काकोरी कांड के शताब्दी वर्ष पर हुई ‘दास्तान’
– काकोरी ट्रेन ऐक्शन के शताब्दी वर्ष पूर्ण होने पर हिमांशु बाजपेयी ने लखनऊ के प्रतिष्ठित सराका होटल में दास्तान- ए – सरफरोशी दास्तानगोई सत्र प्रस्तुत किया।

लखनऊ: इन दिनों प्रदेश की राजधानी लखनऊ में श्री सुबूर उस्मानी के संग्रह से शीर्षक दस्तावेज़ : दुर्लभ और ऐतिहासिक समाचार पत्रों की एक महत्वपूर्ण प्रदर्शनी लगाई गई है जिसे देखने के लिए लोग बड़ी संख्या में उपस्थित हो रहे हैं। इस प्रदर्शनी की क्यूरेटर वंदना सहगल हैं। इसी कड़ी में द लॉस्ट लाइब्रेरी की तरफ़ से शनिवार को होटल सराका में काकोरी ट्रेन ऐक्शन के शताब्दी वर्ष पूर्ण होने पर प्रसिद्ध ‘दास्तानगो’ हिमांशु बाजपेयी द्वारा आयोजित एक मनोरंजक दास्तानगोई (कहानी सुनाने) सत्र के दौरान एक बार फिर जीवंत हो उठी।
कोर्डिनेटर भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि आधुनिक ‘दास्तानगो’ बाजपेयी, जो अपनी मौखिक कहानी सुनाने की मध्ययुगीन कला के लिए जाने जाते हैं,
‘दास्तान-ए-सरफ़रोशी’ शीर्षक सत्र में बाजपेई ने कहा कि अगर कोई एक व्यक्ति भी उनकी ‘दास्तान’ (कहानी) के सार को पूरी तरह समझ ले, तो कहानी कहने का उद्देश्य पूरा हो जाएगा। इस सत्र ने श्रोताओं को देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत कर दिया। बाजपेयी ने अशफ़ाक़उल्लाह ख़ान और राम प्रसाद बिस्मिल के बीच के स्नेह और घनिष्ठ संबंधों का वर्णन करके धर्मनिरपेक्षता के अंतर्निहित संदेश को श्रोताओं तक खूबसूरती से पहुँचाया। यह वृत्तांत दोनों स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन के मार्मिक पहलुओं से भरा था, जैसे कि कैसे वे एक ही थाली में खाना खाते थे और अपने धर्म-पराये संबंधों की रक्षा करते थे। दास्तान के कई मोड़ पर श्रोताओं ने तालियाँ बजाकर स्वागत किया।
दास्तान-ए-तमन्ना-ए-सरफ़रोशी
(काकोरी एक्शन की अमर कहानी)
दास्तान-ए-तमन्त्रा-ए-सरफरोशी 9 अगस्त 1925 के काकोरी ट्रेन एक्शन की कथा प्रस्तुत करने वाली एक दास्तानगोई परफॉर्मेंस है। दास्तान-ए-सरफरोशी काकोरी एक्शन की कथा को शुरू से आख़िर तक यानी उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और मंसूबाबंदी से लेकर ट्रेन एक्शन, क्रांतिकारियों का निजी जीवन, गिरफ्तारियां, मुकदमा, जेल-गतिविधियां, सज़ा एवं संदेश तक एक एक पड़ाव को इस रोचकता से प्रस्तुत करती है कि सुनने वाले इस दास्तान में बंध से जाते हैं।विख्यात दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी ने इस दास्तान को लिखने के लिए 3 साल से ज्यादा का गहन शोध किया है।
काकोरी एक्शन में शामिल क्रांतिकारियों के फर्स्ट परसन अकाउंट्स, विशेषज्ञों द्वारा लिखित किताबों एवं क्रांतिकारियों के परिजनों से बातचीत इस दास्तान का मूलाधार रहे। क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री के पुत्र उदय खत्री ने इसे कई बार सुनकर सराहा और अपना कुशल मार्गदशन दिया। ये दास्तान आधुनिक दास्तानगोई में अपना विशेष मकाम रखती है। हिमांशु बाजपेयी द्वारा लिखित और प्रस्तुत 35 से अधिक दास्तानों में ये सबसे ख़ास है।
2019 में इसका पहला शो करने के बाद से वो इसे लगातार देश विदेश में घूम घूम कर सुना रहे हैं।अब तक इस दास्तान के 100 से ज्यादा शो कर चुके हैं। भारत के अलावा दुबई, सिंगापुर और तुर्की वगैरह देशों में भी वो इसे सुना चुके हैं। इस दास्तान को 2020 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति भवन दिवस के मौके पर सुना और इसी दास्तान के लिए हिमांशु बाजपेयी को विशेष रूप से सम्मानित किया।
दास्तान कार्यक्रम में प्रसार भारती के अध्यक्ष नवनीत सहगल, असीम अरुण, सुधांशु श्रीवास्तव, डॉ दीपक अग्रवाल, शहजादा नसीम ज़िया काकोरी सूफ़ी संत सहित कई महत्वपूर्ण लोग उपस्थित रहे।

