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पद्म विभूषण पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा का निधन, लंबे समय से चल रहे थे बीमार

बेंगलुरु : एस.एम. कृष्णा का राजनीतिक सफर लगभग 60 साल लंबा रहा। 1962 में अमेरिका से लौटने के बाद उन्होंने अपना पहला चुनाव लड़ा। उनकी सेवाओं के लिए 2020 में उन्हें भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। कृष्णा ने 2017 में कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामा। हालांकि, भाजपा में शामिल होने के बाद वह राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। उन्हें खास तौर पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के लिए याद किया जाता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा के निधन पर शोक व्यक्त किया। पीएम मोदी ने उनकी सराहना करते हुए उन्हें एक उल्लेखनीय नेता बताया जो कर्नाटक में ढांचागत विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जाने जाते हैं। पूर्व विदेश मंत्री और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सोमनहल्ली मल्लैया कृष्णा का मंगलवार तड़के बेंगलुरू स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे और उनका उम्र संबंधी बीमारियों का इलाज चल रहा था। अपनी बौद्धिक क्षमता और प्रशासनिक कौशल के लिए जाने जाने वाले एस एम कृष्णा का राजनीतिक करियर पांच दशक से भी ज्यादा समय तक शानदार रहा।

एक एक्स पोस्ट में पीएम मोदी ने लिखा, “एस.एम. कृष्णा एक असाधारण नेता थे, जिनकी प्रशंसा हर वर्ग के लोग करते थे। उन्होंने हमेशा दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए अथक प्रयास किया। कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल खासकर बुनियादी ढांचे के विकास पर उनके ध्यान के लिए उन्हें याद किया जाता है। वह एक पाठक और विचारक भी थे।”

उन्होंने एक्स पर आगे लिखा कि पिछले कुछ वर्षों में मुझे एसएम कृष्णा जी के साथ बातचीत करने के कई अवसर मिले हैं, और मैं उन बातचीत को हमेशा याद रखूंगा। उनके निधन से मुझे गहरा दुख हुआ है। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं। ओम शांति।

1 मई, 1932 को कर्नाटक के मद्दुर में जन्मे कृष्णा ने मैसूर के महाराजा कॉलेज और बेंगलुरु के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की, उसके बाद टेक्सास के सदर्न मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी और वाशिंगटन डीसी के जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से एडवांस डिग्री हासिल की। ​​प्रतिष्ठित फुलब्राइट स्कॉलरशिप प्राप्तकर्ता कृष्णा अपने समय के सबसे सफल नेताओं में से एक थे।

उन्होंने 1999 से 2004 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, जिसके दौरान उन्होंने बेंगलुरू को वैश्विक आईटी हब में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यूपीए सरकार के तहत 2009 से 2012 तक विदेश मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल ने एक प्रतिष्ठित राजनेता के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को और मजबूत किया। उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल (2004-2008) और कर्नाटक विधानसभा का अध्यक्ष (1989-1993) पद भी संभाला।

कांग्रेस के दिग्गज रहे कृष्णा ने वैचारिक मतभेदों का हवाला देते हुए 2017 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जॉइन कर ली। अपनी सेवानिवृत्ति तक कर्नाटक की राजनीति में मार्गदर्शक बने रहे। उनके योगदान के सम्मान में, उन्हें 2023 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। कृष्णा की सार्वजनिक सेवा के प्रति प्रतिबद्धता और कर्नाटक के लिए उनके दृष्टिकोण ने राज्य के शासन और विकास पर एक अमिट छाप छोड़ी। सक्रिय राजनीति से दूर रहने के बाद भी, कर्नाटक की सांस्कृतिक विरासत के साथ उनका जुड़ाव मजबूत रहा।

मुख्यमंत्री के रूप में कृष्णा ने कर्नाटक, खासतौर पर बेंगलुरु, को आईटी सेक्टर का बड़ा केंद्र बनाने में अहम भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से बेंगलुरु को एक वैश्विक आईटी हब के रूप में पहचान मिली। उनके कार्यकाल में कई चुनौतियां भी आईं, जैसे वीरप्पन द्वारा डॉ. राजकुमार का अपहरण और कावेरी जल विवाद के कारण राज्य में हिंसक प्रदर्शन। एस.एम. कृष्णा को उनकी दूरदर्शिता और विकास कार्यों के लिए हमेशा याद किया जाएगा, खासकर बेंगलुरु और कर्नाटक में आईटी क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए।

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