5 लाख दीपों से रोशन हुई महादेव की नगरी, देवताओं ने किया नमन, धनखड़ बोले- मिट्टी जहां की पारस उसका नाम बनारस
वाराणसीः महादेव की नगरी काशी में आज देव दीपावली मनाई जा रही है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नमों घाट पर पहला दीया जलाया। इस दौरान उन्होंने नमों घाट का लोकर्पण किया। नमो घाट को काशी वासियों के हवाले करते हुए जगदीप धनखड़ ने पूछा कि क्या नमों घाट दुनिया का सबसे बड़ा घाट है, इस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि दुनिया और कहीं घाट है नहीं, इस दोनों लोग हंसने लगे।
इस अवसर पर राज्यपाल आनंदी बेन पलेट, सीएम योगी और केंद्रीय मंत्री हरदीपुरी मौजूद रहे। इस दौरान सभी ने देव दीपावली के असवर दीप जलाए। काशी में अयोध्या के तर्ज पर दीवाली मनाई जा रही है। बनारस के सभी 84 घाटों और 700 मंदिरों में 25 लाख दीप जलाए गए। वहीं इस देव दीपावली पर दीयों से जगमग महादेव की नगरी में लेजर लाइटों ने चार चांद लगा दिए।
आरती स्थल दशाश्वमेध और अस्सी घाट पर टूरिस्ट की भीड़ है। शाम 7 बजे महाआरती होगी। देव दीपावली देखने इंडोनेशिया, वियतनाम और फ्रांस समेत 40 देशों के मेहमान आए हैं। अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर से 15 लाख लोग काशी पहुंचे हैं। लोग इस पल को अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहते हैं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड ने संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की तपस्या से जो बदलाव हो रहा है, उससे देखकर दुनिया अचंभित है। धनखड़ ने काशी में देव दीपावली के अवसर दीप जलाकर नमो घाट का लोकार्पण किया और अपने संबोधन में कहा,‘‘(नमो) घाट उस व्यक्ति (नरेन्द्र मोदी) को परिभाषित करता है। नमो घाट तो सबसे बड़ा होना ही चाहिए। अपना भारत अकल्पनीय तरीके से बदल रहा है, जो सोचा नहीं, वह संभव हो रहा है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को देव दीपावली के अवसर पर काशी को “अद्वितीय” बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले एक दशक में शहर ने उल्लेखनीय रूप से बदलाव करते हुए अपनी परंपरा और संस्कृति को संरक्षित रखा है। पिछले 10 वर्षों में हमने एक बदलते भारत को देखा है, और काशी के लोग इस परिवर्तन का हिस्सा रहे हैं। काशी ने अपनी परंपरा और संस्कृति को संरक्षित करते हुए नए सिरे से उभरी है। दस साल पहले, विशेषज्ञ प्रदूषण के कारण यहां गंगा के पानी का उपयोग स्नान के लिए भी नहीं करते थे।