Tuesday, September 23, 2025
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ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने दी फलस्तीन राज्य को मान्यता, जानें क्या है इसका मतलब; कितने बदलेंगे हालात

Britain, Australia And Canada Recognise Palestinian State: फलस्तीन और इजरायल का विवाद दशकों से अंतरराष्ट्रीय राजनीति का सबसे जटिल मुद्दा रहा है। कई युद्ध, शांति वार्ताएं और समझौते हुए, लेकिन स्थायी समाधान कभी सामने नहीं आया। अब ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने फलस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दे दी है। यह कदम केवल फलस्तीन के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की कूटनीति और पश्चिम एशिया की स्थिरता के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। चलिए इस बारे में समझते हैं।

मान्यता का क्या मतलब है?

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में किसी राज्य को मान्यता देने का मतलब है कि दूसरे देश उसे वैध राष्ट्र मान रहे हैं और उसके साथ राजनयिक, आर्थिक और राजनीतिक रिश्ते बनाने को तैयार है। इससे फलस्तीन अब ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों की नजर में केवल एक ‘विवादित क्षेत्र’ नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र और वैध राज्य माना जाएगा। इन देशों के दूतावास, व्यापारिक समझौते और राजनयिक प्रतिनिधि अब फलस्तीन में सीधे काम कर सकेंगे। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फलस्तीन की स्थिति और मजबूत होगी, जिससे उसे संयुक्त राष्ट्र (UN) की पूर्ण सदस्यता दिलाने का रास्ता भी साफ हो सकता है।

अब तक क्या रही है स्थिति?

फलस्तीन को दुनिया के लगभग 140 देशों ने पहले ही मान्यता दे दी थी। इनमें ज्यादातर अरब और एशियाई देश शामिल हैं। लेकिन, पश्चिमी देशों में अभी तक अधिकतर सरकारें इस मुद्दे पर अमेरिका की नीति के अनुरूप ही चलती रही हैं। अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों ने हमेशा फलस्तीन की मान्यता से परहेज किया है, क्योंकि वो इजरायल को नाराज नहीं करना चाहते थे। ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों ने अब तक केवल “दो-राष्ट्र समाधान” की बात की थी लेकिन औपचारिक मान्यता देने से बचते रहे। ऑस्ट्रेलिया ने भी अमेरिकी नीति का अनुसरण किया। ऐसे में इन तीनों देशों का यह कदम फलस्तीन के लिए बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकता है।

बदलते हालात का क्या होगा असर?

इजरायल पर बढ़ेगा कूटनीतिक दबाव: इजरायल को लंबे समय से पश्चिमी देशों का समर्थन मिलता रहा है। लेकिन, जब उसके करीबी सहयोगी देश भी फलस्तीन को मान्यता देंगे, तो इजरायल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी दबाव झेलना पड़ेगा। इससे उसकी नीतियों में नरमी लाने और बातचीत की मेज पर आने की संभावना बढ़ सकती है।

फलस्तीन को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय मजबूती: फलस्तीन अब और मजबूत स्थिति में आ जाएगा। गाजा और वेस्ट बैंक में काम करने वाली उसकी सरकार को अब राजनयिक सहयोग मिलेगा, आर्थिक सहायता का दायरा बढ़ेगा और नए व्यापारिक समझौते संभव होंगे।  ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के खुले समर्थन से शांति प्रक्रिया को नया बल मिल सकता है।

अमेरिका पर बढ़ेगा दबाव: अमेरिका अब तक फलस्तीन की मान्यता से बचता रहा है। लेकिन, जब उसके करीबी सहयोगी देश यह कदम उठा चुके हैं, तो उस पर भी नीति बदलने का दबाव पड़ेगा। अगर अमेरिका मान्यता देता है, तो यह फलस्तीन के लिए सबसे बड़ी कूटनीतिक जीत होगी। हालांकि, यह भी सच है कि मान्यता से जमीनी हालात तुरंत नहीं बदलेंगे। गाजा में जारी हिंसा, वेस्ट बैंक में बस्तियों का विस्तार और इजरायली सेना की कार्रवाई अभी भी जारी रहेगी। लेकिन, लंबी अवधि में यह कदम संघर्ष के समाधान की नींव रख सकता है।

दुनिया पर क्या होगा असर?

ब्रिटेन के इस निर्णय से अन्य यूरोपीय देशों पर भी दबाव बढ़ेगा। फ्रांस, जर्मनी और इटली जैसे बड़े देशों को अब तय करना होगा कि वो फलस्तीन को मान्यता देने के पक्ष में हैं या नहीं। इतना ही नहीं अरब और मुस्लिम देश लंबे समय से फलस्तीन का समर्थन कर रहे हैं। अब जब पश्चिमी देश भी इजरायल के खिलाफ संतुलन बनाने लगे हैं, तो अरब देशों का समर्थन और मजबूत होगा। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन की पूर्ण सदस्यता का मुद्दा कई बार अटक चुका है। लेकिन, अब इस मान्यता से यह मुद्दा और तेजी पकड़ सकता है।

क्या बदलेंगे हालात?

  • तुरंत संघर्ष खत्म नहीं होगा। इजरायल औरफलस्तीन के बीच तनाव जारी रहेगा।
  • फलस्तीन को अंतरराष्ट्रीय समर्थन, आर्थिक सहयोग और कूटनीतिक मजबूती मिलेगी।
  • अगर अमेरिका और यूरोप के बड़े देश भी मान्यता देते हैं, तो “दो-राष्ट्र समाधान” की संभावना वास्तविक रूप ले सकती है।

वैसे देखा जाए तो ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया का फलस्तीन को मान्यता देना केवल कूटनीतिक औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह पश्चिमी राजनीति में बड़ा बदलाव है। इससे फलस्तीन को वैधता तो मिलेगी ही साथ ही इजरायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बढ़ेगा। हालांकि, तत्काल संघर्ष की स्थितियां नहीं बदलेंगी, लेकिन इसका असर भविष्य में जरूर नजर आएगा।