एक साथ आए उद्धव और राज ठाकरे, शिंदे की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, फडणवीस के लिए बनेगी बड़ी चुनौती
मुंबई । महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में बीते 20 साल से दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े एक ही परिवार को दो नेता उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) व राज ठाकरे (Raj Thackeray) शनिवार को एक साथ आए तो राज्य की राजनीति में नए समीकरणों की शुरुआत हो गई। इसका असर सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले और विपक्ष में कांग्रेस के साथ बने गठबंधनों पर पड़ना लगभग तय है। उधर, मराठी भाषा के तत्कालिक मुद्दे पर दोनों चचेरे भाई फिर से एकजुट हुए तो एकनाथ शिंदे के हाथ में गई असली शिवसेना के लिए भी खतरे की घंटी बज गई।
राजनीतिक दृष्टि से इस घटनाक्रम में उपमुख्यमंत्री व शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे की मुसीबतें बढ़ सकती है और इसका असर भाजपा पर भी पड़ सकता है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी। दूसरी तरफ, कांग्रेस व उसके सहयोगी दलों को उद्धव के साथ राज ठाकरे के प्रबल हिंदुत्व वाले तेवरों के तीरों का सामना करना पड़ेगा। अभी भले ही मराठी भाषा का मुद्दा हो, लेकिन आगे चलकर इनकी हिंदुत्व वाली धार उसे परेशान कर सकती है। पहली परीक्षा बीएमसी के चुनावों में होगी।
महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सत्ता में है, जिसके साथ एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली असली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली असली राकांपा है। उद्धव व राज ठाकरे के अलग-अलग होने के बाद जब उद्धव के हाथ से शिवसेना निकल गई, तब ठाकरे परिवार अपनी राजनीतिक विरासत के लिए एक साथ खड़ा हुआ है। तत्कालिक मुद्दा मराठी भाषा का है, जिसके सहारे ठाकरे बंधु अपनी भावी राजनीति आगे बढ़ा सकते हैं, लेकिन राह इतनी आसान नहीं है। मराठी भाषा व मराठी मानुष की राजनीति में बृहद हिंदू समर्थन उनसे दूर जा सकता है।
एक समय था जब महाराष्ट्र में सरकार किसी की भी रहे बाला साहेब ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना की ताकत राज्य की राजनीति में अपना अहम स्थान रखती थी। मौजूदा समय में शिवसेना तीन हिस्सों में न सिर्फ बंटी, बल्कि अपनी पुरानी हैसियत भी खो बैठी। ठाकरे परिवार के हाथ से असली शिवसेना निकलकर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व के साथ चली गई। बाला साहेब की विरासत संभाल रहे उद्धव के पास शिवसेना तो है, लेकिन मूल निशान व नाम के बिना। राज ठाकरे तो बाला साहेब के सामने ही शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना चुके थे, जो आज तक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।

क्या है त्रिभाषा नीति
यह तीन भाषा हिंदी, अंग्रेजी और संबंधित राज्यों की क्षेत्रीय भाषा से जुड़ी है। पहली भाषा मातृभाषा, स्थानीय, क्षेत्रीय भाषा होगी। प्राथमिक शिक्षा इसी में होगी। दूसरी भाषा, हिंदी भाषी राज्यों में यह अन्य आधुनिक भारतीय भाषा या अंग्रेजी होगी। और गैर-हिंदी भाषी राज्यों में यह हिंदी या अंग्रेजी होगी।
शिंदे पर साधा निशाना
उद्धव ने उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर कटाक्ष करते हुए कहा कि मराठी मानुष आपस में लड़े और दिल्ली के लोग हम पर राज करने लगे। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्री की मौजूदगी में आयोजित एक कार्यक्रम में शिंदे द्वारा ‘जय गुजरात’ का नारा लगाने की भी आलोचना की और इसे हताशा का काम बताया।
‘एकता हमारी ताकत’
महाराष्ट्र सरकार द्वारा त्रि-भाषा नीति को वापस लेने के बाद विजय सभा के दौरान उद्धव ने कहा कि हमारी ताकत हमारी एकता में होनी चाहिए। जब भी कोई संकट आता है, हम एक साथ आते हैं और उसके बाद हम फिर आपस में लड़ने लगते हैं।