आईवीआरआई में जूनोसिस रोगों के निदान और नियंत्रण पर कार्यशाला का आयोजन

बरेली , 26 सितम्बर । भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के पशु जन स्वास्थ्य विभाग द्वारा उभरते और फिर से उभरते ज़ूनोसिस रोगों के निदान और नियंत्रण में हालिया प्रगति पर ऑनलाइन प्रशिक्षण का आज उद्घाटन किया गया। कार्यशाला का आयोजन बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन (बिम्सटेक) के तत्वावधान में किया जा रहा है, जिसमें 6 देश भूटान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका थायलैंड, तथा भारत के कुल 16 प्रतिभागी शामिल हैं।

ऑनलाइन प्रशिक्षण का आयोजन आईसीएआर-भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान द्वारा आईसीएआर-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार और आईसीएआर-राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान, भोपाल के सहयोग से किया जा रहा है।

मुख्य अतिथि एवं संयुक्त निदेशक (अकादमिक) डॉ. एस. के. मेंदीरत्ता ने कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में प्रशिक्षण के विषय पर प्रसन्नता व्यक्त की और सभी प्रतिभागियों को अपने अनुभव साझा करने और बिम्सटेक देशों के बीच सक्रिय सहयोग के लिए खोज करने का आह्वान किया। उन्होंने प्रतिभागियों से कार्यशाला में सक्रिय भाग लेने और पशु स्वास्थ्य से संबंधित पहलुओं पर काम कर रहे आईवीआरआई, इज्तनगर, आईसीएआर-एनआईएचएसएडी, भोपाल और आईसीएआर-एनआरसी एकवाइन, हिसार में अनुभवी संकाय से सीखने का आग्रह किया।

इस अवसर पर वीपीएच डिवीजन के प्रमुख और पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. केएन भिलेगांवकर ने प्रशिक्षण के समकालीन विषय का चयन करने के लिए आयोजकों को बधाई दी क्योंकि बीमारियों के लिए नियंत्रण उपायों का विश्वसनीय निदान बहुत आवश्यक है ताकि उनकी बीमारी को बड़ी आबादी तक सीमित किया जा सके।

आईवीआरआई के संयुक्त निदेशक (शोध) डॉ. एस. के. सिंह ने भी इस अवसर पर बात की और बिम्सटेक देशों की साझा सीमाओं ने जूनोटिक और सीमापार बीमारियों से निपटने के लिए सहयोग और क्षमता साझा करने का आह्वान किया। उन्होंने आयोजकों से कहा कि वे इस कार्यशाला के परिणाम को बिम्सटेक सचिवालय के साथ साझा करें।

आईसीएआर-एनआईएचएसएडी, भोपाल के निदेशक डॉ. अनिकेत सान्याल ने जूनोटिक और पारगमन संक्रमण के महत्व और पशु स्वास्थ्य और उत्पादकता पर उनके विनाशकारी प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने यह भी कहा कि हमें उभरती हुई जूनोटिक बीमारियों से निपटने की जरूरत है।

 

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार के निदेशक डॉ. टीके भट्टाचार्य ने इस पहल की सराहना की और प्रतिभागियों से जूनोटिक और ट्रांसबाउंडरी बीमारियों के प्रभाव को कम करने के लिए तैयारी और रोड मैप बनाने पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया।

प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक. एम. सुमन कुमार ने बताया कि इस कार्यक्रम में जूनोटिक रोगों का पता लगाने के लिए विभिन्न निदान और नियंत्रण उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस कार्यशाला में विभिन्न विषयों को कवर किया जाएगा और इसमें छह दिनों में 30 व्याख्यान शामिल होंगे। कार्यशाला का आईवीआरआई के वैज्ञानिक डॉ. एम. सुमन कुमार, एनआईएचएसएडी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजुकुमार और राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के हेल्थ डिवीजन, हिसार के प्रमुख डॉ. नितिन विरमानी द्वारा किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण के सह-लेखक डॉ. हिमानी धांजे, डॉ. जेड. बी. दुबल और डॉ. आरएस राठौर तथा डॉ गौरव शर्मा हैं। बरेली से अखिलेश चन्द्र सक्सेना की रिपोर्ट

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