‘Sorry, हैप्पी बर्थडे पापा…’ मुंह पर पॉलीथिन, हाथ में बंधी रस्सी, कोटा स्टूडेंट का सुसाइड नोट ला देगा आंसू
‘सॉरी, मैंने जो भी किया है, अपनी मर्जी से किया है. तो प्लीज मेरे दोस्तों और पैरेंट्स को परेशान न करें. हैप्पी बर्थडे पापा…’ राजस्थान के कोटा में पढ़ने वाले स्टूडेंट के सुसाइड नोट में लिखीं ये बातें कलेजा चीर देने वाली हैं, जिसने अपने पिता के बर्थडे विश करके मौत को गले लगा लिया. छात्र मनजोत सिंह उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले का रहने वाला था. वह कोटा में डॉक्टर बनने के लिए मेडिकल की पढ़ाई कर रहा था. कोटा में जनवरी से अब तक 19 छात्र सुसाइड कर चुके हैं.
मनजोत 18 साल का था. अप्रैल महीने में कोटा पहुंचा था. पुलिस को जब उसके सुसाइड की जानकारी मिली तो हॉस्टल पहुंची. उस समय रूम अंदर से लॉक था. स्टूडेंट के पूरे मुंह पर पॉलीथिन बंधी थी और हाथ पीछे से बंधे थे. सवाल उठता है कि पढ़ने, खेलने और तनाव मुक्त होकर खुशियां मनाने की उम्र में बच्चे सुसाइड जैसा कदम क्यों उठा लेते हैं?
ऐसी घटना से परिवार ही नहीं, पूरे समाज को धक्का लगता है. इस तरह की हर घटना के बाद सवाल उठता है कि आखिर बच्चे ने ऐसा किया क्यों? जानकारों का कहना है कि बढ़ती प्रतिस्पर्धा बच्चों को तनाव, अकेलापन और अवसाद की ओर धकेलती है. ऐसे नाजुक वक्त में बच्चों को अपनों की जरूरत होती है.
कोटा में इस साल अब तक 19 सुसाइड केस सामने आ चुके हैं. यूपी के रहने वाले छात्र के सुसाइड केस में कई सवाल खड़े हो रहे हैं, जिनको लेकर पुलिस छानबीन कर रही है. हॉस्टल में जो फैन लगे हैं, उनमें अंदर स्प्रिंग लगाई जाती है. जैसे ही फैन पर वजन पड़ता है तो वह नीचे आ जाता है. कोटा में हॉस्टलों में ज्यादातर यह फैन यूज किए जा रहे हैं.
छात्र मनजोत जब फैन से सुसाइड नहीं कर सका तो पहले उसने सिर और मुंह को पॉलीथिन से ढक लिया. उसके बाद पॉलीथिन को अपने गले के पास से चारों ओर से रस्सी से बांध दिया कि सांस आ न सके. उसके बाद अपने दोनों हाथों को रस्सी से पीछे की तरफ बांध लिया और बेड पर लेट गया. इससे उसे प्रॉपर सांस नहीं मिल पाई.
छात्र के कमरे से सुसाइड नोट भी मिला है. इसमें छात्र ने लिखा है कि मेरे परिवार और मेरे दोस्तों को परेशान नहीं किया जाए. यह मैं अपनी मर्जी से कर रहा हूं. साथ ही छात्र ने यह भी लिखा है कि ‘हैप्पी बर्थडे पापा’.
छात्र के परिवार वाले कोटा पहुंच गए हैं. उनका आरोप है कि उनके बच्चे की हत्या की गई है. दरवाजा तो बंद था, पर पीछे की खिड़कियों की जाली टूटी थीं. छात्र की मां और पिता ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत से न्याय की गुहार लगाई है.
छात्र के मुंह पर पॉलीथिन डालकर गले में रस्सी बंधी हुई थी. पीछे से हाथ बंधे हुए थे. परिवार वालों का कहना है कि वह सुसाइड कैसे कर सकता है, हत्या की गई है. सुसाइड नोट तो कोई भी लिख सकता था. परिवार वाले संस्थान और हॉस्टल मालिक को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. छात्र के परिजन मोर्चरी पर हंगामा कर रहे हैं.
छात्र ने अपने सिर को और मुंह को पॉलीथिन से बांधकर जिस तरह से सुसाइड किया, उसके बाद पुलिस भी बॉडी को मोर्चरी नहीं लेकर गई. अभी घटना का पूरा कारण स्पष्ट नहीं है.
विज्ञान नगर थाना अधिकारी दिवेश भारद्वाज ने बताया कि छात्र का नाम मनजोत छाबड़ा है. उसकी उम्र 18 साल है. नीट की तैयारी करने आया था. घटना की सूचना के बाद पुलिस पहुंची और कमरे की तलाशी ली तो एक सुसाइड नोट मिला. इस पूरे मामले की जांच की जा रही है.
