Top Newsउत्तर प्रदेशराज्य

कला दीर्घा, दृश्य कलाओं की अंतर्देशीय पत्रिका एवं द सेंट्रम, लखनऊ का सहआयोजन


Lucknow: कला दीर्घा अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका एवं द सेंट्रम, लखनऊ द्वारा आयोजित बसंत अखिल भारतीय चित्रकला प्रदर्शनी का आज उद्घाटन हुआ। द सेंट्रम, लखनऊ में आयोजित इस प्रदर्शनी का उद्घाटन डॉ जी के गोस्वामी, भा.पु.से., अपर पुलिस महानिदेशक एवं संस्थापक निदेशक, उ.प्र. स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ फॉरेंसिक साइंस, लखनऊ ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया और कहा कि कलाओं के सहचार्य से मन पवित्र होता है और कलाकार होना ईश्वर की अतिरिक्त कृपा है। डॉ अवधेश मिश्र और डॉ लीना मिश्र के सानिध्य में इतने सारे कलाकारों का एक साथ आकर अपनी कला का प्रदर्शन करना इस नगर में कलात्मक वातावरण बनाने में एक महत्वपूर्ण अवदान की तरह देखा जाएगा। बसंत प्रदर्शनी में कला दीर्घा पत्रिका के संपादक एवं डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के अध्यापक डॉ अवधेश मिश्र, अमृतसर के सहायक आचार्य डॉ ललित गोपाल पाराशर, कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ के सहायक आचार्य रविकांत पाण्डेय, महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, सतना के अध्यापक डॉ राकेश कुमार मौर्य, लखनऊ की टैक्सटाइल डिजाइनर एवं सहायक अध्यापक डॉ अनीता वर्मा, स्वतंत्र कलाकार सुमित कुमार, युवा छायाकार एवं अभिकल्पक अर्चिता मिश्र, मध्य प्रदेश में कार्यरत सहायक अध्यापक अनुराग गौतम, राजस्थान के छापा कलाकार अपूर्व चौधरी, पांडिचेरी के सहायक अध्यापक अभिषेक कुमार, गोरखपुर से आकांक्षा त्रिपाठी, मनेंद्रगढ़ छत्तीसगढ़ से गणेश शंकर मिश्र, लखनऊ की स्वतंत्र कलाकार दीक्षा वाजपेई एवं निधि चौबे, दिल्ली के स्वतंत्र कलाकार भारत कुमार जैन, डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ के शोधार्थी प्रशांत चौधरी श्रद्धा तिवारी, जम्मू एवं कश्मीर की रंजू कुमारी, डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय की अतिथि व्याख्याता डॉ रीना गौतम और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ सुनील कुमार पटेल भाग ले रहे हैं। यह प्रदर्शनी बसंत उत्सव के उपलक्ष में आयोजित की गई है। भारत में बसन्त ऋतु को सांस्कृतिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस समय कई प्रमुख त्यौहार मनाए जाते हैं, जैसे – ‘बसन्त पञ्चमी’, ‘होली’ और ‘माघी संक्रान्ति’। ‘बसन्त पञ्चमी’ का त्यौहार भारतीय संस्कृति में विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है जो ज्ञान, कला, संगीत और साहित्य की देवी मानी जाती हैं। यह दिन विद्यार्थियों, कलाकारों और शास्त्रज्ञों के लिए विशेष आशीर्वाद का दिन होता है। इसके अलावा बसन्त ऋतु में होली का त्यौहार भी आता है जो प्रेम, भाईचारे और मिलनसारिता का प्रतीक है। विविध वर्णों से परिपूर्ण इस होली में बसन्त के रंगों का गहरा सम्बन्ध है क्योंकि रंगों की चादर ओढ़े बगिया इस मौसम में खिल उठती है। होली के दौरान लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और पुराने गिले-शिकवे दूर करते हैं जो समाज में एकता और सामूहिक भावना को बढ़ावा देता है। भारत के काव्य-साहित्य में बसन्त ऋतु का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। कवियों ने इस ऋतु को अपनी रचनाओं में सुंदरता, प्रेम और प्रसन्नता का प्रतीक माना है। कालिदास के ‘ऋतुसंहार’ ग्रंथ में बसन्त ऋतु का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। हिंदी साहित्य (काव्य) में