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Vat Savitri Vrat : वट सावित्री व्रत 6 जून को, विधि-विधान से पूजा करने से मिलेगा संपूर्ण फल

Vat Savitri : वट सावित्री व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इस साल 06 जून को वट सावित्री का व्रत है। अमावस्या तिथि का प्रवेश पांच को हो रहा है, लेकिन उदया तिथि में यह व्रत अगले दिन छह जून को रखा जा रहा है। इस वट सावित्री कई शुभ संयोग बन रहे हैं। इसलिए यह तिथि व्रतियों के लिए और भी महत्वपूर्ण हो गई है। यह आमवस्या स्नान-दान और श्राद्ध की अमावस्या भी है। इसलिए यह तिथि न सिर्फ महिलाओं के लिए बल्कि पुरुषों के लिए भी विशेष है। इस व्रत में पूजा-पाठ, स्नान व दान आदि का अक्षय फल मिलता है। वट सावित्री व्रत को कठिन व्रतों में से एक माना गया है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं। मान्यता है कि वट सावित्री व्रत के दौरान विधि-विधान से पूजा करने से पूजा का फल पूरा मिलता है।

वट सावित्री को लेकर दृढ़ मान्यताएं

वेदाचार्य पंडित रमेशचंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि अखंड सौभाग्य के लिए विवाहिता इस व्रत को विधि-विधान से करती हैं। वट वृक्ष का सनातन धर्म में काफी मान्यता है। वट वृक्ष धरती पर जीवन का प्रतीक हैं। पौराणिक कथा भी इसी ओर इंगित करती हैं। सत्यवान और सावित्री की कथा, जिसमें सावित्री अपने पति सत्यवान को अपनी सतित्व की शक्ति से यम से छीन कर ले आती हैं। वृक्ष के चहुंओर कलावा बांध कर महिलाएं अपने पति के दीघार्यु की कामना करती हैं।

वट सावित्री व्रत के एक दिन पूर्व महिलाएं नये कपड़े पहन सोलहों श्रृंगार करती हैं। हाथ में मेहंदी रचाती है। उपवास रख महिलाएं पांच तरह के फल-पकवान आदि से डलिया भरती हैं। वट वृक्ष के पेड़ में कच्चा धागा लपेटकर तीन या पांच बार परिक्रमा की जाती है और वट वृक्ष को जल देती हैं तथा कच्चा धागा गले में पहनती हैं।ण

वट सावित्री का शुभ मुर्हूत

कृष्ण पक्ष अमावस्या : 06 जून संध्या 6:07 बजे तक

रोहिणी नक्षत्र : 06 जून रात्रि 08:16 तक

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