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भारत में मंदी की आशंका नहीं, 2023-24 में 6-7 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी

नईदिल्ली:अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि अमेरिका में मंदी नहीं आएगी. हालांकि इस हफ्ते जारी होने वाले जीडीपी के आंकड़ों को लेकर देश में चिंताएं हैं क्योंकि ऐसी आशंका जताई जा रही है कि अर्थव्यवस्था सिकुड़ सकती है. फिर भी, रोजगार के मजबूत आंकड़ों का हवाला देते हुए बाइडेन ने मीडिया से बातचीत में कहा, “मेरे विचार से हम मंदी में नहीं जा रहे हैं.”

ब्लूमबर्ग ने कहा था कि एशिया के मंदी में जाने की संभावना 20-25 प्रतिशत है जबकि अमेरिका के लिए यह 40 और यूरोप के लिए 50-55 फीसदी तक है. कुछ महीने पहले तक अमेरिका में मंदी आने की संभावना शून्य प्रतिशत थी जिसे इस महीने की शुरुआत में अर्थशास्त्रियों ने बढ़ाकर 38 कर दिया था और कहा था कि ऐसा 12 महीने के भीतर हो सकता है.

बड़े-बड़े आर्थिक संस्थान गोल्डमैन साक्स हो या मार्गन स्टेनले सब कह रहे हैं कि अगला दशक भारत का है। हम विश्व की फैक्ट्री बन रहे हैं। यह साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया के तमाम देशों से बेहतर ही रहेगी। वैश्विक प्रभाव से शार्ट टर्म में थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ सकता है लेकिन कुल मिलाकर भारत की आर्थिक वृद्धि सकारात्मक ही रहने वाली है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि वह उम्मीद कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में थोड़ी कमजोरी होगी जहां से देश “तेज वृद्धि से स्थिर वृद्धि की ओर जाएगा.” पिछले हफ्ते ही ब्लूमबर्ग ने कहा था कि अमेरिका में मंदी आने की संभावना 50 फीसदी तक है.

ब्लूमबर्ग ने कहा था कि एशिया के मंदी में जाने की संभावना 20-25 प्रतिशत है जबकि अमेरिका के लिए यह 40 और यूरोप के लिए 50-55 फीसदी तक है. कुछ महीने पहले तक अमेरिका में मंदी आने की संभावना शून्य प्रतिशत थी जिसे इस महीने की शुरुआत में अर्थशास्त्रियों ने बढ़ाकर 38 कर दिया था और कहा था कि ऐसा 12 महीने के भीतर हो सकता है.

अनिश्चित वैश्विक परिस्थितियों से भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित तो जरूर हो सकती है, लेकिन अगले वित्त वर्ष यानी 2023-24 में भारतीय अर्थव्यवस्था छह से सात प्रतिशत की दर से बढ़ेगी।

बड़े-बड़े आर्थिक संस्थान गोल्डमैन साक्स हो या मार्गन स्टेनले सब कह रहे हैं कि अगला दशक भारत का है। हम विश्व की फैक्ट्री बन रहे हैं। यह साफ है कि भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया के तमाम देशों से बेहतर ही रहेगी। वैश्विक प्रभाव से शार्ट टर्म में थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ सकता है लेकिन कुल मिलाकर भारत की आर्थिक वृद्धि सकारात्मक ही रहने वाली है।

एशिया में कई देश खतरे में

खाद्य संकट, बढ़ती महंगाई और केंद्रीय बैंकों द्वारा बढ़ाई जा रही ब्याज दरों के नतीजतन एशिया के कई देश मंदी के खतरे से जूझ रहे हैं लेकिन भारत में संभावना शून्य है. ब्लूमबर्ग वेबसाइट के लिए अर्थशास्त्रियों के बीच हुए एक सर्वेक्षण में यह बात कही गई.

सर्वेक्षण कहता है कि अपने सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के लिए मंदी की गर्त में जा गिरने की संभावना 85 प्रतिशत हो गई है और अगले साल ऐसा हो सकता है. पिछले सर्वे में यह संभावना 33 प्रतिशत थी और किसी एक देश की संभावनाओं की यह सबसे बड़ी वृद्धि है.

भारत में संभावना शून्य

कई देशों की मंदी में जाने की संभावनाओं में अर्थशास्त्रियों ने कोई बदलाव नहीं किया है. मसलन चीन के लिए यह 20 प्रतिशत है तो दक्षिण कोरिया व जापान के लिए 25 प्रतिशत. मूडीज अनैलिटिक्स इंक के एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए मुख्य अर्थशास्त्री स्टीवन कोचरेन कहते हैं कि जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों को महंगाई का झटका सबसे तगड़ा लगा है और इसका असर पूरे इलाके पर हो सकता है.

ब्लूमबर्ग के इस सर्वेक्षण का आधार हाउसिंग परमिट और उपभोक्ता सर्वे डेटा से लेकर खजाने में दस साल और तीन महीने के बीच हुई वृद्धि जैसे मानक हैं.

इन मानकों पर तौला जाए तो एशिया में एक भारत ही ऐसा देश है जिसके यहां मंदी आने की संभावना शून्य है. पाकिस्तान (20), मलयेशिया (13), वियतनाम (10), थाईलैंड (10) और इंडोनेशिया (3) भी इस सूची में हैं.

अर्थशास्त्रियों ने न्यूजीलैंड, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस की मंदी में चले जाने की संभावनाएं भी बढ़ा दी हैं. इनमें न्यूजीलैंड के लिए खतरा सबसे ज्यादा है जिसके यहां मंदी आने की संभावना 33 प्रतिशत जताई गई है. ऑस्ट्रेलिया और ताइवान में 20-20 प्रतिशत और फिलीपींस में आठ प्रतिशत संभावना है. इन देशों में भी मुद्रा स्फीति को काबू करने के लिए केंद्रीय बैंक लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं.

भारत में संभावना शून्य

कई देशों की मंदी में जाने की संभावनाओं में अर्थशास्त्रियों ने कोई बदलाव नहीं किया है. मसलन चीन के लिए यह 20 प्रतिशत है तो दक्षिण कोरिया व जापान के लिए 25 प्रतिशत. मूडीज अनैलिटिक्स इंक के एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए मुख्य अर्थशास्त्री स्टीवन कोचरेन कहते हैं कि जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपीय देशों को महंगाई का झटका सबसे तगड़ा लगा है और इसका असर पूरे इलाके पर हो सकता है.

ब्लूमबर्ग के इस सर्वेक्षण का आधार हाउसिंग परमिट और उपभोक्ता सर्वे डेटा से लेकर खजाने में दस साल और तीन महीने के बीच हुई वृद्धि जैसे मानक हैं.

इन मानकों पर तौला जाए तो एशिया में एक भारत ही ऐसा देश है जिसके यहां मंदी आने की संभावना शून्य है. पाकिस्तान (20), मलयेशिया (13), वियतनाम (10), थाईलैंड (10) और इंडोनेशिया (3) भी इस सूची में हैं.

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