इमरजेंसी के समय का माहौल मैंने अपनी आँखों से देखा है”: अनुपम खैर
1. 1975 में जब इमरजेंसी लगी, तब आप नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में छात्र थे। उस दौर का अनुभव आपको जयप्रकाश नारायण का किरदार निभाने में कैसे मददगार रहा?
मैं उस समय एनएसडी में था, जब इमरजेंसी लगाई गई। माहौल बेहद तनावपूर्ण था, हर तरफ डर और अनिश्चितता का माहौल था। मैंने वह सब अपनी आँखों से देखा है, इसलिए मुझे लोगों की पीड़ा को समझने के लिए कल्पना करने की ज़रूरत नहीं थी। उस दौर की यादों ने मुझे जयप्रकाश नारायण जी के किरदार से सहज रूप से जोड़ दिया, जो उस व्यवस्था के ख़िलाफ खड़े हुए थे।

2. आपने कई इंटरव्यू में कहा कि कंगना रनौत ने सेट पर सभी कलाकारों के लिए पूरा होमवर्क किया था। बतौर निर्देशक उनकी तैयारी और दृष्टि ने आपके अभिनय को कैसे आकार दिया?
सच कहूँ, तो इस रोल के लिए मुझे ज़्यादा रिसर्च करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि कंगना ने सब हमारे लिए कर दिया था। उन्हें साफ पता था कि हर किरदार से उन्हें क्या चाहिए और उन्होंने हमें सारी सामग्री उपलब्ध करवाई। एक एक्टर के तौर पर इससे मेरा काम आसान हो गया और मैं सिर्फ अभिनय पर ध्यान केंद्रित कर पाया। उन्होंने निर्देशक के तौर पर वाकई बहुत मेहनत की।

3. अब इमरजेंसी का वर्ल्ड टेलीविज़न प्रीमियर ज़ी सिनेमा पर हो रहा है। दर्शकों तक इस फिल्म के पहुँचने को लेकर आप कितने उत्साहित हैं?
मैं बहुत उत्साहित हूँ, क्योंकि टेलीविज़न की पहुँच भारत में बहुत बड़ी है। हर कोई थिएटर तक नहीं जा पाता, लेकिन ज़ी सिनेमा के ज़रिए देशभर के परिवार एक साथ बैठकर इस अहम अध्याय को देख सकेंगे। जब दर्शक इसे अपने घरों में देखेंगे, परिवार के साथ चर्चा करेंगे, तो यह फिल्म उनसे और गहराई से जुड़ पाएगी। मैं सभी दर्शकों से आग्रह करता हूँ कि इस शुक्रवार, 12 सितंबर को ज़ी सिनेमा ज़रूर देखें और इस क्लासिक फिल्म को अपने घर के आरामदायक माहौल में देखें।
तो देखना न भूलें 12 सितंबर को रात 8 बजे ज़ी सिनेमा पर इस भावपूर्ण कहानी और इससे मिलने वाले संदेश को, जो आज भी उतनी ही
