थे। पानी के महँगे टैंकरों पर निर्भरता खुरान के लोगों की बड़ी मजबूरी बन गई थी। पानी के टैंकरों से भी गाँव वालों की पारिवारिक जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही थी। साथ ही मवेशी भी खस्ताहाल थे। पानी की समस्या को लेकर गाँव के लोगों ने मदद की आस में ,हर मुमकिन जगह गुहार लगाई, लेकिन कहीं बात नहीं बनी। आखिरकार इस समस्या को लेकर लोग अदाणी फाउंडेशन के पास आए और सिलसिलेवार तरीके से अपनी समस्या बताई।

फाउंडेशन की टीम ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए महत्वपूर्ण कदम उठाए। टीम ने तालाब नवीकरण और कुआँ निर्माण पर काम शुरु किया। कभी-कभी सामुदायिक प्रयास तेजी से रंग दिखाते हैं और ऐसा ही कुछ खुरान गाँव में हुआ। आज गाँव के लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में पीने का पानी उपलब्ध है और उन्हें महँगे पानी के टैंकरों के भी छुटकारा मिल गया है। लेकिन, मवेशियों के लिए पानी अब भी उपलब्ध नहीं था। ऐसे में, अदाणी फाउंडेशन की मदद से गाँव के युवाओं ने मामले को अपने हाथों में लिया, कुएँ में एक मोटर लगाई और ताज़े पानी का एक मवेशी कुंड (अवाडा) बनाया। फिर उन्होंने खुशी से अदाणी फाउंडेशन टीम को उनके प्रयासों को देखने के लिए आमंत्रित किया। टीम समुदाय की आत्मनिर्भरता से काफी आश्चर्यचकित थी और उनकी कड़ी मेहनत की सराहना की।

अदाणी फाउंडेशन और खुरान के लोगों के बीच की साझेदारी ने एक प्रभावी पीपीपी मॉडल बनाया, जिससे ना सिर्फ इंसान, बल्कि मवेशियों के लिए भी पर्याप्त पीने का पानी उपलब्ध हुआ। अब उन्हें मीलों पैदल चलने या पानी के टैंकरों पर अपना पैसा खर्च करने की जरुरत नहीं है। ये जल संरक्षण संरचनाएँ संरचनाएं पीढ़ियों तक उनकी पानी की जरूरत को पूरा करेंगी।

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