उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बजट पर विशेष प्रतिक्रिया, योगी सरकार में अभूतपूर्व विकास के बाद अन्नदाता अब करदाता बनकर करें देश के विकास में योगदान
योगी सरकार के कार्यकाल में किसानों का अभूतपूर्व विकास हुआ है। उत्तर प्रदेश सरकार का आज का बजट इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। योगी सरकार ने वर्ष 2017 से जनवरी 2024 तक लगभग 46 लाख गन्ना किसानों को 2 लाख 33 हजार 793 करोड़ रुपए से अधिक का रिकार्ड गन्ना मूल्य भुगतान किया है। यह भुगतान इसके पूर्व के 22 वर्षों के कुल गन्ना मूल्य भुगतान 2 लाख 1 हजार 519 करोड़ रुपए से भी 20,274 करोड़ रुपए अधिक है। योगी सरकार का पहला बजट भी अन्नदाता किसानों को समर्पित था। कृषि प्रधान प्रदेश होने के नाते किसान स्वाभाविक रूप से उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। अब तक 37 लाख किसानों को क्रेडिट कार्ड दिया जा चुका है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत 2 करोड़ 62 लाख किसानों के खाते में 63,000 करोड़ रुपये भेजे जा चुके हैं। योगी सरकार के ऐसे अनेक प्रयासों के कारण उत्तर प्रदेश में किसानों की स्थिति निश्चित ही बेहतर से बेहतरीन हुई है। अब समय है जब संपन्न हो चुके बड़े किसानों को अपने ज़रूरत मंद छोटे किसान भाइयों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। वे अन्नदाता पर्याप्त आय के बाद अब करदाता बनकर यह कर सकते हैं।
ग़ौरतलब है कि राजनीतिक कारणों से भारत में कृषि आय करमुक्त है। फलस्वरूप खेती से कोई कितना भी अधिक कमाए उसे एक रुपया भी आयकर नहीं देना पड़ता है। इस गैरवाजिब छूट की आड़ में अनेक प्रकार के भ्रष्टाचार भी हो रहे हैं। एक बड़े नेता ने भी पहले गमले में गोभी उगाकर मोटी करमुक्त कमाई की थी। नीति आयोग की केंद्र सरकार से की गई एक सिफ़ारिश के मुताबिक़ देश के सिर्फ़ चार प्रतिशत बड़े किसानों से 25000 करोड़ रुपये का आयकर देश को मिल सकता है। मज़े की बात है कि भारत में सिर्फ़ 5 प्रतिशत बड़े किसानों के पास ही ट्रैक्टर हैं। सिर्फ़ इन्हें ही आयकर के दायरे में लाकर छोटे ग़रीब किसानों की बड़ी मदद की जा सकती है।
शहरों में सालाना ढाई लाख से ज़्यादा कमाने वाला मिडिल क्लास का मेहनतकश व्यक्ति अपनी कमाई पर न केवल इनकम टैक्स चुकाता है बल्कि गैस और रेलवे की सब्सिडी भी छोड़ देता है। करदाता होने के कारण उसे सरकार से अन्य कोई लाभ भी नहीं मिलता है। वहीं इस तथ्य के विपरीत उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2021 में 64,000 लखपति किसानों को चिन्हित किया था जिन्होंने फसल बेंच कर 10 लाख रुपये तक कमाए थे। साथ ही वे मुफ़्त राशन समेत अनेक सरकारी लाभ भी ले रहे थे।
हम सब के समान विकास की बात करते हैं लेकिन सब के समान योगदान की अनिवार्य आवश्यकता को भूल जाते हैं। समावेशी योगदान के बिना समावेशी विकास की बात बेमानी है। यह संभव नहीं। 98 प्रतिशत जनता का भार 2 प्रतिशत से भी कम करदाताओं पर डालना कहा तक न्याय संगत है? यदि हमें प्रदेश और देश का वास्तव में सर्वांगीण विकास चाहिए तो सभी के समान योगदान के प्रति भी जागरूक होना पड़ेगा।