एक ऐसा गांव जहां मनुष्य ही नहीं, जानवर भी नेत्रहीन हैं
लखनऊ: मैक्सिको के प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में ‘टिल्टेपैक’ नामक गांव है। इस गांव में करीबन 60 झोंपड़ियां हैं जिनमें तीन सौ के लगभग रैड इंडियन रहते हैं। आश्चर्य की बात है कि ये सब के सब अंधे हैं। इससे भी बड़ी बात तो यह है कि ये लोग ही नहीं अपितु वहां रहने वाले कुत्ते, बिल्लियां व अन्य जानवर भी पूर्णत: अंधे हैं।
सभी के नेत्रहीन होने के कारण रात को इनकी झोंपडिय़ों में दीपक इत्यादि भी नहीं जलता। दिन और रात का आभास भी इन्हें अनुभव के आधार पर ही होता है। जब प्रात:काल पक्षी चहचहाना आरंभ करते हैं, तो ये लोग भी उठ कर अपने कार्यों में जुट जाते हैं और जब संध्या को पक्षियों का चहचहाना बंद हो जाता है, तो ये लोग भी अपनी झोंपड़ियों की ओर चल पड़ते हैं।
टिल्टेपैक गांव घने जंगलों में है। यहां रहने वाले जापोटेक जाति के ये लोग सभ्यता एवं विकास से कोसों दूर हैं तथा आदि-मानव की तरह जीवन व्यतीत करते हैं। घने जंगलों में रहने के कारण अन्य लोगों को भी इनके बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है। जब सरकार को इनके और इनके इस रोग के बारे में पता चला, तो इनके इलाज की कोशिश की गई लेकिन सब व्यर्थ रहा।
तब सरकार ने इन्हें दूसरे स्थानों पर बसाने की कोशिश की लेकिन यह भी संभव नहीं हो सका क्योंकि जलवायु अनुकूल न होने के कारण ये कहीं और जा भी नहीं सकते। ये लोग न केवल नेत्रहीन हैं अपितु पूरी दुनिया से कटे होने के कारण विज्ञान के प्रकाश से भी वंचित हैं। आज भी ये लोग लकड़ी व पत्थर के औजारों का ही प्रयोग करते हैं।
पत्थरों पर ही सोते हैं और पत्थरों की बनी झोंपडिय़ों में ही रहते हैं। ये लोग जिन झोंपडिय़ों में रहते हैं, उनमें एक छोटे से द्वार के अतिरिक्त और कोई खिड़की या रोशनदान नहीं होता। ये लोग बेहद मेहनती प्रकृति के हैं। इस रोग के प्रकोप के बावजूद ये जैसे-तैसे कृषि भी कर लेते हैं। प्रात:काल पुरुष खेतों व जंगलों में चले जाते हैं, महिलाएं घर का कामकाज निपटा कर करघा चलाती हैं।
घने जंगलों में रहने के कारण इनका दूसरे लोगों से कोई सम्पर्क नहीं है, इसलिए ये लोग शादी भी आपस में ही करते हैं। शादी के अवसर पर खूब जश्र मनाया जाता है और शराब का प्रचुर मात्रा में सेवन किया जाता है। ये लोग भोजन के साथ मिर्चों का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग करते हैं। भोजन में सेम का भी विशेष स्थान रहता है।
ये सैंकड़ों वर्षों से इस त्रासदी को झेल रहे हैं। वहां जो बच्चे पैदा होते हैं, वे पूरी तरह से सामान्य होते हैं और हमारी तरह ही देख सकने में सक्षम होते हैं लेकिन कुछ सप्ताह तक ठीक-ठाक रहने के बाद धीरे-धीरे उनकी आंखों की रोशनी लुप्त हो जाती है और वे भी जीवन भर के लिए ज्योतिहीन हो जाते हैं।