भी सूरदास, बिहारीलाल और मीराबाई जैसे संत कवियों ने बसंत ऋतु के सुंदर चित्रण किए हैं। बसंत का मौसम प्रेम और सुंदरता की अभिव्यक्ति के रूप में दिखाया गया है। बसंत ऋतु का असर न केवल बाहरी वातावरण पर होता है, बल्कि यह मानसिक स्थिति पर भी प्रभाव डालता है। इस समय वातावरण में ताजगी और सुखद ऊर्जा का संचार होता है, जो व्यक्ति को शान्ति और मानसिक प्रसन्नता प्रदान करता है। ठण्डी हवाओं के साथ सुहावनी धूप व्यक्ति को ऊर्जा से भर देती हैं जिससे व्यक्तियों में अप्रत्याशित उत्साह आता है और वे रचनात्मकता की ओर अग्रसर होते हैं। प्राकृतिक रूप से बसन्त ऋतु प्रेम की भी ऋतु मानी जाती है। जिस प्रकार पेड़-पौधे सर्दियों के बाद नए पत्तों और फूलों से सजते हैं, वैसे ही हमें भी कठिनाइयों और दुखों के बाद नए विचारों और उम्मीदों के साथ जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। यह इस ऋतु का सन्देश भी होता है। बसन्त ऋतु न केवल प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह मानसिक शान्ति, प्रेम और नवीनीकरण का भी समय है। यह समय हमें प्रकृति से जुड़ने और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देता है। बसन्त ऋतु कविताएँ, लेख, संगीत, चित्रण, मूर्तन और अन्य अनेक विधाओं में रचने को प्रवृत्त करता है। यह समय न केवल हमारी धरती, बल्कि हमारे दिलों को भी प्रेम, ऊर्जा और नवीनीकरण से भर देता है। इसलिए प्रकृति और देवी सरस्वती के इस सन्देश से अनुप्राणित हो ‘कला दीर्घा’ बीस कलाकारों को जोड़ते हुए एक मंच पर लाकर बासन्ती रूप-रंगों के सृजन से कलाप्रेमियों में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करेगी, ताकि वे ऊर्जा से लबरेज सृजन-पथ पर आगे बढ़ें और यथायोग्य समाज और राष्ट्र के विकास में अवदान दें।
प्रदर्शनी के कुल 21 कलाकारों ने अपनी शैली और माध्यम में बसंत और उससे परे भी रचना देवी की प्रेरणा से बहुत कुछ अव्यक्त को भी व्यक्त किया है। प्रदर्शनी की क्यूरेटर डॉ लीना मिश्र ने बताया कि ‘कलादीर्घा’ भारतीय कलाओं के विविध स्वरूपों का दस्तावेजीकरण और उसके प्रसार के उद्देश्य से सन 2000 में स्थापित, दृश्य कलाओं की अन्तरदेशीय कला पत्रिका है जो अपनी उत्कृष्ट कला-सामग्री और सुरुचिपूर्ण-कलेवर के कारण सम्पूर्ण कलाजगत में महत्त्वपूर्ण पत्रिका के रूप में दर्ज की गई है। अपने स्थापनावर्ष से लेकर आज अपनी यात्रा के रजत जयन्ती वर्ष पूर्ण करने तक पत्रिका ने उत्साहपूर्वक लखनऊ, पटना, भोपाल, जयपुर, बंगलौर, नई दिल्ली, लंदन, बर्मिंघम, दुबई, मस्कट आदि महानगरों में अनेक कला-गतिविधियों का उल्लेखनीय आयोजन किया है और आगे भी सोल्लास अपने दायित्वों का निर्वहन करती रहेगी। पत्रिका ने समय-समय पर वरिष्ठ कलाकारों के कला-अवदान का सम्मान करते हुए युवा कलाकारों को अपनी अभिव्यक्ति और नित नए प्रयोगों को कलाप्रेमियों के समक्ष प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान किया है। हाल में ही आयोजित कला प्रदर्शनी ‘हौसला’, ‘वत्सल’ ‘समर्पण’ और ‘ढिबरी’ के उपरान्त आज फिर ‘बसन्त’ प्रदर्शनी के साथ उपस्थित है। बसंत प्रदर्शनी में द सेंट्रम के स्वामी सर्वेश गोयल की विशेष उपस्थिति रही। प्रदर्शनी के समन्वयकद्वय डॉ अनीता वर्मा एवं सुमित कुमार ने बताया की यह प्रदर्शनी 9 फरवरी तक दोपहर 12:00 बजे से साइंस 7:00 बजे तक दर्शकों के अवलोकनार्थ खुली रहेगी।

नोट: अगर आपको यह खबर पसंद आई तो इसे शेयर करना न भूलें, देश-विदेश से जुड़ी ताजा अपडेट पाने के लिए कृपया The Lucknow Tribune के  Facebook  पेज को Like व Twitter पर Follow करना न भूलें... -------------------------