अयोध्या तो झांकी है… 500 वर्षों बाद हिदुत्व का पुनरूत्थान, रामलला जन्मस्थान विराजमान हुये
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। श्रीरामजन्मभूमि अयोध्या जी में विराजमान भगवान रामलला के मंदिर पुनर्निर्माण पांच सौ साल के अनगिन संघर्षों की जीत और सनातन समाज के प्रखर चेतना का परिणाम है। राम मंदिर पर बाबर के सेनापति मीर बांकी का आक्रमण केवल धन धान्य लूट का नहीं बल्कि सनातन समाज के आत्मसम्मान का मान मर्दन का एहसास कराने के लिये किया गया हमला था। अपने ऐश्वर्य के कारण सोने की चिड़िया के नाम से विश्व पटल पर विख्यात भारत पर अनगिन लुटेरों की कुदृष्टि रही। शक, हूंड़, यवन, इस्लामी, मुगल, पुर्तगाली, फ्रांसिसी और अंग्रेजों जैसे तमाम आक्रमणकारियों ने जब मन किया भारत को लूटा। अनेक बार आक्रमणकारियों के हाथों लुटने के बाद भी भारत की सामाजिक एवं बौद्धिक संरचना पर कोई खास फर्क नहीं दिखाई पड़ता था। आम नागरिक राजा की जय-पराजय से बंधा था। कतिपय कारणों से नागरिकों को राष्ट्रीय अवधारणा के भावनात्मक लगाव से दूर कर दिया गया था। भारतीय राजाओं की आपसी फूट का लाभ उठाने के बाद जब मुगलों को यह ज्ञात हो गया कि भारतीय समाज की जटिल सामाजिक विभाजन संरचना इतनी मजबूत है कि किसी भी राजा पराजित होने के बाद उसके नागरिकों में पराजय का दंश नहीं भरता तो वे हमारे ईष्ट देव और देवालयों को निशाना बनाना शुरू कर दिये।
सबसे पहले हमारे ईष्ट देवों के मंदिर को लूटने का अपराध महमूद गजनवी ने किया। उसने 1017 में श्रीकृष्णजन्मभूमि मंदिर पर आक्रमण किया। मंदिर की संपदा लूटने के साथ मंदिर को भी क्षतिग्रस्त किया। हजारों लोगों ने वीरगति प्राप्त किया। उसके बाद उसी महमूद गजनी ने 1025 में सोमनाथ मंदिर पर पहला आक्रमण कर न सिर्फ लूटा बल्कि मंदिर को क्षतिग्रस्त किया। उसने 17 बार सोमनाथ मंदिर को लूटा। 1297 में अलाउद्दीन खिलजी ने भी सोमनाथ मंदिर को लूटा। 1395 में गुजरात के तत्कालीन सुल्तान मुजफ्फर शाह ने भी सोमनाथ मंदिर में लूट-पाट कर तोड़वा दिया। मुजफ्फरशाह के बेटे अहमदशाह ने 1412 में सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर लूट-पाट किया। उसके बाद उसने भी मंदिर तोड़वा कर हिंदुओं का मानमर्दन किया। 1665 में औरंगजेब ने सोमनाथ मंदिर के खजाने को लूटने के बाद उसे क्षतिग्रस्त करवा दिया। उसने दो बार सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था। 1528 में जहीरुद्दीन बाबर के सेनापति मीर बांकी ने उस मंदिर को तोड़ा, जहां हिन्दू सदियों से पूजा-अर्चना करते चले आ रहे थे।
विदेशी आक्रांताओं की दृष्टि भारत के खजाने पर थी। लेकिन जब मुगलों ने लूट आरंभ किया तो वह हमारी सामाजिक संरचना को तोड़ने के क्रम में खजाने के साथ हमारे ईष्ट देवों को भी निशाना बनाने शुरू किये। हमारे धन और धर्म दोनों लूटे गये। भारत में देवालयों को खोज कर स्थापित तथा पुनर्निमार्ण करने का कार्य चक्रवर्ती सम्राट महाराजा विक्रमादित्य ने किया। मुगलों द्वारा देवालयों पर हमलों में लूट-पाट व तोड़-फोड़ से दुःखी हिन्दू जनमानस पराजय के गहरे सदमें में डूब गया। भारतीय समाज का मनोबल टूटने लगा। तब क्षतिग्रस्त एवं कब्जा किये गये देवालयों का पुनर्रोद्धार कराने का कार्य राजमाता अहिल्याबाई होल्कर ने मंदिरों का जीर्णोद्धार करवा कर किया। उनके इस कार्य से हिन्दू समाज के मानमर्दन पर मरहम लगाने का काम किया।