कहते हैं कि बच्चों को अपनों के साथ की जरूरत होती है. जरूरत होती है कि बच्चों को दोस्त बनकर उन्हें समझाने की, न कि असफल होने पर ताने देने लगें. अपनों की दुत्कार बच्चों के मन को भारी ठेस पहुंचाती है. युवावस्था में बच्चों में कई तरह के मानसिक और शारीरिक बदलाव होते हैं. नए हार्मोन बनते हैं. ऐसी आयु में छोटी सी बात भी बच्चों के मन पर गहरा असर छोड़ती है.
विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता बच्चों से उनकी क्षमता से अधिक अपेक्षा करने लगते हैं. दूसरों से तुलना शुरू कर देते हैं. अपेक्षित रिजल्ट नहीं मिलने पर ताने मारना ठीक नहीं होता है. बच्चा शांत, अकेला और अलग रहता नजर आए तो अकेला नहीं छोड़ना चाहिए. उनसे विनम्र तरीके से बात करें. बच्चे के मन में अपने लिए इज्जत पैदा करें, न कि डर. बदलते वक्त के साथ समझना होगा कि बच्चों को साथ की जरूरत है. माता-पिता अगर बच्चों को दोस्त बन जाएं तो वह कभी खुद को अकेला महसूस नहीं करेंगे.
माता-पिता पहले बच्चे की हर जिद पूरी करते हैं. जब वे बड़े होते हैं तो धीरे-धीरे ऐसा करना कम कर देते हैं. उस समय तक बच्चों की सहन शक्ति कम हो चुकी होती है. अगर फिर उनकी जिद पूरी नहीं होती तो वे उत्तेजित होकर ऐसे कदम उठाने की सोचने लगते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि तमाम बच्चे अपने माता-पिता की इच्छा और खुशी के लिए वो सब करने के लिए तैयार हो जाते हैं, जिसमें उनकी दिलचस्पी नहीं होती. इस वजह से वे पूरे मन से उस कार्य को नहीं कर पाते और जब वे असफल होते हैं, तो इसके लिए खुद को दोषी मान लेते हैं. इसलिए उन पर कोई बोझ न डालें.
स्टूडेंट सेल के इंचार्ज चंद्रसील ने कहा कि कोटा में 16- 17 साल के जो बच्चे आते हैं, वह पहली बार अपने घर से परिवार से दूर आते हैं. बच्चे अक्सर छोटी-छोटी चीजों को लेकर भी परेशान हो जाते हैं. पढ़ाई का प्रेशर होता है. परिवार का सपना होता है. बच्चे क्या-क्या सहन करें. इन्हीं सब बातों को लेकर बच्चे परेशान हो जाते हैं. वह क्लास नहीं जाते हैं तो परिवार को भी नहीं बताते कि वह जा रहे हैं या नहीं.
चंद्रसील ने कहा कि हम बच्चों के बीच जाते हैं, उनसे मिलते हैं. उनकी बात सुनते हैं. हमारी तरफ से पूरी कोशिश होती है कि किसी बच्चे को कोई तकलीफ है, परेशानी है तो उसको कैसे दूर किया जाए. बहुत सारे फैक्ट हैं, इसकी वजह से सुसाइड हो रहे हैं. हम पूरा कोशिश कर रहे हैं कि सुसाइड को रोका जाए. सारे हॉस्टल के वॉर्डन संवाद कर रहे हैं. बच्चों से लगातार संवाद हो रहा है. हर कोचिंग में हम यह कोशिश कर रहे हैं कि बच्चे के लिए हर फैसिलिटी हो, साइकोलॉजिस्ट हों, काउंसलर्स हों.
स्टूडेंट सेल के इंचार्ज का कहना है कि पढ़ाई को लेकर ही सारे बच्चे सुसाइड नहीं कर रहे और भी रीजन होते हैं. किसी के पर्सनल रिलेशन भी होते हैं. उन्हीं बच्चों को आईडेंटिफाई करना हमारी प्राथमिकता है. हमारी टीम स्टूडेंट सेल में ऐसे छात्रों को आईडेंटिफाई करने की कोशिश कर रही है. कोचिंग और हॉस्टल वालों की मदद भी कर रहे हैं और मदद ले रहे हैं. छात्र का ध्यान रखने की सबकी जिम्मेदारी है. चाहे हम हों, कोचिंग संस्थान वाले हों, या पेरेंट्स हों. सबकी जिम्मेदारी है कि बच्चे का ध्यान रखें.