उत्तर प्रदेश

‘ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति पर रिपोर्ट- 2024’ में स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराने के तरीके में बुनियादी बदलाव के साधन के रूप में ‘नेबरहुडज़ ऑफ़ केयर’ का विचार प्रस्तुत किया गया


भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था में काफी अंतर होता है, जो वहाँ के विशेष संदर्भों पर निर्भर है। इसलिए स्वास्थ्य सेवाओं की मांग, खास तौर पर ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की मांग को सार्वजनिक स्वास्थ्य के नज़रिये से समझना बेहद महत्वपूर्ण है, जहाँ देश की लगभग 68 प्रतिशत आबादी रहती है। ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति पर रिपोर्ट- 2024, ‘नेबरहुडज़ ऑफ़ केयर’ में इसके बारे में विस्तृत दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है कि, अलग-अलग ग्रामीण समुदाय चिकित्सा सहायता प्राप्त करने के बारे में किस तरह निर्णय लेते हैं, वे किस तरह की स्वास्थ्य सेवाएँ चुनते हैं, तथा वे अपने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए किस क्रम में कार्रवाई करते हैं।

ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (TRI) और इसकी पहल, डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने साथ मिलकर ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति पर सर्वेक्षण किया, जिसमें देश के 21 राज्यों के कुल 5,389 परिवारों को शामिल किया गया। इस सर्वेक्षण में पड़ोस की संरचना, घरेलू सुविधाओं की सहज उपलब्धता, घरेलू स्तर पर देखभाल तथा शारीरिक व मानसिक सेहत के लिए अभ्यास पर विशेष ध्यान देते हुए ग्रामीण परिवार और समुदाय के स्तर पर स्वास्थ्य सेवा के घटकों की जाँच की गई।

इस सर्वेक्षण के रिपोर्ट से यह बात सामने आई कि, बुजुर्ग सदस्यों वाले 73% ग्रामीण परिवारों को लगातार स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत होती है। फिर भी, शुल्क लेकर स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वाले बाहरी देखभालकर्ताओं को नियुक्त करना ग्रामीण भारत में बहुत ज़्यादा लोकप्रिय नहीं दिखाई देता है, क्योंकि सर्वेक्षण में शामिल सिर्फ़ 3% परिवारों ने ही इस विकल्प को चुना है। ज़्यादातर लोग (95.7%) घर पर उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं को पसंद करते हैं, तथा ऐसे लोगों में महिलाएँ सबसे अधिक (72.1%) हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य सेवाकर्मियों को घर पर दी जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं में प्रशिक्षण देने की ज़रूरत को उजागर करती हैं।

इसके साथ-साथ अन्य निष्कर्षों के आधार पर, इस रिपोर्ट में ‘नेबरहुडज़ ऑफ़ केयर’ का विचार प्रस्तुत किया गया है, जो बड़े पैमाने पर बदलाव लाने वाला एक मॉडल है और स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया कराने के पारंपरिक तरीकों से बिल्कुल अलग है। इसमें सामाजिक और पारिस्थितिक घटकों को ध्यान में रखते हुए समग्र और निजी ज़रूरतों के अनुरूप स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराने पर बल दिया जाता है। ‘नेबरहुडज़ ऑफ़ केयर’ का मॉडल पारंपरिक स्वास्थ्य सेवाओं की तुलना में ज़्यादा सुविधाजनक है, जिसमें लोगों, परिवारों और समुदायों की प्राथमिकताओं, उनके हितों और लक्ष्यों को एकीकृत किया जाता है। यह चिकित्सकों, सामाजिक सेवा प्रदाताओं, देखभालकर्मियों, सामुदायिक संगठनों तथा निवासियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है। यह मॉडल इस बात को भी स्वीकार करता है कि सेहतमंद भविष्य का साथ मिलकर निर्माण करने, साथ मिलकर कार्यों को पूरा करने और साथ मिलकर मूल्यांकन करने की ज़रूरत होती है।

डॉ. मेजर जनरल (प्रोफेसर) अतुल कोटवाल, कार्यकारी निदेशक, नेशनल हेल्थ सिस्टम्स रिसोर्स सेंटर (एनएचएसआरसी) ने कहा, “वर्तमान स्वास्थ्य प्रणाली में एएसएचए और सीएचओ जैसे विभिन्न प्रदाता शामिल हैं, जो एक विकसित होते पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर काम कर रहे हैं। यह मॉडल, जिसे इको-सोशियो-एपिडेमियोलॉजिकल दृष्टिकोण द्वारा उजागर किया गया है, स्वास्थ्य को व्यापक रूप से संबोधित करने का लक्ष्य रखता है, केवल तकनीकी समाधानों पर निर्भर रहने के बजाय। यह समुदाय और व्यवहारिक गतिशीलताओं को स्वास्थ्य योजना में शामिल करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। हालांकि, मौजूदा तंत्र सहयोग के लिए एक ढांचा प्रदान करते हैं, लेकिन अधिक प्रभावी और नियमित बातचीत की आवश्यकता है। इन कनेक्शनों को मजबूत करना और स्थानीय समितियों और स्व-सहायता समूहों से जोड़ना ज़रूरी है, ताकि पड़ोस ग्रामीण नागरिकों की देखभाल को बेहतर बनाया जा सके और सामुदायिक आवश्यकताओं को व्यापक रूप से संबोधित किया जा सके।”

सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्षों में से एक लोगों की मानसिक सेहत से संबंधित था, जिससे यह बात जाहिर होती है ग्रामीण भारत में चिंता का स्तर बढ़ गया है, जिससे यह अब सिर्फ़ ‘शहरी’ क्षेत्र की घटना नहीं रह गई है। गौरतलब है कि, ग्रामीण समुदायों के 45% पुरुष व महिला उत्तरदाताओं ने बताया कि वे ज़्यादातर समय चिंतित और परेशानी से ग्रस्त रहते हैं, जिसका बुरा असर उनकी मानसिक स्थिति पर पड़ता है।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए, ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (TRI) में हेल्थ एंड न्यूट्रिशन के एसोसिएट डायरेक्टर, श्यामल सांतरा ने कहा, “आमतौर पर ज़्यादातर लोग बीमारियों के उपचार हेतु स्वास्थ्य सेवा के बारे में बात करते हैं। लेकिन यह रिपोर्ट अच्छे सेहत को बनाए रखने की ज़रूरत को एक मानक के रूप में देखती है। ज़्यादातर अध्ययन बीमारियों के बारे में, या सेवाओं और सुविधाओं के बारे में होते हैं, लेकिन असल ज़िंदगी में इसका नाता लोगों, उनके परिवारों, उनके सामाजिक संबंधों और उनके देखभाल करने वालों से है। इसी वजह से, इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य के उन अलग-अलग पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिनका संबंध लोगों को सेहतमंद बनाने से है। अगर हम आबादी के स्तर पर हो रहे बदलाव पर ग़ौर करें, तो इनमें बुजुर्गों की संख्या काफी अधिक है। इसके अलावा, सामाजिक संरचना में बदलाव के साथ परिवार का मूल स्वरूप भी बदल रहा है- क्योंकि अधिकतर परिवारों के बच्चे कामकाज की तलाश में दूसरी जगह चले जाते हैं, इसलिए उन बुजुर्गों को देखभाल की ज़रूरत है।”

इस रिपोर्ट के अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्षों पर एक नज़र:
– सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 60% से अधिक उत्तरदाताओं के पास अपने लिए, या फिर अपने परिवार के सदस्यों के लिए कोई जीवन बीमा कवरेज नहीं था।
– डायग्नोस्टिक सुविधाओं की सीमित उपलब्धता के साथ-साथ सस्ती दवाओं का सुलभ नहीं होना आज भी एक बड़ी चुनौती है, और सिर्फ़ 12.2% उत्तरदाताओं को सब्सिडी वाली दवाइयाँ सहज उपलब्ध थी जबकि 21% उत्तरदाताओं के आस-पड़ोस में कोई मेडिकल स्टोर नहीं था।
– लगभग 50% उत्तरदाताओं का मानना था कि, चूँकि वे अपने खेतों पर काम करते हैं और शारीरिक मेहनत करते हैं, इसलिए वे तंदुरुस्त रहते हैं। इसलिए, उन्हें अतिरिक्त व्यायाम करने की ज़रूरत नहीं है। केवल 10% लोग ही योग अथवा शारीरिक तंदुरुस्ती के लिए अन्य गतिविधियों का अभ्यास करते हैं।
– 5 में से 1 उत्तरदाता ने बताया कि उनके गाँवों में जल-निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है, तथा सिर्फ़ 23% उत्तरदाताओं ने बताया कि उनके गाँवों में जल-निकासी व्यवस्था के लिए ढकी हुई नालियां बनाई गई हैं। इसके अलावा, 43% घरों में कचरे के वैज्ञानिक तरीके से निपटान की कोई व्यवस्था नहीं है और वे अपने घरों का कचरा जहाँ-तहाँ फेंक देते हैं।

सर्वेक्षण में भाग लेने वाले सदस्यों में से 44% लोगों की कमाई का मुख्य स्रोत खेती-बाड़ी है। दिहाड़ी मजदूरी लोगों के लिए आजीविका का दूसरा सबसे बड़ा साधन (21%) है, जबकि सिर्फ़ 14.2% लोगों के पास पूर्णकालिक या अंशकालिक नौकरी है। बाकी लोग आजीविका के लिए सिलाई, बढ़ईगिरी, राजमिस्त्री, इलेक्ट्रीशियन और प्लंबिंग जैसे अलग-अलग पेशों पर निर्भर हैं।

‘ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति पर रिपोर्ट- 2024, नेबरहुडज़ ऑफ़ केयर’ में स्थानीय नेताओं, स्वयं सहायता समूहों तथा सेवा प्रदाताओं को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ उनके कौशल को निखारने की अहमियत को भी उजागर किया गया है, ताकि वे अपने गाँवों में लोगों और परिवारों को बेहतर सहायता प्रदान कर सकें।

इंडिया रूरल कोलोक्वि के बारे में: ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (TRI) की ओर से भारत ग्रामीण संगोष्ठी-2024 के चौथे संस्करण का आयोजन किया गया है, जो ग्रामीण भारत में नई चेतना जगाने के उद्देश्य से दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में 1 से 8 अगस्त तक आयोजित होने वाले वार्तालाप एवं कार्यक्रमों की एक श्रृंखला है।

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