बंटवारे के बाद मिली आजादी के बाद भी भारत के हिंदू जनमानस में तत्कालीन सत्ता वह विश्वास बहाल नहीं कर सकी, जिसकी आम हिंदू जनमानस को दरकार थी। विभाजन के दर्द और दंगों से जूझ रही भारत की जनता को जिस मरहम की जरूरत थी, उसकी बजाय स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उसे कुरेदने का काम किया। विभाजन का सबसे ज्यादा दर्द जिस प्रधानमंत्री के सीने और चेहरे पर दिखना चाहिए था, वह इस प्रकार आत्ममुग्ध हो गये कि आजादी के बाद भी भारत का हिंदू जनमानस अपना खोया आत्म विश्वास प्राप्त नहीं कर पाया। ऐसा लगा कि जैसे प्रधानमंत्री की कुर्सी उन्होंने अपनी क्षमता से नहीं चतुराई से प्राप्त किया है। नेहरू को भारत के विभाजन का दर्द होता तो वह सबसे पहले अपने ईष्ट देवों के देवालय का जीर्णोद्धार कराते जो वर्षों से हिंदुओं के मानमर्दन के प्रतीक बन कर खड़े थे। सोमनाथ, काशीविश्वनाथ, श्रीकृष्णजन्मभूमि स्थान मथुरा, श्रीरामजन्मभूमि स्थान अयोध्या में हमारे देवालयों पर जबरिया बने मुगलों आक्रांताओं के प्रतीकात्मक धर्म स्थलों को हटा कर अपने ईष्ट देवों के स्थान को भी स्वतंत्रता की अनुभूति कराते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। जवाहर लाल नेहरू ने मंदिर पुनर्निमाण के प्रस्ताव का हिंदू पुनरोत्थानवाद कहकर विरोध भी किया। केएम मुंशी अपनी पुस्तक पिलिग्रिमेज टू फ्रीडम में लिखा है कि कैबिनेट बैठक के आखिर में जवाहर लाल ने मुझे बुलाकर कहा कि मुझे सोमनाथ के पुनरोद्धार के लिये किया जा रहा आपका प्रयास पसंद नहीं आ रहा। यह हिंदू पुनरोत्थानवाद है। हालांकि जवाहर लाल नेहरू के विरोध के बाद भी सरदार वल्लभ भाई पटेल और केएम मुंशी जैसे राजनेताओं ने सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।11 मई 1951 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योर्तिलिंग की स्थापना विधि विधान से की। हालांकि इसके पहले जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद को भी सोमनाथ जाने से रोकने के प्रयास किया, लेकिन डा. प्रसाद ने नेहरू की बात नहीं मानी। उसी जवाहरी सोच का परिणाम है कि राम मंदिर पुनर्निर्माण में उनके वंशज अपनी तरफ से हर तरह का अड़ंगा लगाने को तैयार हैं।
संविधान में धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) शब्द जोड़वा कर इंदिरा गांधी ने हिंदुत्व के विरोध का संवैधानिक अस्त्र तैयार किया। जिसकी कीमत आज तक हिन्दू समाज चुका रहा है। भगवान श्रीराम के जन्मस्थान के लिये प्रतंत्र भारत मे जितनी लड़ाई मुगलों और अंग्रेजों से लड़ी गयी उससे ज्यादा अवरोध स्वतंत्र भारत में धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देकर पैदा किया गया।मुलायम सिंह यादव के निर्देश पर 1990 में अयोध्या में रामभक्तों पर गोलियां बरसायी गयीं। कारसेवकों की हत्या कर सरयू लाल कर दिया गया। 2005 में मनमोहन सिंह सरकार रामसेतु समुद्रम परियोजना को मंजूरी दिया। वह रामसेतु यथाशीघ्र तोड़ना चाहती थी। इसके विरोध में मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया कि रामायण में जो वर्णित है उसके वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। रामसेतु मानव निर्मित नहीं है। जब फैसले का समय आया तब कांग्रेस ने अपने पार्टी व अन्य वकीलों को सुप्रीम कोर्ट में खड़ा करके यह मांग करती है कि फैसला अभी टाल दिया जाय। चुनावों में कोट के ऊपर जनेऊ लपेट कर घूमने वाला उनके बेटी का वंशज पवित्र सावन माह में मांस बनाने और खाने का वीडियो वायरल कर ऐसे भक्त को चुनौती देने निकला है, जो नवरात्र में जल पीकर, धर्मिक मान्यताओं के अनुसार अनुष्ठान करने वाला, राम मंदिर के उद्घाटन के 11 दिन पूर्व से ही अन्न आदि का त्याग कर मात्र नारियल पानी पीकर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचय कर करते हैं।
