जातीय जनगणना के साथ करदाताओं के योगदान की गणना भी जरूरी
मोदी सरकार के जातिगत जनगणना के फ़ैसले का स्वागत करते हुए करदाताओं के संगठन ग्लोबल टैक्सपेयर्स ट्रस्ट के चेयरमैन मनीष खेमका ने माँग की है कि जातीय जनगणना के साथ ही सरकार देश के निर्माण में मेहनतकश करदाताओं के महत्वपूर्ण योगदान की गणना भी कराए। साथ ही इस आधार पर उन्हें प्राथमिकता के साथ ज़रूरी सुविधाएँ, सुरक्षा और सम्मान समेत समुचित हक दिया जाना चाहिए।
ग्लोबल टैक्सपेयर्स ट्रस्ट के चेयरमैन मनीष खेमका ने सरकार से अपनी इस पुरानी माँग को दोहराते हुए कहा कि “जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी, यदि यह नियम सही है तो देश के विकास में जिसका जितना योगदान भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी इस माँग में क्या ग़लत है? इस तथ्य पर देश के जागरूक बुद्धिजीवियों में एक स्वस्थ बहस की आवश्यकता है।” हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जातिगत जनगणना का सदुपयोग देशहित और जन कल्याण में हो। इसके नतीजों का राजनीतिक दुरुपयोग न हो इसके लिए ज़रूरी है कि जनगणना में आर्थिक स्थिति के साथ ही देश के कर राजस्व में नागरिकों के योगदान की गणना भी जरूर की जाए। देश की वास्तविक स्थिति तभी स्पष्ट होगी। नीति निर्माता इससे सभी के हित में तार्किक व न्यायोचित फ़ैसले ले सकेंगे।
खेमका ने कहा कि आज शहरों में 25-50 हज़ार रुपये महीना कमाने वाला हर व्यक्ति आयकर के दायरे में है। हर जाति और धर्म से आने वाले भारत के यह मध्यमवर्गीय नागरिक कठिनाई से अपना परिवार पालने के साथ ही साथ देश के विकास में वास्तविक व निःस्वार्थ योगदान देते हैं। शहरी ग़रीब होने के बावजूद करदाता होने के कारण उन्हें किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता है। मुफ़्त राशन, भत्ते, नरेगा और आयुष्मान योजना जैसी सभी सरकारी योजनाओं से वह वंचित रहते हैं। मज़े की बात तो यह कि यह सारी योजनाएं चलती उनके ही पैसों से हैं। इतिहास गवाह है कि देश को लगातार देने वाले करदाताओं ने कभी भी अपनी माँगो को लेकर कोई आंदोलन नहीं किया। वास्तव में करदाता देश का ऐसा अकेला अल्पसंख्यक और वंचित समाज है जिसमें सभी धर्म और जाति के लोग शामिल है। इसमें ग़रीब किसान, दलित और पिछड़े वर्ग की वह संतानें भी है जो शहर में मुश्किल से अपना परिवार चलाने के बावजूद आयकर का अतिरिक्त भुगतान करके देश भी चला रही हैं। ऐसे करदाता निश्चित ही सम्मान के पात्र हैं। वास्तव में देश के संसाधनों पर यदि किसी का पहला हक़ है तो वह किसी जाति या धर्म का नहीं बल्कि संसाधनों को पैदा करने वाले करदाताओं का है। लोक हितकारी राज्य की संकल्पना में निश्चित ही वंचितों को सरकार से सहायता माँगने का अधिकार है। किसी को भी यदि सरकार से मदद चाहिए तो इसका आधार भी उसकी आर्थिक स्थिति होनी चाहिए जातिगत नहीं। करदाताओं की गाढ़ी मेहनत की कमाई को राजनीतिक लाभ के लिए अपात्रों को बाँटना न केवल अन्याय बल्कि अनैतिक भी है।
देश के विकास के लिए कर की दरों को नहीं बल्कि करदाताओं की संख्या बढ़ाने के पक्षधर व सरकार के राजस्व से संबंधित नीतिगत विषयों पर लंबे समय से काम करने वाले खेमका ने कहा कि सरकार के इस निर्णय से देश के करदाता प्रोत्साहित होंगे। उनकी संख्या बढ़ेगी। फलस्वरूप भारत में कारोबार और रोज़गार बढ़ेगा। आय बढ़ने से ग़रीबी हटेगी और देश का सर्वांगीण विकास होगा। सरकार के इस न्यायप्रिय क़दम से यह तय होगा कि हम देश में लेने वालों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं या फिर देश को देने वालों की।