मोदी के नेतृत्व में अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के पुनर्निर्माण के बाद अन्य देवस्थलों में भी स्वतंत्रता की आकुलता बढ़ती दिखने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिन्दू तीर्थ स्थलों, मंदिरों को जो दिव्य स्वरूप प्रदान किया और करते रहने का कार्य किया, उससे यह कहा जाने लगा है कि स्वतंत्र भारत में 75 वर्ष बाद धार्मिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई। जिस जन्मस्थान स्थान की मुक्ति के लिये लाखों लोगों का बलिदान हुआ, फिर भी वह मुक्त नहीं हो पाया था। उसी जन्मस्थान स्थान पर भगवान श्रीराम बिना किसी विवाद के पर विराजे हैं। यह कार्य केवल नरेंद्र मोदी ही कर सकते थे। वह ही इसके निमित्त बने। देश मे अनेक प्रधानमंत्री हुये, अलग-अलग क्षेत्रों में सबकी अपनी-अपनी विशेषता हो सकती है, लेकिन ईश्वरीय कार्य कराने के लिये भगवान ने नरेंद्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बनाया। उन्होंने उज्जैन महाकाल, काशीविश्वनाथ कॉरिडोर, मथुरा-वृंदावन, चित्रकूट, केदारनाथ, बद्रीनाथ,वैष्णव माता मंदिर, विंध्य कॉरिडोर, रामजन्मभूमि के साथ पूरी अयोध्या को दिव्य स्वरूप देने के लिये सतत प्रयत्नशील रहे। मोदी एक अकेले प्रधानमंत्री हैं, जो भौतिक विकास के साथ देश की आध्यात्मिक चेतना बढ़ाने का कीर्तिमान स्थापित किया है।
राम मंदिर का पुनरोत्थान शायद नरेंद्र मोदी के हाथों ही लिखा था, क्योंकि राम मंदिर के पुनर्निर्माण के इस दौर को देखना इतना आसान नहीं रहा है। हजारों साल से अनेकानेक युद्ध लड़े गये, जिसमें तमाम लोगों ने अपनी बलि दी। इतिहासकार मानते हैं कि 1130 और 1150 में गहड़वाल (गहरवार) राजपूत वंश के सम्राट गोविंदचंद्र ने श्री रामजन्मभूमि स्थल पर एक विष्णु मंदिर का निर्माण कराया। 1150 में उन्होंने विष्णु हरि शिलालेख में उद्धृत पूरे क्षेत्र में लगभग एक हजार कुओं, तालाबों एवं विश्राम गृहों का भी निर्माण कराया। 1184 में राजा जयचंद्र गढ़वाल (गहरवार) ने स्वर्ण शिखरों के साथ अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर का पुनर्निर्माण किया और इसे और भी भव्य बना दिया। मैकाले पुत्रों और अंग्रेजों के पिठ्ठू लेखक इतिहासकारों ने गहरवार क्षत्रियों की लड़ाई को वह महत्व नहीं दिया, जो राजस्थान के क्षत्रियों की मुगलों से लड़ाई को दिया है। यह लोग जान बूझ कर राजस्थान की लड़ाई को निजी लड़ाई बता कर उसकी महत्ता को कम करने की कोशिश किये। भगवान राम और देव स्थानों की लड़ाई और उसके बलिदान को सदैव कमतर आंक कर परोसते थे। उन्हें डर था कि भगवान के नाम पर समाज एकजुट होकर मुगल,अंग्रेज व अंग्रेज परस्तों के सामने फिर खतरा बढ़ा देगा। इस लिये उन्होंने गहरवार राजाओं की लड़ाई के महत्वपूर्ण तथ्य छुपा लिये गये। आपको बताने जा रहे हैं वो चौंकाने वाले ऐतिहासिक तथ्य जो राम मंदिर से जुड़े हैं। कनाडा के यॉर्क यूनिवर्सिटी से साउथ ईस्ट एशियन स्टडीज में रिसर्च स्कॉलर युगेश्वर कौशल ने बताया कि कैसे करीब एक हजार साल पहले मिले शिलालेखों में राम मंदिर के अस्तित्व का पता चलता है।1528-30 के बीच हंसवार के राजा रणविजय सिंह और उनकी पत्नी जयकुमारी ने उस समय के अन्य राजपूत शासकों के साथ मिलकर राम जन्मभूमि पर मीर बाकी द्वारा बाबरी मस्जिद के निर्माण का पुरजोर विरोध किया। जन्मभूमि परिसर 15 दिनों तक रणविजय सिंह के नियंत्रण में रहा, उसके बाद यह बाबरी मस्जिद का हिस्सा बन गया। राजा, उनकी पत्नी और स्वामी महेश्वरानंदजी मुगल सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए।
वहीं साल 1678-1707 में औरंगजेब के समय पर राजेपुर के ठाकुर गजराज सिंह, सिसिंडा के कुंवर गोपाल सिंह, ठा. साल 1678-1707 में औरंगजेब के समय पर राजेपुर के ठाकुर गजराज सिंह, सिसिंडा के कुंवर गोपाल सिंह, ठा. जगदम्बा सिंह, बाबा केशव दास और हजारों राजपूतों ने राम जन्मभूमि के लिए लगभग एक दर्जन लड़ाइयां लड़ीं। जगदम्बा सिंह और उनका बलिदान अवध की लोककथाओं में अमर है। 1717 के बाद, जयपुर के सवाई जय सिंह द्वितीय, जो स्वयं राम के पुत्र कुश के वंशज थे, ने पुनर्निर्माण के प्रयास में मथुरा, काशी, प्रयाग, उज्जैन और अयोध्या जैसे देश के महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों के आसपास कई किलेबंद टाउनशिप स्थापित कीं। जयपुर रॉयल अभिलेखागार में संग्रह से पता चलता है कि राम जन्मभूमि, अयोध्या की भूमि सवाई जय सिंह ने 1717 में खरीदी थी और परिसर में एक मंदिर बनाया गया था। 1717 से 18वीं शताब्दी के अंत तक अनुभवजन्य साक्ष्य बताते हैं कि अवध के स्थानीय नवाबों और मुगल दरबार के बीच कई पत्र लिखे गए थे, जहां यह पाया गया कि स्थानीय नवाबों को सख्त निर्देश दिया गया था कि वे मंदिर को न छूएं, क्योंकि यह जयपुर के राजा, जो भगवान राम के वंशज हैं, उनकी सम्पत्ति है। किसी भी उल्लंघन की उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। दस्तावेज़ों के अनुसार, जयपुर के शाही परिवार के पास अयोध्या में राम जन्मभूमि और उसके आसपास 983 एकड़ जमीन थी। राम जन्मभूमि स्थल का नक्शा जयपुर रॉयल आर्काइव में उपलब्ध है।
सवाई जय सिंह की मृत्यु के कई साल बाद, यह क्षेत्र नवाब के शासन में आ गया, और संभवतः नवाब सआदत अली शासन के तहत एक मस्जिद का निर्माण किया गया था। अमेठी के राजा बंधलगोती राजपूतवंश के गुरुदत्त सिंह और पिपरा के चंदेल राजा राज कुमार सिंह ने राम मंदिर के लिए नवाब सादात अली खान के साथ लगातार 5 लड़ाइयां लड़ीं। 1800-14 तक चले इन लड़ाइयों में उनके कई करीबी रिश्तेदार और मंत्री मारे गये। मकरही के राजा ने 1814-36 के बीच राम जन्मभूमि मंदिर को मुक्त कराने के लिए नवाब नसीरुद्दीन हैदर के खिलाफ 3 लड़ाइयां लड़ीं। गोंडा के राजा देवी बख्श सिंह ने अवध क्षेत्र के सभी तालुकदारों और छोटे राज्यों को एकजुट किया और 1847-57 के बीच कई लड़ाइयां लड़ीं। इन लड़ाइयों में नवाब वाजिद अली शाह बुरी तरह हार गए। इन लड़ाइयों के दौरान ही एक छोटा चबूतरा और राम मंदिर परिसर में मंदिर का निर्माण किया गया और प्रार्थनाओं ने फिर से राम जन्मभूमि परिसर में अपना रास्ता बना लिया।
नवाब को अवध के एकजुट राजपूत तालुकदारों की ताकत के बारे में पता चल गया था। जन्मभूमि स्थल पर चबूतरा के निर्माण के बाद अमेठी के एक मौलवी अमीर अली द्वारा एक टुकड़ी रवाना की गई, जिसे भीटी के राजकुमार जयदत्त सिंह ने रोनाही गांव के पास रोक दिया। उस स्थान पर एक लंबी लड़ाई लड़ी गई, जहां कई राजपूत सैन्य दल से लड़ते हुए मारे गए। इसके तुरंत बाद, ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया। 1857 का विद्रोह शुरू हुआ, तालुकदारों ने गोंडा के बिसेनवंशी राजा देवी बख्श सिंह के नेतृत्व में लड़ाई लड़ी, लेकिन स्थायी समाधान मिलने से पहले ही 1857 का स्वतंत्रता आंदोलन अचानक समाप्त हो गया। ब्रिटिश प्रशासन ने भविष्य के किसी भी विकास पर स्थायी प्रतिबंध लगा दिया था और यथास्थिति बरकरार रखी गई थी।